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Hybrid Funds: कैसे करें रिबैलेंस?

यहां जानिए हाइब्रिड फ़ंड्स को रिबैलेंस करने के 2 तरीक़े

Hybrid Funds: कैसे करें रिबैलेंस?

हाइब्रिड फ़ंड ऐसे म्यूचुअल फ़ंड हैं जिनके पोर्टफ़ोलियो में इक्विटी (equity) और फ़िक्स्ड इनकम (fixed incomes) दोनों शामिल होते हैं. दोनों का ये मिक्स, अच्छा रिटर्न देता है और ये ज़्यादा रिस्क वाला नहीं होता. फ़िक्स्ड इनकम आपके पोर्टफ़ोलियो को टिकाऊ बनाने और गिरावट को कम करने में मदद करती है, जबकि इक्विटी आपको महंगाई को मात देने वाला रिटर्न दिलाने और आपके पोर्टफ़ोलियो को बढ़ाने में मदद करता है.

हाइब्रिड फ़ंड में 7 अलग-अलग कैटेगरी हैं, जिनमें निवेशकों की अलग-अलग ज़रूरतों के हिसाब से अलग-अलग एलोकेशन हैं. ये हैं एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड, कंज़रवेटिव हाइब्रिड फ़ंड, डायनामिक एसेट एलोकेशन फ़ंड, बैलेंस्ड हाइब्रिड फ़ंड, आर्बिट्राज़ फ़ंड, मल्टी-एसेट एलोकेशन फ़ंड और इक्विटी सेविंग फ़ंड.

इन फ़ंड्स में एक ख़ास तरह का एसेट एलोकेशन होता है, जैसा कि मैंडेट के आधार पर तय किया जाता है और वे आम तौर पर नियमित अंतराल पर अपने पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस करते हैं. सेबी सर्कुलर के तहत, सभी फ़ंड्स को अब निर्धारित मैंडेट से किसी भी तरह का फ़र्क़ आने पर 30 कारोबारी दिनों के भीतर अपने एलोकेशन को रिबैलेंस करना ज़रूरी होता है. फ़ंड्स को उस निर्धारित रेशियो का पालन करना होता है और वे तय एलोकेशन को रिबैलेंस करने के लिए दो अलग-अलग नज़रिया अपनाते हैं.

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एलोकेशन के दो तरीक़े

1. स्टेडी एलोकेशन (steady-state allocation method) यानी स्थिर आवंटन का तरीक़ा है, जहां इक्विटी (equity) और डेट (debt) का हिस्सा हमेशा स्थिर रहता है. मिसाल के तौर पर, एग्रेसिव हाइब्रिड फ़ंड को 65 से 80 फ़ीसदी इक्विटी एलोकेशन और बाकी को फ़िक्स्ड इनकम में बनाए रखना अनिवार्य है. जब भी इक्विटी हिस्सा एक तय सीमा से ज़्यादा हो जाता है, तो फ़ंड मैनेजर मुनाफ़ा कमाएगा और उस पैसे को डेट में निवेश करेगा. या अगर इक्विटी एलोकेशन कम हो जाता है, तो मैनेजर कुछ डेट बेचकर उसे इक्विटी में निवेश करेगा. एलोकेशन को बनाए रखने के लिए ऐसा किया जाता है. अगर फ़ंड का एलोकेशन बदल रहा है, तो उन्हें एक महीने के भीतर रिबैलेंस किया जाता है.

2. डायनामिक/ टैक्टिकल एलोकेशन (dynamic or tactical allocation) यानी रणनीतिक आवंटन का है. इसे आम तौर पर डायनामिक एसेट एलोकेशन या बैलेंस्ड एडवांटेज फ़ंड्स द्वारा फ़ॉलो किया जाता है. ये पूरी तरह फ़ंड की इच्छा पर निर्भर करता है, यानी उस पर कोई बंदिश नहीं है. उनको किसी भी रेशियो में इक्विटी और डेट विकल्पों में निवेश करने का लचीलापन है और फिर अपने मार्केट आउटलुक या कई अन्य फ़ैक्टर्स के आधार पर डेट और इक्विटी के मिश्रण को डायनामिक तरीक़े से बदलते हैं, जिन्हें वो ध्यान में रखना चाहते हैं. यहां, फ़ंड मैनेजर बाज़ार की स्थितियों के आधार पर फैसला ले सकता है या वो मार्केट P/E के आधार पर कोई एल्गोरिदम सेट कर सकता है, जिसके आधार पर वे इक्विटी और डेट के बीच एलोकेशन बदला जाता है.

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