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स्टॉक क्रैश से कैसे निपटें

आपको पहले ही पता है कि क्या करना चाहिए, ज़रूरत सिर्फ़ बुनियादी बातों को एक बार फिर से दोहराने की है।

स्टॉक क्रैश से कैसे निपटें

अगर आप इक्विटी में आने वाले उस क्रैश से चिंतित हैं जिसकी आशंका जताई जा रही है, तो कृपया ऐसा मत करें-ये क्रैश जैसा कुछ नहीं है। ये सिर्फ़ एक ‘ब्रोकन न्यूज़’ या ‘आधी-अधूरी ख़बर’ है जो एयरवेव्ज़ और इंटरनेट पर 24/7 चलने वाले मन-गढ़ंत ड्रामे की उपज है। किन्हीं-दो साल, तीन साल या उससे ज़्यादा के अर्से में-इक्विटी एक अच्छे ज़ोन में हैं। जो आपको नज़र आ रहा है वो एक छोटा सा विराम है। हां, ऐसा ज़रूर हो सकता है कि ये ज़रा लंबे समय तक खिंच जाए, मगर इसमें कुछ भी नया नहीं है। तो क्या आपको इसके लिए कुछ करना चाहिए? क्या इससे निपटने का कोई ख़ास तरीक़ा है?
चलिए इसे दूसरे नज़रिए से देखते हैं। चाहे निवेश को लेकर लिखे गए लेख हों या कोई चर्चा, या फिर निवेश पर किसी भी तरह की कोई बात हो, आप कितनी बार इस विषय में कुछ नया पढ़ते और सुनते हैं? मुझे ख़ुद निवेश और पर्सनल फ़ाईनांस पर लिखते और बात करते, क़रीब तीन दशक होने जा रहे हैं और कई-कई बरस गुज़र जाते हैं जब इस विषय पर कुछ भी नया नहीं कहा जाता। मगर हां, कुछ ऐसी बातें ज़रूर होती हैं जो अच्छी हों, बुरी हों या फिर बक़वास हों, मगर इस सब में बुनियादी सिद्धांत नहीं बदलते। उदाहरण के लिए, मैं ईमू फ़ार्मिंग की बात कर सकता हूं या फिर क्रिप्टोकरंसी की, जो कभी एक नयी चीज़ हुआ करते थे, मगर इस सब के पीछे एक पुराना सिद्धांत काम करता है-ऐसे किसी निवेश को मत ख़रीदिए जो कोई आर्थिक वैल्यू नहीं जोड़ता।
ऐसी चीज़ों का एक सेट है-ये निवेश के बुनियादी आईडिया हैं-और जब भी मार्केट डांवाडोल होने लगे आपको उन्हें याद कर लेना चाहिए। ये विचार नए नहीं हैं, और असल में इन्हें सिर्फ़ याद किए जाने की ज़रूरत है। इनमें से कुछ, जिन्हें मैंने बीते सालों में इकठ्ठा किया है, उनके बारे में मैं यहां बात कर रहा हूं।
टाईम: सबसे महत्वपूर्ण बात है आपके निवेश की अवधि और यही सबसे ज़्यादा मायने रखती है। आप किसी भी निवेश की अवधि पर नज़र डालें, फिर चाहे किसी भी मार्केट देखें तो आप पाएंगे, कि गिरावट सदा के लिए नहीं होती, मार्केट का लगातार ऊपर उठना ही हमेशा होने वाली बात है। इसके अंत में, ये आमतौर पर एक या दो साल, और कभी-कभी कुछ महीनों के थोड़े वक़्त लिए नीचे आता है। गिरावट एक मार्केट ट्रैप तभी बनती है, जब आपको किसी ख़ास समय के दौरान, और किसी ख़ास काम के लिए मार्केट से धन निकालने की ज़रूरत पड़ती है, मगर ये मार्केट की ग़लती नहीं है। इक्विटी इन्वेस्टिंग इस तरह से नहीं की जाती है।
क्वालिटी और डाईवर्सिफ़िकेशन: मुझे भरोसा है कि ऊपर जो बात मैंने कही है, उसमें कुछ लोगों को वो दिखा होगा जिसे वो परेशानी समझते हैं। यानि, क्या हो अगर आपके स्टॉक कभी ऊपर ही न उठें? उदाहरण के लिए, ज़रा सोचिए 2008-2010 के क्रैश के बाद उन सभी इम्फ़्रा स्टॉक्स का क्या हुआ? हालांकि, इसका जवाब भी सरल है-क्वालिटी और डाईवर्सिफ़िकेशन। जी हां, कभी ऐसा भी हो सकता है कि कुछ स्टॉक हमेशा के लिए डूब जाएं, मगर एक सतर्क निवेशक उन्हें लेगा ही नहीं, या फिर उन्हें उतना ही ख़रीदेगा जिसके डूबने से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।
ख़रीदिए: अगर आपने ऊपर बताई दोनों बातों को समझ लिया है-और इस पर अमल करना मुश्किल भी नहीं है-तो मार्केट की हर मंदी के दौरान या करेक्शन होने पर ही ख़रीदने का असली मौक़ा रहता है। ये बात भी कोई नई नहीं है। आप पिछले अवसर के बारे में ही सोच कर देखिए। फ़रवरी 2020 के मध्य में, सेंसेक्स 41,000 पर था। दिसंबर महीने के मध्य में, ये 47,000 पर पहुंच गया। यानि एक अच्छा स्मूथ 10%+. सिवा इसके, कि फ़रवरी और दिसंबर के बीच में बरसों बाद वो शानदार अवसर आया था, जब ख़ूब ख़रीदा जा सकता था! क्योंकि इस समय मार्केट असल में 30,000 के नीचे चला गया था। इस मौक़े की बात को नज़अंदाज़ करते हुए ये कहना आसान है, “हां, मगर उस वक़्त ख़रीदने का हौसला किसके पास था।” मगर बताइए निवेशकों ने किया। क्योंकि अगर मार्च, अप्रैल और मई में बेचने वाले थे, तो हर बेचने वाले के लिए ख़रीदार भी तो मौजूद थे, है न? आख़िर वो कौन लोग थे जो उस वक़्त ख़रीद रहे थे? वो दुनिया के सबसे स्मार्ट निवेशक थे। सोचिए, दूसरों की घबराहट से उन्हें कितना ज़बर्दस्त फ़ायदा मिला। अंग्रेज़ी की एक पुरानी कहावत है, ‘Buy when there is blood in the streets’ यानि ख़रीदने का सही वक़्त वही है, जब हर तरफ़ बेचने की अफ़रातफ़री मची हो। अगर मार्केट में मौजूदा गिरावट क़ायम रहती है या और गहरी हो जाती है, तो आप सिर्फ़ इस बात को याद रखिएगा।
ऑप्टिमाईज़ मत करें: जब लगातार गिरावट आ रही हो, तब निवेशकों को बहुत ज़्यादा ऑप्टमाईज़ करने से बचना चाहिए। यानि मार्केट का सबसे निचला स्तर पकड़ने कोशिश में नहीं रहना चाहिए जो कुछ निवेशक कर बैठते हैं। आज जब आप 2020 की तरफ़ मुड़ कर देखते हैं, तो आप 3 अप्रैल को ख़रीदते हुए तो नहीं दिखाई देते। इसीलिए मैंने कहा कि स्मार्ट लोग मार्च, अप्रैल और मई में, यहां तक की जून और जुलाई में भी ख़रीद रहे थे। ख़रीदने के मौक़े को परफ़ेक्ट होने की कोई ज़रूरत नहीं है-परफ़ेक्शन आपको तभी दिखाई देगा जब आप पीछे मुड़ कर देखेंगे। असल ज़िंदग़ी में जो भी बढ़त आपको मिल सके, वो अच्छी ही होती है।
तो, अब आपको ये क्रैश कैसा लग रहा है? मुझे उम्मीद है कि मैंने आपकी सोच को बदला होगा, बहुत नहीं तो कुछ-कुछ ही सही। जैसा कि मैंने कहा, आप ये सब पहले से ही जानते थे-मैं तो सिर्फ़ इसे दोहरा कर, याद दिला रहा हूं।


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