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बिल्डरों के दिखाए लुभावने सपनों से रहें ख़बरदार!

दुनिया भर के रियल एस्टेट घोटालों में आश्चर्यजनक समानता है

बिल्डरों के दिखाए लुभावने सपनों से रहें ख़बरदार!

मैं समझता हूं, अब तक आप सभी ने एक बड़ी चीनी रियल एस्टेट कंपनी, एवरग्रांड (Evergrande) के डूबने की ख़बर पढ़ ली होगी। अगर आप एवरग्रांड के पूरे मसले को समझने की कोशिश करें तो, आपको ये एहसास होगा कि महामारी से लेकर, रियल एस्टेट घोटालों का स्केल चीन में बहुत बड़ा होता है। चीन के 280 शहरों में, एवरग्रांड के 1300 रियल एस्टेट प्रौजेक्ट हैं। इस कंपनी ने 16 लाख अपार्टमेंट के लिए या तो पूरा पेमेंट, या उसका कुछ हिस्सा कस्टमर से ले रखा है। और अब ये कंपनी इस काबिल नहीं दिख रही है कि अपने वादे को पूरा कर सके। अपने बिज़नस को फ़ंड करने के लिए एवरग्रांड, ‘वैल्थ मैनेजमेंट प्रॉडक्ट’ भी ऑपरेट करती है, जिसमें लोगों के 6 बिलियन डॉलर अटके हुए हैं (ये आंकड़ा खुद एवरग्रांड का है, तो ये ज़्यादा भी हो सकता है)। इसके अलावा इस कंपनी ने इतनी जगहों से कर्ज़ लिए हैं कि ये सबकुछ बेहद चौंकाने वाला लगता है। इन्होंने चीनी, और विदेशी बैंकों से कर्ज़ लिया है, लोगों से कर्ज़ लिया है, पश्चिमी हेज-फ़ंड से कर्ज़ लिया है, और यहां तक कि कंपनी ने अपने ही कर्मचारियों से भी लोन ले रखा है।


मगर इन्होंने अपने कर्मचारियों से लोन कैसे लिया होगा? तो गॉफ़ादर (गॉडफ़ादर फ़िल्म के क़िरदार) के अदांज़ में कहा जाए तो, ‘एक ऐसा ऑफ़र दिया, जिसे वो मना नहीं कर सके’। अगर इस कंपनी के कर्मचारियों को अपना बोनस पाना था, तो उन्हें अपने इंप्लॉयर को एक शॉर्ट-टर्म लोन देना ही था। इस लोन को एक ऐसे पैकेज के तौर पर पेश किया गया, जो सेफ़ था, और ऊंची ब्याज-दर का ऑफ़र था। चीनी सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम किस्से भरे पड़े हैं कि कर्मचारियों ने अपने इंप्लॉयर को लोन देने के लिए, अपने दोस्तों, और परिवार, और यहां तक की बैंक से भी लोन लिया। सच कहूं तो दशकों से, हर तरह के फ़ाइनेशियल फ़्रॉड देखने-सुनने के बाद, कर्मचारियों से कर्ज़ लेने की इस ख़बर को, शायद मैं अपनी ज़िंदगी के सबसे अजीब फ़्रॉड का दर्जा दूंगा। एवरग्रांड मैनेजमेंट की इस जालसाज़ी के ‘सम्मान’ में तो, दुनिया भर के जालसाज़ों ने एक बार झुक कर सलाम ज़रूर किया होगा। जैसा कि वो विज्ञापन कहता है न, ‘व्हॉट एन आइडिया सर जी’! (What an idea sir ji!)। उम्मीद है कि इतने बड़े स्तर पर, और दुनिया भर में पड़ने वाले इसके असर के बावजूद, हम भारत में एवरग्रांड डिज़ास्टर के किसी बड़े प्रभाव से बच जाएंगे।


इस सबको देख कर, मेरे मन में ये सवाल भी उठता है कि ऐसा हमेशा रियल एस्टेट में ही क्यों होता है? चाहे वो पूरे सिस्टम का फ़ेलियर हो, जैसा 2007-8 में, अमेरिका के हाउसिंग स्कैम से शुरु हुआ, या फिर भारत में यूनिटेक और सारदा स्कैम, और अब चीन का एवरग्रांड जैसा घोटाला। ऐसा लगता है जैसे रियल एस्टेट ऐसे घोटालों के लिए उपजाऊ ज़मीन हो। शायद इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि निवेश करने वालों के दिलो-दिमाग में, रियल एस्टेट एक खास भावनात्मक जगह रखता है। हर किसी की चाह होती है कि उसका एक, ‘अपना धरती का टुकड़ा’ हो। इस चाह को तब और भी हवा मिल जाती है जब रियल एस्टेट के, ‘एक अच्छा निवेश’ होने का भ्रम भी इससे जुड़ जाता है। यही वजह है कि ये सैक्टर हमेशा घोटालों का शिकार होता रहा है।


ये सभी फ़ैक्टर मिल कर आधुनिक रियल एस्टेट इंडस्ट्री का एक अनोखा चरित्र गढ़ते हैं, जो कि दुनिया भर में एक सा नज़र आता है। ये एकमात्र इंडस्ट्री है जिसमें निर्माता, बड़ी से बड़ी कीमत अदा करने की भी परवाह करता नहीं देखा जाता! एवरग्रांड ने भी पूरे चीन में, अविश्वसनीय रूप से ऊंचे दामों पर ज़मीनें खरीदीं। क्योंकि ये तो तय था कि उनके खरीदार हर हाल में, एडवांस में पैसे देंगे, चाहे इसके लिए उन्हें कर्ज़ ही क्यों न लेना पड़े। मगर क्या आपको ये बात कुछ सुनी हुई लगती है? बिल्कुल लगेगी। ये वही व्यवहार है, जिसकी वजह से कई सौ प्रॉजेक्ट्स में, हमारे देश भर के बेशुमार खरीदारों की जान आफ़त में फंसी है। डवलपर्स महंगे से महंगे दामों पर ज़मीन खरीदने के लिए, एक प्रॉजैक्ट का एडवांस, दूसरे प्रॉजेक्ट में डालने का खेल खेलते हैं। जब तक सब ठीक-ठाक चलता है, खरीदार एडवांस देना जारी रखते हैं। इनमें से ज़्यादातर लोग होम-लोन ले कर ये एडवांस पैसे देते हैं। फिर जब कीमतें बिलकुल ही आसमान छूने लगती हैं, तो मार्केट लोगों की पहुंच से बाहर हो जाता है, और कुछ लोगों के पास (चीन में तो, बहुत से लोग) बचता है तो बस लोन, बर्बाद कर देने वाला लोन।


जो एवरग्रांड में हुआ उससे हमारा कोई सीधा सरोकार नहीं है। ऐसा लगता है कि चीन की सरकार अपने देश में, और भी कई बड़े बिज़नसों के साथ कोई खेल कर रही है, जिसमें हमारी कोई रुचि नहीं है। मगर हमारी चिंता रियल एस्टेट बिज़नस का वो समान चरित्र है, जिसके प्रति हमें सचेत रहना चाहिए। भारत में, रेरा (RERA) आने के साथ-साथ, सबसे बुरा दौर शायद गुज़र गया है। मगर फिर, जैसी इस इस बिज़नस की प्रकृति है, इसके बारे में कुछ पक्का कहा भी नहीं जा सकता। बात जब घर खरीदने की आए, तो निवेश करने वालों को समझदारी का दामन नहीं छोड़ना चाहिए, और ऐसे किसी भी सुंदर सपने के मोह में नहीं पड़ना चाहिए जो कुछ ज़्यादा ही लुभावना नज़र आए।


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