जब आप निवेश और पर्सनल फ़ाइनांस के बारे में मीडिया या सोशल मीडिया में पढ़ते हैं, तो सबसे बड़ी मुश्किल ये उभर कर आती है कि लोग सही स्टॉक या म्यूचुअल फ़ंड में निवेश की बात नहीं कर रहे होते। बल्कि निवेश की सारी बातें सबसे अच्छे म्यूचुअल फ़ंड, या सबसे हॉट स्टॉक्स के इर्द-गिर्द ही घूम रही होती हैं। ये एक भ्रमजाल है। असल परेशानी है कि ज़्यादातर लोग निवेश कर ही नहीं रहे हैं या कर भी रहे हैं तो बहुत थोड़ा।
अंग्रेज़ी की एक कहावत है ‘better late than never’ यानि ‘कभी नहीं से बेहतर है, देर से ही सही, मगर करना’, शायद ये बात जीवन की कई दूसरी बातों के लिए सही हो। पर बचत और निवेश के मामले में, जल्दी शुरुआत करने के बजाए, देर से बचत और निवेश शुरु करना बेहद ख़राब कहा जाएगा। कितना ख़राब? इसकी एक मिसाल देखते हैं। मान लीजिए, आप अपने पैसे को 10X करना चाहते हैं तो 8 प्रतिशत की सालाना दर से पैसों को दस गुना करने में 30 साल लगेंगे, 20 साल में 12.2 प्रतिशत दर की ज़रूरत होगी, और 15 साल में 16.6 प्रतिशत का रिटर्न चाहिए होगा।
कृपया इसे दोबारा पढ़ें, और फिर-जो बात मैं कह रहा हूं उस पर सोचिए। 8 प्रतिशत सालाना, रिटर्न ऐसा रेट नहीं है जिसे आसानी से और लगातार हासिल न किया जा सके-हर कोई जो ये लेख पढ़ रहा है, उसे भरोसा होगा कि वो ऐसा करने में क़ामयाब हो पाएगा कि अगले 30 साल में, वो अपने पैसे 10X कर ले।
मगर इन तीस सालों में से, अगर पहले दस साल हम बर्बाद कर देते हैं, तो अपने पैसे को 10X करने के लिए हमें हर साल 12.2 प्रतिशत के रिटर्न की ज़रूरत होगी। ये आसान तो नहीं है और इसके लिए अच्छी ख़ासी स्किल, लगन, और सही रवैये की ज़रूरत होगी। उससे भी बड़ी बात है कि अपने निवेश का बड़ा हिस्सा आपको इक्विटी में लगाना होगा, जिसमें लगातार उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और इनसे निपटने के लिए आपको मानसिक तौर पर मज़बूत बने रहना होगा।
हालांकि, असलियत में ज़्यादातर लोग अपने निवेश-जीवन के पहले दस साल से कहीं ज़्यादा बर्बाद कर देते हैं। या कोई अगर 22 या 23 साल की उम्र में कमाना शुरु करता है, तो अक्सर चालीस साल का होने से पहले गंभीरता से निवेश शुरू ही नहीं करता, और ऐसे में एक बड़ी मुश्किल स्थिति पैदा हो जाती है। 15 साल में 10X कमाने के लिए, आपको हर साल, लगातार 16.6 प्रतिशत की ज़रूरत होगी। सिर्फ़ बहुत थोड़े से निवेशक ही ऐसे नतीजे पा सकते हैं, और इसमें भी क़िस्मत का बड़ा रोल रहेगा। मैं ये बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि ऐसा हो नहीं सकता है, मगर इस स्थिति में ये बात नहीं रह जाती कि ये होना ही है।
एक कहानी है, एक बार अल्बर्ट आइंस्टाईन से पूछा गया कि इंसानियत को इंसान की सबसे बड़ी ईजाद क्या है, तो उनका जवाब था, “कंपाउंड इन्ट्रस्ट”। हम यहां सिर्फ़ इन्ट्रस्ट या ब्याज से इनकम की ही बात नहीं कर रहे हैं, क्योंकि निवेश पर मिलने वाले रिटर्न में कंपाउंडिंग, एक ही बात है।
निवेश की राह का सबसे बड़ा रोड़ा ये नहीं है कि लोग, ये वाला निवेश चुनें, या वो वाला फ़ंड, या फिर किसी स्टॉक को चुनें या कोई ख़ास स्ट्रैटजी अपनाएं, असल में सबसे बड़ा रोड़ा है, निवेश की शुरुआत में देर कर देना। जल्दी शुरु नहीं करने के कारण दो तरह के होते हैं। पहली समस्या तो आम है, कन्ज़ूमरिस्ट सोसाइटी। ख़र्च करने को इतना कुछ है कि आप जो कुछ कमाते हैं उसे ख़र्च करना आसान ही नहीं है, बल्कि वो भी ख़र्च हो जाता है जो आप भविष्य में कमाने वाले हैं। ये समस्या और भी बड़ी तब हो जाती है-जब एक युवा बचत करना चाहता है और इससे जुड़ी जानकारी और गाइडेंस अपने आसपास तलाशता है। तब उसके सामने इतने बड़े आंकड़े आ खड़े होते हैं कि उन्हें अपनी बचत, बचकानी लगने लगती है। सोशल मीडिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है, जो हर महीने 50 हज़ार या एक लाख की SIP पर रिटर्न के कैलकुलेशन करते दिखाई देते हैं या फिर लाखों के स्टॉक निवेश की बातें करते हैं। जिसने अभी कमाना ही शुरु किया है और जो इस समय शायद एक हज़ार रुपए महीने ही बचा सकता है, वो ख़ुद को किसी काम का नहीं समझता और अपनी छोटी सी बचत की रक़म पर शर्मिंदा हुआ रहता है। उसे इस पैसे से पिज़्जा ख़रीदना बेहतर लगता है या फिर एक नया हेडफ़ोन लेना ज़्यादा फ़ायदेमंद नज़र आता है।
और यही असल मुश्किल है। असलियत में, हर महीने कुछ हज़ार रुपए किसी रिकरिंग बैंक डिपॉज़िट में-जहां आपका अकाउंट हो-जमा करना एक अच्छी शुरुआत हो सकती है। किसी भी तरह बस एक शुरुआत कीजिए, कितनी भी रक़म से। बस इतना ही करने की ज़रूरत है। बाक़ी सब ख़ुद-ब-ख़ुद होने लगेगा।
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