अक्तूबर महीने में डेट ओरिएंलिक्विड स्कीमों में निवेश के मामले में दमदार वापसी की है. अक्टूबर में डेट फ़ंड्स में ₹1.57 लाख करोड़ का दमदार नेट इनफ़्लो देखा गया. ये आंकड़ा इसलिए भी अहम है, क्योंकि बीते महीने यानी सितंबर 2024 के ₹1.14 लाख करोड़ का आउटफ़्लो देखने को मिला था. ऐसे में आपके लिए ये जानना अहम हो जाता है कि असल में डेट फ़ंड क्या होता है? यहां हम इसी पर विस्तार से बात कर रहे हैं.
डेट फ़ंड एक प्रकार के म्यूचुअल फ़ंड हैं जो ट्रेज़री बिल (भारत सरकार द्वारा जारी शॉर्ट टर्म डेट इंस्ट्रुमेंट्स), सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड, अन्य मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट जैसी फ़िक्स इनकम देने वाली सिक्योरिटीज़ में निवेश करते हैं.
अब आप सोच रहे होंगे कि बॉन्ड क्या हैं? चलिए बेसिक के साथ शुरू करते हैं. जैसे आप लोन के लिए बैंक जाते हैं, वैसे ही सरकारें और कंपनियां फ़ाइनेंशियल मार्केट्स (संस्थागत निवेशकों और आप और मेरे जैसे लोगों के बारे में सोचें) से पैसे उधार ले सकती हैं. जब वे बाज़ार से लोन लेते हैं, तो वे बॉन्ड नामक डिपॉज़िट सर्टिफ़िकेट जारी करते हैं.
और, जैसे आपको अपना बैंक लोन चुकाने के लिए EMI का भुगतान करना पड़ता है, वैसे ही सरकारें और कंपनियां फ़ाइनेंशियल मार्केट्स से लिए गए लोन पर ब्याज देती हैं. इन इंस्ट्रूमेंट की एक निश्चित मैच्योरिटी डेट होती है और आपको मैच्योरिटी तक ब्याज कमाने में मदद करती है.
लोग डेट म्यूचुअल फ़ंड में निवेश क्यों करते हैं?
हम जानते हैं कि वैल्थ बनाने के लिए इक्विटी फ़ंड सबसे उपयुक्त निवेश हैं. वास्तव में, आप हमारी रिसर्च टीम द्वारा चुने गए बेस्ट इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड पर ग़ौर कर सकते हैं. हालांकि, वे एक आदर्श शॉर्ट टर्म निवेश विकल्प नहीं हैं. शॉर्ट टर्म से हमारा मतलब एक से तीन साल है.
तो, आप अपने निकट-अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपना पैसा कहां निवेश करते हैं? इसके लिए, डेट म्यूचुअल फ़ंड सही हैं.
डेट फ़ंड बॉन्ड जैसे फ़िक्स्ड-इनकम इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं. जैसा कि पहले बताया गया है, फ़िक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज़ में निवेश करना लोन देने और उस पर एक तय ब्याज पाने जैसा है. आप जो ब्याज कमाते हैं, उसका भुगतान हर महीने, तिमाही, अर्ध-वार्षिक या वार्षिक रूप से किया जा सकता है. इस वजह से, इक्विटी फ़ंड की तुलना में डेट फ़ंड काफ़ी स्थिर होते हैं.
लोगों के लिए डेट फ़ंड में निवेश करने का एक और कारण डाइवर्सिफ़िकेशन है. उनमें निवेश करने से रिस्क को बैलेंस करने में मदद मिलती है. मान लीजिए कि आप ₹5 लाख निवेश करना चाहते हैं. अपना सारा पैसा इक्विटी फ़ंड में लगाना जोख़िम भरा हो सकता है. जोख़िम को कम करने के लिए, पैसे का कुछ हिस्सा तुलनात्मक रूप से सुरक्षित डेट फ़ंड में लगाया जा सकता है.
तीसरा कारण सहूलियत है. भले ही, आप सीधे कॉरपोरेट बॉन्ड और सरकारी सिक्योरिटीज़ में निवेश कर सकते हैं, लेकिन इसमें एक समस्या है. साथ ही, ऐसे कई विकल्प हैं जो व्यक्तिगत निवेशकों के लिए उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए, डेट फ़ंड के माध्यम से निवेश करना बहुत आसान है. उनके पास विभिन्न प्रकार की फ़िक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज़ ख़रीदने की सुविधा है. इसके अलावा, आप केवल ₹500 से ₹1,000 के साथ डेट फ़ंड में निवेश शुरू कर सकते हैं.
ये भी पढ़िए- एग्रेसिव फ़ंड में एकमुश्त निवेश करना सही है?
डेट फ़ंड में निवेश करने से पहले आपको और क्या जानना चाहिए?
- लिक्विडिटी: आप जब चाहें अपने निवेश से बाहर निकल सकते हैं और दो से तीन दिनों के भीतर पैसा प्राप्त कर सकते हैं. और पारंपरिक तरीक़ों के विपरीत, डेट फ़ंड में लॉक-इन पीरियड या एग्ज़िट की मुश्किल प्रक्रिया नहीं होती है.
- टिकाऊ, लेकिन मध्यम रिटर्न: चूंकि डेट फ़ंड फ़िक्स्ड इनकम वाली सिक्योरिटीज़ में निवेश करते हैं, इसलिए उनका रिटर्न स्थिर होता है. हालांकि, चूंकि वे कम जोखिम वाले होते हैं, इसलिए वे इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फ़ंड की तुलना में कम रिटर्न देते हैं.
- इससे जुड़े जोखिम: डेट फ़ंड पूरी तरह से जोख़िम-मुक्त नहीं होते हैं. ब्याज दर में बढ़ोतरी और क्रेडिट डिफ़ॉल्ट डेट फ़ंड के लिए बुरी ख़बर हो सकती है. आइए इन्हें एक-एक करके समझते हैं.
मान लीजिए कि ब्याज दरें बढ़ रही हैं या दरों के आगे बढ़ने की उम्मीद है. जब ऐसा होता है, तो नए जारी किए गए बॉन्ड ऊंची ब्याज दरों की पेशकश करना शुरू कर देते हैं. नतीजतन, मौजूदा बॉन्ड की मांग - जो आपके डेट फ़ंड का हिस्सा हो सकते हैं - गिर जाती है. और इसके साथ ही मौजूदा बॉन्ड की क़ीमत और डेट फ़ंड की वैल्यू गिर जाती है.
दूसरा जोख़िम क्रेडिट रिस्क है. अगर कोई संबंधित बॉन्ड इश्युअर डिफ़ॉल्ट करता है और भुगतान की शर्तों को पूरा करने में विफल रहता है, तो इसका डेट फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू पर असर होगा. इसलिए, डेट निवेश में भी डाइवर्सिफ़िकेशन अहम है. - कर कुशल (Tax efficient): फ़िक्स्ड डिपॉज़िट के विपरीत, जहां अर्जित ब्याज पर हर साल टैक्स लगाया जाता है, म्यूचुअल फ़ंड के फ़ायदे पर केवल तभी टैक्स लगता हैं जब वो आपको मिलता है, यानि डेट फ़ंड निवेश को बेचने यानी रिडीम के समय. उदाहरण के लिए, अगर आप FD में निवेश करते हैं और हर साल ₹5,000 का ब्याज कमाते हैं, तो ये राशि उस साल के लिए आपकी टैक्सेबल इनकम में जुड़ जाती है, भले ही आपको ब्याज न मिले. हालांकि, डेट फ़ंड के मामले में, अगर आपके निवेश की वैल्यू पहले साल के अंत तक ₹15,000 बढ़ जाता है और आप निवेशित रहते हैं, तो आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा. आपको केवल तभी टैक्स देना होगा जब आप अपने म्यूचुअल फ़ंड निवेश को भुनाते हैं, तब आपको टैक्स का भुगतान करना होता है.
- अपने जैसे दूसरे फ़ंड्स की तुलना में बेहतर रिटर्न: इन फ़ंड्स में बचत बैंक खाते और यहां तक कि बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट की तुलना में काफ़ी बेहतर रिटर्न देने की क्षमता है, ख़ासकर टैक्स कैलकुलेट करने के बाद. इसलिए, वे उन निवेशकों के लिए आदर्श हैं जो जोख़िम से बचना चाहते हैं और कम समय के निवेश की तलाश में हैं.
क्या आप अपना डेट फ़ंड सफ़र शुरू करना चाहते हैं? हमारे एनेलिस्ट की रेकमंडेशन को देखकर भरोसे के साथ उनमें निवेश करें.
ये भी पढ़िए - म्यूचुअल फ़ंड पोर्टफ़ोलियो को कैसे गिरावट से सुरक्षित करें?