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कौन सी डेट फ़ंड कैटेगरी चुनें?

डेट और इक्विटी के बीच सही एसेट एलोकेशन के लिए डेट फ़ंड की कैटेगरी के बारे में जानिए

कौन सी डेट फ़ंड कैटेगरी चुनें?

डेट और इक्विटी के बीच एसेट एलोकेशन के लिए डेट फ़ंड्स की कौन सी कैटेगरी सही है? - एक पाठक का सवाल

फ़ाइनेंशियल सिक्योरिटीज़ में निवेश करते समय मुख्य रूप से एसेट एलोकेशन (asset allocation) पर विचार किया जाता है. भले ही इक्विटी से लंबे समय में निवेशकों को बेहतर रिटर्न मिलता है, लेकिन इसमें उतार-चढ़ाव की आशंकाएं बनी रहती हैं. दूसरी ओर, डेट में भले ही कम रिटर्न मिले लेकिन इससे पोर्टफ़ोलियो को कुछ स्थिरता मिल सकती है.

इंटरेस्ट रेट और रिटर्न के बीच संबंध

निवेशकों को ये बात मालूम होनी चाहिए कि ब्याज दरों में बदलाव से डेट फ़ंड के रिटर्न प्रभावित होते हैं. बॉन्ड की क़ीमतों और इंटरेस्ट रेट्स के बीच विपरीत संबंध होता है. जब इंटरेस्ट रेट बढ़ती हैं, तो बॉन्ड की क़ीमतें गिरती हैं और जब इंटरेस्ट रेट्स में गिरावट का रुझान होता है तो बॉन्ड की क़ीमतें बढ़ जाती हैं. डेट फ़ंड (debt fund) की अवधि जितनी ज़्यादा होती है, वे स्वभाव में उतने ही अधिक अस्थिर हो जाते हैं.

डेट फ़ंड की किस कैटेगरी को चुनें?

डेट म्यूचुअल फंड में निवेशकों के सामने उनके रिस्क प्रोफ़ाइल के आधार पर कई विकल्प उपलब्ध होते हैं.

अगर निवेशक कोई बड़ा इंटरेस्ट रेट रिस्क या क्रेडिट रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, तो उन्हें डेट वाले हिस्से को लिक्विड फ़ंड, अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड या लो ड्यूरेशन फ़ंड में आवंटित करना चाहिए. ये सभी फ़ंड 91 दिन से एक साल के बीच मेच्योर होने वाली डेट सिक्योरिटी में निवेश करते हैं.

एसेट एलोकेशन के मक़सद से, शॉर्ट ड्यूरेशन फ़ंड को पोर्टफ़ोलियो में डेट फ़ंड का मूल हिस्सा बनाना चाहिए. ऐसे फ़ंड्स के पोर्टफ़ोलियो का मैकॉले ड्यूरेशन (macaulay duration) एक से तीन साल के बीच होती है.

ये भी पढ़िए- एक रिटायर्ड व्यक्ति को इक्विटी में कितना निवेश करना चाहिए?

मैकॉले ड्यूरेशन वो एवरेज टाइम है, जब एक बॉन्ड से कैश फ़्लो मिलता है. इसे वर्ष में मापा जाता है. मैकॉले ड्यूरेशन से पता चलता है कि एक बॉन्ड को औसतन कितने समय तक होल्ड करने की ज़रूरत है, जिससे प्राप्त कैश फ़्लो की कुल मौजूदा वैल्यू बॉन्ड के लिए दिए गए करेंट मार्केट प्राइस के समान हो.

अगर निवेशकों को निवेश के एक साल के भीतर पैसे की ज़रूरत है, तो वो लिक्विड फ़ंड या कम अवधि वाले फ़ंड का विकल्प चुन सकते हैं.

हालांकि, ऐसे फ़ंड्स में निवेश करने की सलाह नहीं दी जाती है जिनका नेचर लंबे समय का होता है, जिनमें लॉन्ग ड्यूरेशन फ़ंड या गिल्ट फ़ंड आते हैं. ऐसे फ़ंड इंटरेस्ट रेट में बदलाव पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं और बेहद ज़्यादा अस्थिर होते हैं.

हाइब्रिड फ़ंड चुनें

निवेशक हाइब्रिड फ़ंड्स पर भी ग़ौर कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें समझना आसान है और वे पोर्टफ़ोलियो के ऑटोमैटिक रिबैलेंसिंग देते हैं. अब, निवेशकों के लिए कई हाइब्रिड फ़ंड उपलब्ध हैं.

  • कंज़र्वेटिव हाइब्रिड फ़ंड, डेट में बड़ा निवेश एलोकेट करते हैं और इक्विटी में 25 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं करते.
  • भले ही, एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड्स में, निवेशकों को इक्विटी में ज़्यादा एक्सपोज़र (एसेट का 65-80 फ़ीसदी) और बाक़ी डेट में निवेश मिलता है.
  • अंत में, डायनेमिक एसेट एलोकेशन फ़ंड आते हैं जहां फ़ंड मैनेजर बाज़ार और इंटरेस्ट रेट के आधार पर फ़ैसला करते हैं और उसके अनुसार निवेश करते हैं. जब बाज़ार का वैल्युएशन महंगा होता है, तो फ़ंड मैनेजर पोर्टफ़ोलियो का ज़्यादा प्रतिशत डेट में एलोकेट करता है. अगर बाज़ार में काफ़ी गिरावट आती है और वैल्युएशन आकर्षक हो गया हो, तो फ़ंड पोर्टफ़ोलियो में इक्विटी को ज़्यादा जगह देता है.

वास्तव में, हाइब्रिड फ़ंड के माध्यम से एसेट एलोकेशन ज़्यादा टैक्स-इफ़िशिएंट तरीक़े से किया जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई फ़ंड हाउस पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस करने के लिए सिक्टोरिटीज़ बेचता है, तो कोई कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता है. हालांकि, अगर निवेशक मैन्युअल तरीक़े से पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस करता है, तो ट्रांज़ैक्शन पर कैपिटल गेन टैक्स लागू होगा.

ये भी पढ़िए- Best SIP for Mutual Funds: 4 स्टेप में बेस्ट फ़ंड चुनें

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