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ख़ून और पैसा

थैरेनोस जैसा फ्रॉड अहमियत नहीं रखते, मगर क्रिप्टो जैसे मायने रखते हैं

ख़ून और पैसा

ज़्यादातर लोग जिनकी रुचि बिज़नस में है उन्होंने थैरेनोस नाम की कंपनी के बारे में सुना होगा। 2005 के बाद, थैरेनोस का ये दावा चर्चित रहा कि उसके पास ब्लड टेस्ट करने वाली एक क्रांतिकारी टेक्नोलॉजी है, जिससे 200 से ज़्यादा तरह के टेस्ट, सिर्फ़ एक ख़ून की बूंद से किए जा सकते हैं। कंपनी का इवैलुएशन U.S.$10 बिलियन से ऊपर किया गया और सिलिकॉन वैली के स्टार्टअप इस कंपनी को मैडिकल टैक्नोलॉजी में बड़े बदलाव का अगुवा मानने लगे। लगने लगा कि पुराने तरीक़े से मेडिकल टेस्टिंग करने में लीडर रही सीमंस जैसी कंपनी के दिन अब लद गए हैं, और इसकी जगह अब थैरेनोस और उस जैसी कंपनियां ले लेंगी क्योंकि जल्द ही ये वेंचर कैपटिलिस्ट से निवेश हासिल कर लेंगी।

पर हम सब जानते हैं, थैरेनोस की टेक्नोलॉजी फ़ेक थी। इनकी नई टेक्नोलॉजी, 200 से ज़्यादा टेस्ट करने का दावा कर रही थी, मगर असलियत में ये क़रीब 12 ही टेस्ट कर पाती थी, और वो 12 भी भरोसेमंद नतीजे नहीं दे रहे थे। ये एक मज़ाक लगता है, मगर सच्चाई है कि थैरेनोस सीक्रेट तरीक़े से सीमंस की मशीनों का ही टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल कर रही थी। आख़िरकार, फ़्रॉड पकड़ा गया और कंपनी को 2018 में लीक्विडेट कर दिया गया। कुछ ही दिनों पहले कंपनी की फ़ाउंडर और सीईओ को जांचकर्ताओं ने ट्रायल में फ़्रॉड का दोषी पाया। वीकीपीडिया पेज के मुताबिक़, क़रीब U.S.$720 मिलियन थैरेनोस में इन्वेस्ट किए गए, इसमें ज़्यादातर प्राईवेट इन्वेस्टमेंट ही था, यानि ये वैंचर कैपिटल का फ़ंड भी नहीं था। और ज़ाहिर है सब डूब गया।

मेरे पाठकों के लिए एक सवाल है: क्या आप इस फ़्रॉड और लालच की कहानी से बेहद नाराज़ हैं? मैं नहीं हूं, ज़रा भी नहीं। मेरा मतलब है कि मैं थोड़ा हैरान ज़रूर हूं कि बड़े-बड़े हाई-पावर वाले नामों की फ़ेरहिस्त जो थैरेनोस के बोर्ड में थी वो मूर्ख बनते दिखाई दिए। ठीक उन्हीं बहुत अमीर लोगों की तरह, जिन्होंने कई सौ मिलियन डॉलर कंपनी में लगाए, मगर मेरी हैरानी बस यहीं तक है। तो क्या हुआ? अब थैरेनोस की पूरी कहानी पढ़ कर, मुझे लगता है कि आज के संदर्भ में ये चाय की प्याली में आए तूफ़ान की तरह है। आज थैरेनोस स्कैम कुछ अजब सा, मगर छोटा सा चैप्टर है जिसमें कुछ लोग क़रीब-क़रीब ठगे गए। असल में आम लोगों को कोई नुक्सान नहीं हुआ।

इसके उलट, अब ऐसी घटनाओं पर नज़र डालिए जो आजकल हो रही हैं। जिस दिन थैरेनोस का फ़ैसला आया, उसी दिन मैंने एक ख़बर पढ़ी कि कैसे एक क्रिप्टो स्कैम करने वाले गैंग ने केरल में बहुत सारे लोगों को ‘ICO’, यानि इनिशियल क्वाईन ऑफ़रिंग में ठग लिया। कुल मिला कर, इन लोगों के कुछ ₹1,200 करोड़ ले लिए गए। इस मामले में कुछ इन्वेस्टीगेशन चल रही है और कुछेक लोगों को अरेस्ट भी किया गया है, मगर पैसा रिकवर नहीं हुआ है। कम-से-कम अब तक की ख़बरों में तो मुझे ऐसा नहीं दिखा है।

ये ₹1,200 करोड़ हमारे लिए ज़्यादा महत्व रखते हैं। जैसा कि मैंने अक्सर कहा है, क्रिप्टोकरंसी का काम स्कैम और चोरी के लिए एकदम टेलर-मेड है। और अगर कोई ये समझता है कि ये केरल का ICO केस, अकेला ऐसा केस है तो वो भ्रम में जी रहा है। ये ऐसी ही ख़बरों की लंबी कतार में, बस पहली ऐसी ख़बर है जिसे आप आने वाले समय में और ज़्यादा सुनेंगे।

मैं एक बात साफ़ करना चाहता हूं-जो मैं कह रहा हूं उसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि क्रिप्टोकरंसी को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया जाना चाहिए या नहीं, और क्रिप्टो के रेग्युलेशन किस तरह के होने चाहिए। चाहे आप क्रिप्टो के ख़िलाफ़ हों (मैं तो बिल्कुल हूं) या आप इसके पक्षधर हों, या फिर आप इसके बारे में बस उदासीन ही क्यों न हों, ऐसे फ़्रॉड से आपको सतर्क हो जाना चाहिए। सच तो ये है कि अगर आप क्रिप्टो के पक्षधर हैं तो आपको इसे लेकर और ज़्यादा सावधान हो जाने की ज़रूरत है।

क्रिप्टो का कोई रेग्युलेटरी स्ट्रक्चर नहीं है। कोई भी अपने-आप को क्रिप्टो एक्सचेंज घोषित कर सकता है, या क्वाइन जारी कर सकता है, या फिर इसी तरह की कोई बकवास चीज़ कर सकता है। लोग उसके आसपास मंडराएंगे ही। कुछ ही दिनों पहले एक दावा था कि वज़ीरएक्स, एक स्वघोषित ‘एक्सचेंज’, जो ख़ुद को भारत का सबसे बड़ा होने का दावा करता है, उसमें ज़ीरोधा से भी ज़्यादा मेंबर हैं। जहां स्टॉक में अंदाज़ा लगाना निवेश नहीं कहा जा सकता, मगर उसमें कम-से-कम सुरक्षा तो मौजूद है और इसका एक आर्थिक उद्देश्य भी है।

लोग हज़ारों करोड़ एक बिल्कुल बेक़ाबू चीज़ में झोंक रहे हैं। वो समय पहले ही गुज़र गया है जब सरकार को इसे रेग्युलेट करना शुरु कर देना चाहिए था।


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