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कैपिटल टैक्स को ठीक करना ज़रूरी

निवेशक अक्सर कैपिटल टैक्स गेन्स के नतीजों को तब तक नज़रअंदाज़ करते हैं जब तक बहुत देर नहीं हो जाती। सही टैक्स स्ट्रक्चर इसे ठीक करने में मदद करेगा।

कैपिटल टैक्स को ठीक करना ज़रूरी

निवेश का एक पहलू ये है कि कई नए निवेशकों को कैपिटल गेन्स टैक्स को समझने में परेशानी होती है। भारत में ये इतनी तरह से लागू होता है कि इसकी इतनी वैरायटी लोगों के लिए दिक़्क़त पेश करती है। रेवेन्यू सेक्रेटरी तरूण बजाज, ने हाल ही में दिए अपने बयान में माना कि सरकार भी समझती है कि ये एक ऐसा मसला है जो लोगों के बचत और निवेश के व्यवहार को प्रभावित करता है और कैपिटल गेन्स टैक्स को री-स्ट्रक्चर करने पर काम किया जा रहा है।

अक्सर बचत की शुरुआत करने वाले कैपिटल गेन्स की बात जान कर अचरज करते हैं। लोग बैंकों से अच्छी तरह वाक़िफ़ है, और बैंक में जमा रक़म पर मिलने वाले ब्याज को टैक्स की आमदनी के तौर पर देखना उन्हें स्वाभाविक लगता है। पर जब निवेश से मिलने वाले किसी फ़ायदे पर टैक्स देने की बात हो, तो ये उनके लिए एक आश्चर्य की तरह होता है, कि https://betah.valueresearchonline.com/stories/50106/the-best-tax-saving-avenue से हट कर, एक बिल्कुल ही अलग तरह का टैक्स भी मौजूद है। इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उनकी आमदनी का स्लैब या उनकी सैलरी का स्ट्रक्चर क्या है, क्योंकि ये उससे बिल्कुल अलग तरह का कैलकुलेशन होता है।

हालांकि, कैपिटल गेन्स टैक्स को समझना और उसे अपनी इन्कम टैक्स प्लानिंग में शामिल करने में उन्हें मुश्किलें आती हैं, क्योंकि बहुत से निवेशक तो ये जानते ही नहीं हैं कि कैपिटल गेन्स टैक्स जैसी भी कोई चीज़ होती है। मगर ये कैसे संभव है? क्योंकि पिछले कुछ दशकों में सरकारों ने इसे बेहद भ्रामक बना दिया है।

निवेशकों को पता है कि कुछ भी बेचने पर टैक्स देना होता है, मगर इसे लेकर समझ ऐसी है कि अगर वो स्टॉक्स बेचते हैं - तो उस पर एक तरह का टैक्स दिया जाना है, अगर डेट फ़ंड बेचा है - तो उस दूसरी इस तरह का टैक्स लगेगा, और प्रॉपर्टी पर - अलग तरह से टैक्स होगा, यानि हर चीज़ का - अपना अलग रेट है। इसी तरह छूट का अलग स्ट्रक्चर है, और इस बात की अपनी अलग ही परिभाषा है कि लंबी-अवधि का निवेश किसे कहते हैं और छोटी-अवधि का निवेश क्या कहलाएगा। और-तो-और इस सबके ऊपर, इंडेक्सेशन का कॉन्सेप्ट भी है, जो बुनियादी तौर पर महंगाई को एडजस्ट करना होता है।

इन्डेक्सेशन इसलिए होता है क्योंकि महंगाई समय के साथ-साथ धन की क़ीमत घटा देती है। वहीं पूरी अर्थव्यवस्था और एसेट की क़ीमत बढ़ती जाती है, और इसलिए गेन्स कैलकुलेट करते समय इसका ध्यान रखने और एजस्ट करने की ज़रूरत होती है। हालांकि कुछ कारणों से-जिसे सरकार ने बताने की ज़हमत नहीं की है-फ़िलहाल लंबी-अवधि के इक्विटी निवेश पर इंडेक्सेशन नहीं किया जा रहा है। ऐसा करने का कोई तर्क समझ में नहीं आता है, मगर फ़िलहाल ऐसा ही है।

कुछ भी हो, ये एक अच्छी ख़बर है कि कैपिटल गेन्स टैक्स के स्ट्रक्चर में कुछ सुधार होने जा रहा है। मुझे उम्मीद है कि ये सिर्फ़ ऊपरी तौर पर न हो कर गहराई से किया जाएगा। इसके स्ट्रक्चर के चार हिस्से हैं: एसेट क्लास, लंबी और छोटी अवधी को लेकर, इनके रेट के लिए, और लंबी-अवधि के निवेश के इंडेक्सेशन को लेकर। इसके अलावा कुछ और भी विषय हैं जिनपर विचार करने की ज़रूरत है, जैसे - हर साल इक्विटी पर मिलने वाली ₹1 लाख की छूट। उम्मीद है, ये सब एक सही और व्यवस्थित ढ़ांचे में ढाले जाएंगे, जिससे बचत करने वालों को समझने में मदद होगी और ये बदलाव कैपिटल गेन्स में एक सही परिप्रेक्ष्य जोड़ेंगे, जो फ़िलहाल मौजूद नहीं है।

उदाहरण के लिए, लोग कह सकते हैं कि 1+ साल का बैंक डिपॉज़िट और डेट फ़ंड में निवेश, दोनों पर ही 5% का रिटर्न मिलता है, तो कमोबेश दोनों एक ही हुए। मगर नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। डिपॉज़िट में, आपसे हर क्वार्टर में टैक्स लिया जाता है और जितने पर टैक्स लिया जाता है, उतना पैसा आगे की कंपाउंडिंग के लिए मौजूद नहीं रहता। मगर डेट फ़ंड में, आपका सारा पैसा तब तक कंपाउंड होता रहता है जब तक आप उसे रिडीम नहीं कर लेते। टैक्स रेट की बात तो छोड़िए, ये फ़र्क़ भी कम ही निवेशकों को समझ आता है। दूसरा उदाहरण जो अक्सर दिखता है कि जब प्री-टैक्स रिटर्न एक से रहते हैं, तब भी एक इक्विटी (या इक्विटी फ़ंड निवेशक) निवेशक जो अपना निवेश निकालता रहता है उसका टैक्स के बाद का रिटर्न उतना नहीं होता, जितना उस निवेशक का होता है जो अपने निवेश को लंबे समय के लिए होल्ड कर के रखता है।

निवेश का हर निर्णय इस बात को अच्छी तरह समझ कर लिया जाना चाहिए कि जब आप अपना निवेश निकालते हैं, तो आपको कितना कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा। सभी अनुभवी निवेशक ऐसा ही करते हैं, मगर निवेश की शुरुआत करने वालों को भी इसे जानने-समझने की कोशिश करनी ही चाहिए। अगर सरकार असल में इसके स्वरूप में बदलाव कर के इसे तर्कसंगत बना देती है, तो एक निवेशक के लिए ये सब समझना काफ़ी आसान हो जाएगा।


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