जब आप एसेट बेचते हैं तो उससे मिलने वाले मुनाफ़े पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगता है। ये एसेट कई तरह के हो सकते हैं, जैसे अचल-संपत्ति/ रियल एस्टेट, ज्वैलरी, बॉण्ड और नॉन इक्विटी फ़ंड। इनकम टैक्स डिपॉर्टमेंट लागत को महंगाई से एडजस्ट या समायोजित करने की अनुमति देता है।
ख़रीद क़ीमत को महंगाई के साथ एडजस्ट करना इंडेक्सेशन कहलाता है। इससे टैक्स कम करने में मदद मिलती है। हालांकि, आपको याद रखना चाहिए कि ये सहूलियत तभी मिलती है, जब एसेट को तय समय तक होल्ड करने के बाद बेचा जाए। ये अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि एसेट किस तरह का है। अचल संपत्ति के मामले में इंडेक्सेशन का फ़ायदा तभी हासिल किया जा सकता है, जब इसे दो साल बाद बेचा जाए। लेकिन, नॉन-इक्विटी फ़ंड के लिए इंडेक्सेशन बेनिफ़िट तीन साल बाद ही हासिल किया जा सकता है।
नॉन-इक्विटी फ़ंड में इंडेक्सेशन कैसे काम करता है, इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लेते हैं कि आपने 2001 में ₹1 लाख निवेश किए, और उस समय कॉस्ट इंफ़्लेशन इंडेक्स (CII) ₹100 था। और आज आप इस एसेट को बेचना चाहते हैं। मौजूदा CII, ₹317 है। मंहगाई से एडजस्ट करने के बाद, आपकी ख़रीद-लागत (purchase cost) लगभग ₹3.17 लाख हो जाएगी। (₹1 लाख X ₹317/ ₹100)
कॉस्ट इन्फ़्लेशन इंडेक्स एक पैमाना है, जिसका इस्तेमाल महंगाई की वजह से साल-दर-साल वस्तुओं की क़ीमतों में इज़ाफ़े को कैलकुलेट करने में किया जाता है। आप इस आंकड़े को भारत की इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट (incometaxindia.gov.in
मान लेते हैं, इस वक़्त आपका निवेश ₹10 लाख है। अगर आप ख़रीद लागत को महंगाई के साथ समायोजित नहीं करते हैं, तो आपका कैपिटल गेन ₹9 लाख होगा, और आपको इस पर 20% टैक्स देना होगा। यह टैक्स क़रीब ₹1.80 लाख होगा। लेकिन, अगर आप शुरुआती ख़रीद-लागत को महंगाई के साथ समायोजित करते हैं, तो कैपिटल गेन घट कर, ₹6.83 लाख हो जाएगा और इस पर 20% टैक्स ₹1.36 लाख होगा। यानि, इंडेक्सेशन के बाद टैक्स का बोझ ₹43,000 कम हो गया। इंडेक्सेशन का फ़ायदा इसी तरह से काम करता है।