जहां, हमारी ज़रूरतों की एक लिस्ट होती है जो अंतहीन लगती है, वहीं कुछ ज़रूरतें ऐसी भी होती हैं जिनके समय को लेकर आप समझौता नहीं कर सकते। फ़ाइनेंशियल प्लानिंग का अहम हिस्सा, उन फ़ाइनेंशियल गोल को पहचानने का है जिन्हें टाला नहीं जा सकता है। ज़रा सोचिए - क्या आप अपने बच्चों के स्कूल के दाखिले को पैसों की कमी से टालना चाहेंगे? इसी तरह रिटायरमेंट है, अगर आपके इम्पलॉयर की पॉलिसी कहती है कि आप 60 साल की उम्र पर रिटायर हो जाएं, तो ये बदला नहीं जा सकता है। आप ये नहीं कह सकते कि रिटायरमेंट की तैयारी के लिए आपको कुछ साल और काम करने की मोहलत चाहिए। इसके उलट, कुछ दूसरे फ़ाइनेंशियल गोल, जैसे - घर ख़रीदना, कार लेना या फिर छुट्टियां में घूमने बाहर जाना - टाला जा सकता है।
अपने निवेश की पूरी फ़ाइनेंशियल प्लानिंग करने के बाद, आपको ‘टाले न जाने वाले आर्थिक गोल’ के लिए एक्स्ट्रा नोट बनाने की ज़रूरत क्यों है? इसका जवाब छुपा है लंबी-अवधि की फ़ाइनेंशियल प्लानिंग का रिस्क समझने में। ये रिस्क है - अगर ये हो गया तो क्या होगा - यानि ऐसी कोई घटना घट गई जो आपकी फ़ाइनेंशियल प्लानिंग को पटरी से उतार दे तो क्या होगा। मान लीजिए कि जितना सोचा था आपको उससे कम रिटर्न मिलता है? क्या होगा अगर मार्केट तभी गिर जाए जब आपको पैसों की ज़रूरत है और निवेश को कैश करने का समय आ गया है? जैसे कि वो लोग जिनकी पैसे निकालने की तारीख़ मार्च 2020 में थी (जब कोविड-19 के चलते स्टॉक मार्केट काफ़ी गिर गया था), तो उन्होंने बहुत अच्छे से बनाए अपने प्लान को आख़िरी वक़्त में बिगड़ते देखा होगा। ये एक हाईवे पर स्पीड-ब्रेकर होने जैसा है, और आप रफ़्तार कम होने से हुई देर की भरपाई सिर्फ़ और ज़्यादा समय लगा कर ही कर सकते हैं। बुरी बात ये है कि जो गोल टाले नहीं जा सकते, उन्हें हासिल करने के लिए आपको और ज़्यादा वक़्त नहीं मिलता। आखिर स्टॉक-मार्केट में अचानक उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। इस बात को समझने के लिए बहुत सोचने की ज़रूरत नहीं कि इक्विटी में लंबे वक़्त के लिए किया गया निवेश काफ़ी फ़ायदा देने वाला होता है, मगर इस बात का कोई स्टेटेस्टिकल मॉडल नहीं बनाया जा सकता जो आपको बताए कि उस वक़्त स्टॉक मार्केट की क्या स्थिति होगी जब आपको पैसों की ज़रूरत होगी।
तो, आप अपने निवेश को अपने ऐसे गोल के लिए उतार-चढ़ाव से प्रूफ़ कैसे करेंगे? इसका उपाय सरल है। आप प्लानिंग करते हुए अपने प्लान में कुछ सेफ़्टी वॉल्व बनाइए। ऐसी जगह छोड़िए जो आपको अतिरिक्त राहत दे सके। इसे आप इस तरह से कर सकते हैं:
• अपनी मासिक किश्तों (SIP) को कैलकुलेट करते समय रिटर्न का रेट कम रखें।
• जब आपको पैसों की ज़रूरत होगी उस समय से एक या दो साल पहले तक का ही समय अपने निवेश के लिए रखें।
आईए इसका उदाहरण देखते हैं।
मान लीजिए 10 साल बाद आपके बच्चे की कॉलेज फ़ीस के लिए आपको ₹20 लाख की ज़रूरत होगी। आमतौर पर, आप अपने इक्विटी निवेश से 12 प्रतिशत रिटर्न का अनुमान लगाते हैं। तो, आप हर महीने ₹9,000 बचाने का फ़ैसला करते हैं। हालांकि, ये अकलन गड़बड़ हो सकता है, अगर 10वां साल ऐसे समय में आए जब मार्केट में मंदी का दौर हो।
ऐसी ही घटनाओं से अपने प्लान को सुरक्षित रखने के लिए आपको कुछ जगह बनानी होगी। उदाहरण के लिए, आप अपने रिटर्न की उम्मीद को 12 प्रतिशत से घटा कर, 10.5 प्रतिशत कर दीजिए, और अपने निवेश की अवधि में से एक साल कम कर दीजिए। इस नए तरीक़े से कैलकुलेट करने से, अब ₹25.5 लाख जमा करने के लिए (इसमें कुछ बोनस भी जोड़ लिया है), आपको ₹11,500 हर महीने निवेश करने होंगे। मार्केट अगर सच में ही यू-टर्न ले लेता है, तो आपके पास सेफ़्टी नेट के तौर पर ₹5.5 लाख रुपए होंगे (25.5 लाख से 20 लाख घटा कर) या फिर आपके प्लान के गड़बड़ होने के 28 प्रतिशत तक के घाटे को सहने का और नींद न गंवाने का आराम रहेगा।
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