स्टॉक्स या इक्विटी किसी कंपनी में हिस्सेदारी को कहते हैं। अगर आप किसी कंपनी के सौ शेयर ले लेते हैं, जिसका मालिकाना हक़ एक करोड़ शेयर में बंटा हुआ है, तो आप कंपनी के एक लाख हिस्सों में से, एक हिस्से के मालिक हैं। क्योंकि आपका शेयर बहुत कम है इसलिए आपको ये अधिकार नहीं है कि आप कंपनी चलाने में दखल दे सकें। मगर आप अपने हिस्से के मालिकाना हक़ से आर्थिक फ़ायदा पा सकते हैं।
निवेश का उद्देश्य और रिस्क
अपने शेयर की हिस्सेदारी से फ़ायदा उठाने के दो तरीक़े हो सकते हैं:
कैपिटल गेन: जिस दाम पर आपने शेयर ख़रीदे हैं, उससे ऊंचे दाम पर उसे बेच कर आप फ़ायदा कमा सकते हैं।
डिविडेंड: ये मुनाफ़े का वो हिस्सा होता है जो कंपनी बांटती है।
ज़्यादातर निवेशकों का पहला गोल, कैपिटल गेन ही होता है। उनके लिए डिविडेंड प्राथमिकता के दूसरे दर्जे पर, सपोर्टिंग रोल में रहता है। स्टॉक में सबसे ज़्यादा रिस्क होता है और सबसे ज़्यादा फ़ायदा भी। यानि इस निवेश में रिटर्न पाने के मौक़े भी रहते हैं और ये फ़ायदे इस क़िताब में दी गई सभी स्कीमों के मुक़ाबले में सबसे ज़्यादा है।
स्टॉक या म्यूचुअल फ़ंड?
ज़्यादातर निवेशकों के लिए, म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करना दूसरे तरीक़ों से बेहतर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि म्यूचुअल फ़ंड में उन्हें स्टॉक में निवेश के फ़ायदे, कम रिस्क पर मिल जाते हैं। साथ ही इसमें मेहनत भी कम लगती है। हालांकि, म्यूचुअल फ़ंड में फ़ीस होती है और इसके अलावा कुछ सीमाएं भी होती हैं।
वो निवेशक जो निवेश में पारंगत हो सकते हैं, यानि स्टॉक में निवेश को जानने समझने में कुछ वक़्त बिता सकते हैं, उन्हें स्टॉक में निवेश करना ज़्यादा सेट करेगा।
निवेश बनाम ट्रेडिंग
स्टॉक में निवेश करने वाले लोग, दो अलग तरह से काम करते हैं। निवेश का पहला तरीक़ा वो होता है, जिसमें अच्छी कंपनियों की पहचान की जाती है। इसके बाद इन कंपनियों में लंबी-अवधि के लिए निवेश किया जाता है। ये स्टॉक में निवेश करना हुआ।
दूसरा तरीक़ा वो होता है, जिसमें स्टॉक के ऊपर जाते और गिरते हुए दामों का अंदाज़ा लगाया जाता है। उसके बाद इसी अंदाज़े पर कम अवधि के लिए स्टॉक में पैसा लगाया जाता है। इस तरीक़े का इस्तेमाल जल्दी से, और बड़ा मुनाफ़ा हासिल करने के लिए करते हैं। ये ट्रेडिंग कहलाता है। ट्रेडिंग की अवधि कुछ दिनों से लेकर कुछ घंटों की भी हो सकती है।
तो ये समझना ज़रूरी है कि पहले तरीक़े को 'निवेश' कहते हैं और दूसरे को 'ट्रेडिंग' या स्पेक्युलेटिंग कहा जाता है। ट्रेडिंग में फ़ैसले बहुत तेज़ी से लिए जाने की ज़रूरत होता है इसलिए ये तनाव से भरा काम है और इसमें रिस्क भी बहुत ज़्यादा होता है।
पूंजी की सुरक्षा और महंगाई से बचाव
स्टॉक निवेश में पूंजी सुरक्षित नहीं होती। इसमें महंगाई से बचाव का भी कोई वादा नहीं होता। हालांकि, लंबी-अवधि के निवेश में स्टॉक किसी भी दूसरे निवेश से कहीं बेहतर रिटर्न देते हैं।
गारंटी
स्टॉक में निवेश पर निश्चित रक़म मिलने की कोई गारंटी नहीं होती।
नक़दी पाने की सुविधा
आमतौर पर, स्टॉक से अपने निवेश के बदले नक़द रक़म हासिल करना बेहद आसान है। इसमें कोई लॉक-इन पीरियड नहीं होता। आप अपना निवेश कभी भी बेच सकते हैं और दो दिनों के भीतर ही नक़द के तौर पर वापस पा सकते हैं। हालांकि, आपके स्टॉक बेचने की क्षमता किसी और के इसे ख़रीदने पर निर्भर करती है।
कहां और कैसे निवेश करें
सभी स्टॉक ट्रेडिंग, स्टॉकब्रोकर के ज़रिए की जाती है। असल मायने में ये ट्रेडिंग, स्टॉक एक्सचेंज के ज़रिए होती है, और स्टॉकब्रोकर इसके सदस्य होते हैं। भारत में केवल दो ही स्टॉक एक्सचेंज हैं, द बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE)। दोनों में ही कंप्यूटराइज़्ड सिस्टम मौजूद है और सारी ट्रेडिंग कंप्यूटर के ज़रिए ही होती है।
स्टॉक से बाहर कैसे निकलें
स्टॉक को बेचा भी स्टॉक ब्रोकर के ज़रिए जाता है। जब आपका स्टॉक बिक जाता है, तो पैसे आपके बैंक अकाउंट में दो दिनों में आ जाते हैं (छुट्टियां छोड़ कर)।
स्टॉक-ब्रोकर का चुनाव
स्टॉक-ब्रोकर का चुनाव एक अहम फ़ैसला है। आपका स्टॉक ब्रोकर कोई बड़ी ऑनलाइन सर्विस भी हो सकती है, जैसे - आईसीआईसीआई डाइरेक्ट, एडेलवाइस और एचडीएफ़सी सेक्यूरिटीज़। या फिर छोटी संस्था भी हो सकती है, जो कस्टमर को उसकी ज़रूरत के हिसाब से अपनी सेवाएं देती हो। छोटे निवेशक के लिए ऑनलाइन सर्विस ज़्यादा बेहतर रहती है।
टैक्स के बारे में
· निवेशक के पास जो भी डिविडेंड या लाभ, अप्रैल 01, 2020 तक आते हैं उनपर टैक्स के स्लैब के मुताबिक़ टैक्स लगता है। इससे पहले उन्हें 10 प्रतिशत का डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स भी देना होता था, जो कंपनी लेती थी और निवेशक को तभी देना होता था जब डिविडेंड की रक़म एक साल में ₹10 लाख से ज़्यादा हो जाती थी।
· अब ₹5,000 से ज़्यादा की डिविडेंड आय पर 10 प्रतिशत TDS यानि स्रोत पर लिया जाने वाला टैक्स लगता है।
· अगर आप एक ही साल के भीतर स्टॉक बेचते हैं तो उस पर 15 प्रतिशत का कैपिटल गेन टैक्स भी लगता है। स्टॉक को एक साल से ज़्यादा रखने पर, अगर आप का मुनाफ़ा ₹1 लाख से ऊपर है, तो उसपर 10 प्रतिशत टैक्स लगता है।
· अगर शेयर की डिलिवरी होती है (चाहे बेचें या ख़रीदें), तो हर स्टॉक की वैल्यू पर 0.1 प्रतिशत का टैक्स लगता है जिसे STT कहते हैं। एक ही दिन में किए जाने वाले लेन-देने पर, 0.025 प्रतिशत टैक्स लिया जाता है। ये सिर्फ़ स्टॉक बेचने पर ही लिया जाता है। आपको STT के पेमेंट में शामिल होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि ये आपका स्टॉकब्रोकर काट लेता है।