संदीप दिल्ली के पास की एक बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी में मार्केटिंग प्रोफ़ेशनल हैं। उनकी उम्र 40 के शुरुआती सालों में है और उनकी पत्नी हाउस-वाइफ़ हैं। उनके दो बच्चे हैं, एक आठ और दूसरा 12 साल का। अब तक संदीप ने बचत पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था। हर साल जनवरी में उन्हें अपने ऑफ़िस के फ़ाइनांस डिपार्टमेंट से एक मेल आती है, जिसमें उनके टैक्स-सेविंग इन्वेस्टमेंट के बारे में पूछा जाता है। ऐसे में वो इन मामलों के जानकार वसंत से सलाह लेते हैं। भरोसेमंद वसंत, संदीप की पत्नी का रिश्तेदार है। और वसंत की पत्नी एक बीमा एजेंट हैं, इसलिए सब कुछ घर जैसी बात है। क्योंकि संदीप को EPF पर टैक्स ब्रेक मिल जाता है, और साथी बच्चों की स्कूल फ़ीस पर भी टैक्स में छूट मिल जाती है, इसलिए सेक्शन 80C के तहत टैक्स में बचत की सेविंग लिमिट का काफ़ी हिस्सा पहले ही ख़त्म हो जाता है।
लेकिन पिछले चार-पांच साल से संदीप और उनकी पत्नी को ज़्यादा और ठीक से बचत करने की चिंता सताने लगी है। 'म्यूचुअल फ़ंड सही है' के लोकप्रिय नारे ने उन्हें म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है, लेकिन ये समझना मुश्किल हो गया है कि शुरुआत कहां से करें। वसंत ने उन्हें म्यूचुअल फ़ंड में बड़े नुकसान से जूझते लोगों की कहानियां भी सुनाईं हैं और ये काफी डरावना लगती हैं। उन्हें कई ऐप और वेबसाइटें मिली हैं, जो म्यूचुअल फ़ंड बेचती हैं, लेकिन साफ़ तौर पर कहें, तो वो सब किसी भी तरह अपना प्रोडक्ट बेचने में लगे हैं। संदीप को भले ही निवेश के बारे में ज़्यादा नहीं पता हो, लेकिन मार्केटिंग प्रोफ़ेशनल के तौर पर, वो जोड़-तोड़ से सेल करने वालों को पहचान सकते हैं, और जानते हैं कि उनका एकमात्र मक़सद बेचना है।
कुछ साल के लिए वो म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करते रहते हैं, जो अलग-अलग सेल्स वाले उन्हें सुझाते रहते हैं। बचत मुश्किल से हो पाती है मगर वो जीतोड़ कोशिश करते हैं। कुछ समय के लिए सब ठीक-ठाक
लगता है, मगर फिर COVID आ धमकता है और उनके फ़ंड की आधी क़ीमत हवा हो जाती है।
हालांकि, ये पता लगने में उन्हें कुछ समय लगता है कि हो क्या रहा है। कुछ ऑटोमेटेड ई-मेल कभी-कभी फ़ंड वैल्यू के साथ ज़रूर आती हैं, लेकिन ज़्यादातर स्पैम में चली जाती हैं। जब बुरी ख़बरें ज़्यादा आने लगती हैं, तो वो अलग-अलग फ़ंड वेबसाइट पर NAV देखने में कई घंटे बिताते हैं, और आख़िरी ई-मेल में आई यूनिट्स की संख्या से गुणा कर के अपने फ़ंड की वैल्यू पता लगाने की कोशिश करते हैं। ये सब काफी जटिल है, क्योंकि इतने सारे फ़ंड्स हैं और उनके नाम भी क़रीब-क़रीब एक जैसे हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने बहुत सारा पैसा गंवा दिया है। पैसा कमाना तो भूल ही जाओ, उनके निवेश की वैल्यू ही आधे से कम रह गई है। ज़ाहिर है, वसंत सही था। या शायद नहीं था।
आश्चर्यजनक रूप से, उनके कुछ फ़ंड्स की वैल्यू में गिरावट नहीं आई है। पर ये कैसे हो सकता है? क्या जब अर्थव्यवस्था गोता लगाती है, तो अलग तरह के फ़ंड अलग-अलग तरीक़े से काम करते हैं? ये सब पता कैसे करें? क्या उन्हें बची हुई रक़म निकाल लेनी चाहिए? ये सब बहुत तनाव से भरा है, और बिल्कुल साफ़ नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए।
ये 2022 में, मई का महीना है और देश भर में मार्केट की गिरावट से चिंता है। एक 35 साल की सॉफ़्टवेयर प्रोफ़ेशनल दीप्ति और उनके पति अधिराज भी अपने म्यूचुअल फ़ंड निवेश की वैल्यू में पांच महीने से गिरावट देख रहे हैं। ये हमेशा थोड़ा चिंताजनक होता ही है, जब 15-20 फ़ीसदी पूंजी एकदम ख़त्म हो जाए। हालांकि, वो इस वजह से अपनी नींद ख़राब नहीं कर रहे हैं। एक तो ये कि केवल इक्विटी फ़ंड्स में ही बड़ी गिरावट है और दूसरी बात है कि उनके सभी निवेश लंबे समय की ज़रूरतों के लिए हैं। दोनों पति-पत्नी, अपनी योजनाओं को लेकर स्पष्ट हैं कि उनके आर्थिक गोल क्या हैं और कौन से फ़ंड किस गोल के लिए हैं। इक्विटी फ़ंड उनकी बेटी की कॉलेज की पढ़ाई के लिए है, जो अभी 10 साल दूर है, और उनके ख़ुद के रिटायरमेंट के लिए है, जिसमें कई दशक हैं। इन्हें लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है। वो अच्छी तरह समझते हैं कि इक्विटी फ़ंड में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन रिटर्न ऊंचा मिलता है।
अगले साल, वो अपने घर के एक हिस्से को दोबारा बनवाने की योजना बना रहे हैं, लेकिन उस पैसे को पहले ही दो शॉर्ट-टर्म डेट फ़ंड में डाल दिया है। इक्विटी मार्केट की घटनाओं का डेट फ़ंड पर कोई प्रभाव नहीं होता और इसलिए दोनों पति-पत्नी बिना किसी परेशानी के अपनी योजना के मुताबिक़ आगे बढ़ सकते हैं।
तो, दीप्ति और अधिराज को फ़ाइनेंशियल जानकार होना चाहिए, है न? और संदीप अनजान कहलाएंगे? नहीं, बिलकुल नहीं। दीप्ति और अधिराज वैल्यू रिसर्च प्रीमियम के मेंबर हैं। उन्होंने जो कुछ भी किया है, चाहे -फ़ाइनेंशियल गोल तय करने की बात हो, फ़ंड की मैपिंग हो, फ़ंड्स के प्रदर्शन पर नज़र रखना हो - ये सबकुछ थोड़ी सी कोशिशों से उन्हें प्रीमियम सर्विस से पता चलता है। इसके अलावा, वो ये भी देख, समझ, और भरोसा कर सकते हैं कि उन्हें जिसके लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वो बातें सही हैं और समय की कसौटी पर खरी रही हैं। क्या अच्छी तरह से चुने गए इक्विटी फ़ंड अंततः अच्छा रिटर्न देते हैं? बेशक - वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पर आप इनका इतिहास देख कर समझ सकते हैं।
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पोर्टफ़ोलियो प्लानर: ये कस्टम पोर्टफ़ोलियो हैं, जो आपकी प्रीमियम सदस्यता के तहत सुझाए जाते हैं। हमने जो एल्गोरिदम विकसित की है वो आपके गोल, आमदनी, बचत क्षमता और दूसरी कई बातों को ध्यान में रखता है।
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