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रिटायरमेंट में गिरते रिटर्न से कैसे निपटें

50 साल के व्‍यक्ति के लिए पोर्टफोलियो में स्‍माल कैप अलॉकेशन क्‍या होना चाहिए

रिटायरमेंट में गिरते रिटर्न से कैसे निपटें

क्रेडिट रिस्‍क फंड को छोड़ कर शार्ट ड्यूरेशन फंड और दूसरी फिक्‍स्ड इनकम कैटेगरीज के रिटर्न में गिरावट काफी समय से गिरावट देखी गई है। हम यहां बता रहे हैं कि ऐसे हालात में आप क्‍या करें

पवन गुप्‍ता हाल में रिटायर हुए हैं। उन्‍होंने ऐसी सरकारी स्‍कीमों में काफी निवेश किया है जिनमें रिटर्न की गारंटी होती है। इसमें सीनियर सिटीजंस सेविंग्‍स स्‍कीम (एससीएसएस) और प्रधानमंत्री वय वंदन योजना (पीएमवीवीवाई) शामिल है। उनके पास निवेश के लिए अब भी 30 लाख रुपए है लेकिन वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि इस रकम को कहां निवेश किया जाए।

मौजूदा समय में वे क्रेडिट रिस्‍क फंड में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं। इसकी वजह यह हे कि डेट फंड की दूसरी कैटेगरीज काफी समय से काफी कम रिटर्न दे रही हैं। कुछ डिबेंचर्स भी उनको लुभा रहे हैं जो कि 8-9 फीसदी कर रेंज में रिटर्न दे रहे हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्‍या उनको इसमें निवेश करना चाहिए।


शार्ट ड्यूरेशन फंड के रिटर्न में गिरावट

- क्रेडिट रिस्‍क फंड को छोड़े दें तो शार्ट ड्यूरेशन फंड और दूसरे फिक्‍स्ड इनकम कैटेगरीज के रिटर्न में काफी गिरावट आई है।

- शार्ट ड्यूरेशन कैटैगरी को आईएलएंडएफएस संकट के बाद तगड़ा झटका लगा और अब ये फंड जोखिम लेने से बच रहे हैं। ज्‍यादातर फंड क्रेडिट कॉल से बचते हुए टॉप रेटेड असेट्स में निवेश कर रहे हैं। कोरोना महामारी शुरू के बाद से जोखिम से बचने का दौर शुरू हुआ और इस कैटेगरी के फंड अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले पेपर्स पर शिफ्ट हो चुके हैं। इस तरह के फंड ने अपना सॉवरेन एक्‍सपोजर बढ़ा दिया है। वहीं इन फंड का कम रेटिंग वाले पेपर्स में एक्‍सपोजर काफी कम हो गया है।

- कैटेगरी द्वारा कम जोखिम उठाने की रणनीति अपनाए जाने के अलावा भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से दरों में कटौती की वजह से भी इसके रिटर्न पर असर पड़ा।

क्रेडिट रिस्‍क फंड में है जोखिम

-कई महीनों तक निवेशक इन फंड को भुनाने के लाइन लगा रहे थे लेकिन ऐसे फंड ने पिछले कुछ माह से निवेश्‍ाकों को फिर से आकर्षित करना शुरू कर दिया है। ऐसा शायद इसलिए है क्‍योंकि वे फंड किसी और डेट फंड कैटेगरी की तुलना में काफी अधिक रिटर्न दे रहे हैं।

- ऊंचे रिटर्न का मतलब है ज्‍यादा जोखिम। ये फंड अपने पोर्टफोलियो का कम से कम 65 फीसदी फाइव स्‍टार से कम रेटिंग वाले पेपर्स में निवेश करते हैं।

- ऐसे इंस्‍ट्रूमेंट में ज्‍यादा क्रेडिट रिस्‍क होता है और इस बात की काफी अधिक आशंका रहती है कि कंपनी मूल रकम या ब्‍याज चुकाने में डिफॉल्‍ट कर सकती है। पिछले कुछ सालों के दौरान ऐसे डिफॉल्‍ट की वजह से क्रेडिट रिस्‍क फंड को नुकसान उठाना पड़ा है।

- सॉवरेन डेट इंस्‍ट्रूमेंट सरकार जारी करती है और इनमें जोखिम कम होता है। इसके बाद एएए, ए1 और एए प्‍लस रेटिंग वाले डेट इंस्‍ट्रूमेंट हैं। इनको आम तौर पर टॉप रेटेड डेट पेपर माना जाता है।

- आप on www. valueresearchonline.com पर फंड पेज के पोर्टफोलियो सेक्‍शन में किसी फंड के क्रेडिट क्‍वालिटी ब्रेक अप को हासिल किया जा सकता है।

- पवन गुप्‍ता को क्रेडिट रिस्‍क फंड की जोखिम वाली प्रकृति को समझना चाहिए और बेहतर तो यही होगा कि इन फंड से बचा जाना चाहिए। इसके अलावा उनको मौजूदा समय में बाजार में कम यील्‍ड की हकीकत को समझना चाहिए।

इंडिविजुअल बांड में निवेश करने से बढ़ता है जोखिम

- ये बांड पिछले साल आरबीआई के टैक्‍सेबल बांड की जगह पर लांच किए गए थे। बांड एक तय ब्‍याज देते हैं। ये बांड अभी सालाना 7.15 फीसदी ब्‍याज दे रहे हैं और ब्‍याज दर की
की समीक्षा हर छह माह जनवरी और जून में होती है। हालांकि यह जरूरी है कि इसका ब्‍याज नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट के उस समय के रिटर्न की तुलना में 35 बेसिस प्‍वाइंट अधिक होना चाहिए।

- ये बांड भारत सरकार जारी करती है। ऐसे में जोखिम न के बराबर होता है और यह पवन गुप्‍ता या किसी और फिक्‍स्ड इनकम निवेशक के लिए अच्‍छा विकल्‍प हो सकता है।
- आरबीआई के बांड से होने ब्‍याज इनकम को टैक्‍स लगाने के मकसद के लिए इनकम में जोड़ा जाता है। पवन गुप्‍ता की एससीएसएस, पीएमवीवीवाई और आरबीआई बांड में निवेश से सामूहिक इनकम 5 लाख रुपए से कम रहने की संभावना है। ऐसे में उनका टैक्‍स देनदारी की चिंता करने की जरूरत नहीं है। सीनियर सिटीजंस इनकम टैक्‍स एक्‍ट के सेक्‍शन 80 टीटीबी के तहत जमाओं ओर सेविंग अकाउंट से होने वाली 50,000 रुपए तक ब्‍याज इनकम पर
टैक्‍स छूट का दावा कर सकते हैं।
- हालांकि पवन गुप्‍ता को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि ये बांड लिक्विडिटी के मामले में उतने अच्‍छे नहीं है। इन बांड की अवधि सात साल है और समय से पहले रकम निकालने की अनुमति एक तय लॉक इन पीरियड के बाद ही है। लॉक इन पीरियड सब्‍सक्राइबर की उम्र के हिसाब से तय की जाती है। यह 60-70 साल के एज ग्रुप के लिए छह साल और 70-80 साल के एज ग्रुप के लिए पांच साल है। वहीं 80 साल और इससे अधिक एज ग्रुप के लिए यह चार साल है। इसके अलावा, सेंकेंडरी मार्केट में इन बांड की खरीद- फरोख्‍त भी नहीं होती है।


टारगेट मैच्‍योरिटी फंड पर करें विचार

- उच्‍च गुणवत्‍ता के शार्ट ड्यूरेशन फंड के रिटर्न को बढ़ाने के लिए आप दूसरे विकल्‍पों जैसे टारगेट मैच्‍योरिटी फंड पर भी विचार कर सकते हैं। यह फंड खास मैच्‍योरिटी सेगमेंट पर यील्‍ड हासिल करने के लक्ष्‍य पर फोकस करते हैं। मध्‍यम से लंबी अवधि और कम अवधि के बांड के बीच अंतर काफी अधिक है। ऐसे में बेहतर रिटर्न हासिल करने का मौका है।
- ये उच्‍च गुणवत्‍ता वाले फंड हैं जो रोल डाउन मैच्‍योरिटी स्‍टाइल फॉलो करते हैं। ऐसे में फंड मैनेजर शुरूआत से ही मैच्‍योरिटी टारगेट तय करता है और समय के साथ मैच्‍योरिटी कम होती जाती है। इसलिए, इंटरेस्‍ट रेट का जोखिम कम हो जाता है। ऐसे में, ये फंड इंटरेस्‍ट रेट बढ़ने के परिदृश्‍य के बीच फायदमेंद हो सकते हैं। इसके अलावा रिटर्न का दिखना एक बड़ा फायदा है।

न छोड़ें इक्विटी का साथ

- मौजूदा ब्‍याज इनकम पवन गुप्‍ता की इनकम जरूरतों के लिए काफी हो सकती है लेकिन बढ़ती महंगाई की वजह से पांच या 10 साल के बाद यह इनकम काफी नहीं होगी।
- इक्विटी में निवेश ही एक तरीका है जो महंगाई से अधिक रिटर्न दे सकता है और इसलिए पवन गुप्‍ता को अपने कॉर्पस का कम से एक तिहाई हिस्‍सा इक्विटी को अलॉट करना चाहिए। हालांकि, इसे एकमुश्‍त निवेश करने के बजाए 18 से 24 माह में फैला कर निवेश करना चाहिए।

- इसके अलावा, यह रिकमेंड किया जाता है कि पवन गुप्‍ता को कुल रिटायरमेंट कॉर्पस का 4-6 फीसदी से अधिक सालाना रकम नहीं निकालनी चाहिए।


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