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कोविड, युद्ध और ऐसी ही बातों के मायने

परिवर्तन लाने वाली घटनाएं जैसे-जैसे बढ़ती हैं, निवेश को लेकर हमारे रुख़ में उतनी ही स्थिरता बढ़ जानी चाहिए।

कोविड, युद्ध और ऐसी ही बातों के मायने

यूक्रेन हो या रूस, या फिर ऐसा ही कुछ और, इस सब पर मेरी कोई निर्णायक राय नहीं है, और मुझे लगता है कि आप इस बात को पसंद करेंगे। इसके बजाए मैं अपना ध्यान, हमारे निवेश पर दुनिया भर की घटनाओं के होने असर पर रखूंगा, और इस बात पर भी कि इसे लेकर हमें कुछ करने की ज़रूरत है, तो क्या है।

अब ये बात काफ़ी हद तक साफ़ हो चुकी है कि मार्केट के बड़े खिलाड़ी मानते हैं-संघर्ष के ये बादल जल्द ही छंट जाएंगे। हालांकि, यूएस मार्केट में कुछ हफ़्तों से गिरावट रही है। और हाल ही के दिनों में, जैसे-जैसे संघर्ष होने की बात साफ़ होती गई है, वैसे-वैसे गिरावट में भी तेज़ी आई है। मगर फिर, एक्शन शुरु होने के एक ही दिन बाद, मार्केट एक बार फिर से ऊपर जाने लगे। S&P 500 इन्डैक्स ने 1.5 प्रतिशत का उछाल रिकॉर्ड किया, जो एक ही दिन में होने वाला बड़ा उछाल है। इसी तरह, यूक्रेन की स्थिति का जनवरी की गिरावट से कोई लेना-देना नहीं है।

भारत में भी हमने ऐसा ही कुछ देखा है। 24 फ़रवरी को जब यूक्रेन में लड़ाई शुरु ही हुई, तब मार्केट क़रीब 5 प्रतिशत तक गिर गए-ये एक ही दिन में होने वाली बड़ी गिरावट थी, जो काफ़ी समय बाद हुई। इसके ठीक एक दिन बाद दुनिया के दूसरे मार्केट की तरह, हमारे मार्केट का मूड फिर से सुधर गया। इसके अलावा चाईनीज़ वायरस के समय मार्केट के साथ जो हुआ, युद्ध की धुंध छंटने और आगे का रास्ता दिखाई देने में कुछ हफ़्ते या कम-से-कम कुछ दिन और लग ही जाएंगे। मगर फिर अभी से इतना उत्साह क्यों है?

दरअसल, इस उतार-चढ़ाव के कारणों को जानना इतना मुश्किल भी नहीं है। हालांकि मैं ग़लत हो सकता हूं, पर मुझे लगता है कि वॉल स्ट्रीट और दूसरे मार्केट्स के धुरंधर मानते हैं कि यूरोप का ये संकट, उनकी उम्मीद के मुताबिक़ लीक्विडिटी की कमी को कुछ और टाल देगा। दुनिया भर में कुछ हफ़्तों पहले की गिरावट मुझे याद है, और वो इसीलिए थी क्योंकि धन की तंगी का डर था। यूनाईटेड स्टेट्स में मंहगाई के 40-साल के रिकॉर्ड स्तर पर होने की बात मैंने कुछ ही हफ़्तों पहले लिखी भी थी।

पिछले कुछ साल में यूएस फ़ेडरल रिज़र्व ने जिस बड़ी संख्या में डॉलर छापे, उससे ये होना ही था। 2008 में, यूनाईटेड स्टेट्स में डॉलर की सप्लाई $7.5 ट्रिलियन थी। 2019 तक ये सप्लाई दोगुने से ज़्यादा हो गई। अब ये बढ़ कर $21 ट्रिलियन हो गई है। 2020 के अंत में किसी ने कैलकुलेट किया था कि जितने भी डॉलर अब तक चलन में आए हैं, उनका 20 प्रतिशत पिछले दस महीनों में ही प्रिंट किया गया है। मुझे यक़ीन है कि ये आकंड़ा अब और भी बढ़ गया होगा।

अब ऐसा लगता है, जैसे वॉल स्ट्रीट ने फ़ैसला किया है कि एक और संकट की आंशका में कम-से-कम कुछ और समय के लिए डॉलरों की ये बाढ़ नहीं थमेगी। यही वजह है कि मार्केट फिर से ऊपर उठ रहे हैं। हालांकि आगे क्या होगा इसकी भविष्यवाणी का कोई तरीक़ा नहीं है। ग़ौर करने वाली बात है कि बाइडेन सरकार मंहगाई को लेकर खासी चिंतित है, इसीलिए रूस के ख़िलाफ़ बड़े प्रतिबंधों के बावजूद यूएस ने रूस के पेट्रोलियम और गैस के ऑपरेशन, बिना किसी रोक-टोक के चलने दिए हैं।

एक निवेशक को तौर पर आपको आगे क्या करना चाहिए? मैं तो यही कहूंगा कि आप ख़बरें पढ़ते रहें, मगर अपने निवेश के नज़रिए पर इसका प्रभावन नहीं पड़ने दें। मेरे और आपके पास, भविष्य में झांक कर इस बात का पता लगाने का कोई तरीक़ा नहीं है कि ग्लोबल लीक्विडिटी या लड़ाई या ब्लादिमीर पुतिन या जो बाइडेन की मनःस्थिति को लेकर आगे क्या होने वाला है। हालांकि, महत्वपूर्ण ये है कि अगर हम उस तरह के सटोरिए नहीं हैं, जो कुछ ही दिनों के अंदर स्टॉक को ख़रीदने-बेचने का काम करते हैं, तो हमें ये सब जानने की कोई ज़रूरत भी नहीं हैं।

हालांकि, जो लोग मेरे कॉलम पढ़ते हैं उनमें से ज़्यादातर असली निवेशक हैं। इन सभी ऐतिहासिक घटनाओं के होने से, इसमें कम ही शक़ है कि बहुत से स्टॉक्स में अस्थिरता और शायद तेज़ गिरावट देखने में आएगी। मगर, सच तो ये है कि ऐसे झटके सहने के लिए भारतीय बाज़ार पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हैं। बड़े घरेलू इन-फ़्लो, ख़ासतौर पर इक्विटी SIP और EPFO, एक सुरक्षा की तह बना रहे हैं जो पहले मौजूद नहीं थी। कुछ रुकावटें आ सकती हैं, मगर वो निवेशक जो अपने निवेश की क्वालिटी पर फ़ोकस बनाए रखते हैं और इक्विटी के दामों में गिरावट का फ़ायदा उठाने से नहीं झिझकेंगे, वो बेहतर करेंगे।

और अंत में, अगर आप क्वालिटी स्टॉक्स पर फ़ोकस बनाए रहते हैं, तो अगले कुछ हफ़्तों और महीनों में आपको ऐसे कई मौक़े मिलेंगे जब आप अच्छी वैल्यू पर स्टॉक ख़रीद सकेंगे।
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