दरअसल मैं निवेश के एक बुनियादी सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहा हूं, और वो सवाल है: इक्विटी या म्यूचुअल फ़ंड? नोट कीजिए कि दोनों का फ़ाइनल गोल, स्टॉक में निवेश करना और इक्विटी के शानदार रिटर्न से पैसा बनाना है। सवाल है कि क्या किसी व्यक्ति को सीधे स्टॉक में निवेश करना चाहिए या फिर इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड्स के ज़रिए, स्टॉक में निवेश करना चाहिए। ये सवाल तब सामने आता है, जब केवल बचत करने वाला शख़्स, असल में निवेशक बन जाता है और इक्विटी की ताक़त समझ जाता है। अहम ये है कि मीडिया और सोशल मीडिया में कही या लिखी जा रही बातों को सिर्फ़ सुन-सुन कर, इसका फ़ैसला नहीं लिया जा सकता। अगर आप इक्विटी के फ़ायदों का अंदाज़ा, उस पर मचने वाले शोर से लगाएंगे तो बेशक़ इक्विटी की तरफ़ खिंचे चले आएंगे। आख़िर इक्विटी निवेश की ख़बरें और उनका जोश किसी भी दूसरे निवेश से कहीं ज़्यादा है-और ये सही भी है।
इसका ये मतलब नहीं कि यही निवेश आपके लिए सबसे अच्छा हो। हम अक्सर कहते हैं, स्टॉक और म्यूचुअल फ़ंड के बीच चुनाव का कोई सीधा-सीधा जवाब नहीं है, मगर ऐसा नहीं है-इसका एक सीधा और सरल जवाब है। मुश्किल ये है कि ये जवाब, सार्वभौमिक रूप से सीधा और सरल नहीं है कि हर बचत करने वाले के लिए फ़िट हो। यानि, जवाब तो सीधा है, मगर ये आपका अपना जवाब है, और आपको ख़ुद इसे पाना है।
इस जवाब का एक हिस्सा आपके स्वभाव से तय होता है। हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए म्यूचुअल फ़ंड में निवेश सही होता है, वहीं कुछ लोगों के लिए स्टॉक बेहतर विकल्प होते हैं। और कुछ लोग अपने निवेश की शुरुआत बैंक डिपॉज़िट के साथ कर सकते हैं, फिर म्यूचुअल फ़ंड से होते हुए, स्टॉक में निवेश शुरू कर सकते हैं। असल में, और ये बेहद अहम है-कि एक स्टॉक निवेशक के लिए भी कुछ बातों में म्यूचुअल फ़ंड ही सही होते हैं, जैसे - टैक्स की बचत के लिए और निवेश के फ़िक्स्ड इनकम वाले हिस्से के लिए। तो यहां हर किसी पर फ़िट होने वाला कोई एक ही जवाब आपको नहीं मिलेगा।
फिर भी, एक अहम बात नकारी नहीं जा सकती कि: अगर आप एक एक्सपर्ट इन्वेस्टर नहीं हैं या एक्सपर्ट बनने के लिए समय नहीं दे सकते और मेहनत नहीं कर सकते, तो सीधे इक्विटी में पैसा लगाने का कोई तुक नहीं है। इसलिए, हर शुरुआती निवेशक के लिए-बिना अपवाद--ये आसान और सीधी-सीधी पसंद है कि वो अपना निवेश म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए करें। मैं एक पल के लिए भी ये नहीं कह रहा हूं कि कोई सीधे स्टॉक निवेश में सफल नहीं हो सकता। हालांकि, कई निवेशक ख़ुद से किए निवेश में बहुत अच्छे नतीजे हासिल करते हैं, और वैल्यू रिसर्च की प्रीमियम सर्विस, स्टॉक एडवाइज़र इसमें लोगों की मदद करती है।
पर शुरुआत करने वालों के साथ ऐसा कम ही हो पाता है। और उससे भी बड़ी मुश्किल है कि कुछ लोग, जिन्होंने कई बार नुकसान झेलने के बाद सफलता पाई है, उन्हें अपने हर फ़ेलियर में कुछ-न-कुछ नुकसान ज़रूर हुआ होगा। हममें से ज़्यादातर लोगों के लिए, जिनका गोल सिर्फ़ बेहतर रिटर्न पाना है, उनके लिए नुकसान झेल कर सीखना किसी काम का नहीं है।
म्यूचुअल फ़ंड, डाइवर्सिफ़िकेशन जैसी बुनियादी ज़रूरतों को आसानी से पूरा कर देते हैं। छोटे निवेश और कितनी भी रक़म के साथ निवेश शुरू कर पाना, म्यूचुअल फ़ंड का दूसरा बड़ा फ़ायदा है। अगर आप सीधे स्टॉक ख़रीद कर एक डाइवर्सिफ़ाइड पोर्टफ़ोलियो बनाना चाहते हैं, तो आपको एक बड़ी रक़म की ज़रूरत होगी-कम-से-कम कुछ लाख रुपयों की। वहीं म्यूचुअल फ़ंड, की शुरुआत आप कुछ हज़ार रुपयों से कर सकते हैं और लगातार करने के साथ-साथ, एक तय रक़म हर महीने ऑटोमैटिक तरीक़े से निवेश कर सकते हैं। आप हर साल ₹1.5 लाख, अपने द्वारा चुने हुए टैक्स सेवर इक्विटी म्यूचुअल फ़ंड में निवेश कर के सेक्शन 80C के तहत टैक्स भी बचा सकते हैं।
टैक्स का ये फ़ायदा म्यूचुअल फ़ंड चुनने की दूसरी बड़ी वजह है। सभी इक्विटी पोर्टफ़ोलियो में ख़रीदने या बेचने की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि कोई एक स्टॉक कभी-न-कभी कम फ़ायदेमंद हो ही जाता है। अगर आप स्टॉक ट्रेडिंग ख़ुद करते हैं, तो इस लेनदेन पर आपको ख़ुद ही टैक्स देना होगा। हालांकि, म्यूचुअल फ़ंड में यही काम फ़ंड मैनेजर करते हैं। इसके लिए आपको कोई टैक्स नहीं देना होगा क्योंकि आपने ख़ुद कोई लेनदेन नहीं किया है। टैक्स की बचत एक और तरह से बेहतर रहती है कि पैसा आपके निवेश के लिए उपलब्ध रहता है और इसलिए ज़्यादा फ़ायदा होता है। और लंबे अर्से के निवेश में कंपाउंडिंग की ताक़त से बड़ा फ़र्क़ पैदा हो जाता है।
अक्सर मीडिया में, स्टॉक-बनाम-फ़ंड के सवाल पर, म्यूचुअल फ़ंड के औसत रिटर्न की तुलना बेंचमार्क से की जाती है। हालांकि, ये तुलना बेमानी है क्योंकि रिटर्न तो इस पूरी तस्वीर का एक छोटा सा हिस्सा ही हैं। दोनों ही एसेट क्लास में से कोई भी आपके लिए सही हो सकती है, मगर फ़ैसला लेते हुए आपको कई बातों पर ग़ौर करना चाहिए।
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