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खरीदो, कर्ज लो और मर जाओ

कम ब्‍याज दर वाले देशों में एक अजीब वित्‍तीय दुनिया सामने आई है

खरीदो, कर्ज लो और मर जाओ

खरीदो, कर्ज और मर जाओ। रकम को संभालने का यह एक अजीब तरीका है। अगर आपकी दिलचस्‍पी इस बात में है कि पश्चिमी देशों में अमीर लोग अपनी रकम का प्रबंधन कैसे करते हैं तो आपने इसके बारे में जरूर पढ़ा होगा। वैसे मुझे इस बात में संदेह है कि ऐसे लोग इस कॉलम को पढ़ते होंगे लेकिन जो तर्क खरीदो, कर्ज लो और मर जाओ को बढ़ावा दे रहा है वह आपकी जिंदगी को भी प्रभावित कर सकता है। अब इस पर गौर करते हैं कि यह है क्‍या ?

बीते समय में अमीर व्‍यक्ति स्‍टॉक्‍स या फिक्‍स्ड इनकम सिक्‍योरिटीज में निवेश करते थे। इन दोनों विकल्‍पों में निवेश का मुख्‍य मकसद पूंजी को बनाए रखते हुए डिवीडेंड और ब्‍याज भुगतान के जरिए रेग्‍युलर इनकम हासिल करना था। और स्‍टॉक के मामले कह सकते है कि यहां पूंजी को थोड़ा बढ़ाना भी मकसद था। साफ है कि उनको इस इनकम पर टैक्‍स का भुगतान भी करना होता था और शायद ही कोई ऐसा करना पसंद करता था। ऐसे में हाल के समय में चीजें बदल गईं हैं। एक बदलाव यह हुआ है कि शीर्ष कंपनियों ने डिवीडेंड का भुगतान करना बंद कर दिया है या अगर कर रहीं है तो बहुत थोड़ा। ऐसे में अगर आपको रकम की जरूरत है तो असेट बेचना ही एक रास्‍ता बचता है। एक और बात यह है कि कर्ज पर ब्‍याज बहुत कम है। अब लोगों के पास जो असेट टाइप है वह सिर्फ पूंजी को बढ़ाती है। डिवीडेंड या ब्‍याज भुगतान के बिना।

यहां तक तो ठीक है। हालांकि, यहां एक चीज है जो मुझे या आपको अजीब लगती है। जब अमीर लोगों को इस निवेश से इनकम हासिल करने की जरूरत पड़ती है तो वे निवेश को कोलैटरल की तरह इस्‍तेमाल करते हुए कर्ज लेते हैं। किसी भारतीय को यह अजीब लग सकता है कि लेकिन ऐसा हो रहा है। इसका कारण टैक्‍स की दरें ऊंची होना और ब्‍याज की दरें बहुत कम होना है। वित्‍तीय कॉलम लिखने वाले मैट लेनिवने के हाल के एक कॉलम से मुझे यह बात पता चली। किसी के पास 100 मिलियन डॉलर थे उसे इस रकम से 3 मिलियन डॉलर रकम बनाने की जरूरत थी। असेट सेल्‍स के जरिए ऐसा करने पर उसको 3 मिलियन डॉलर कीमत की असेट बेचना पड़ता। इसमें से उसे मिलियन डॉलर टैक्‍स चुकाना पड़ता और बाकी रकम वह ले सकता था। इसके बजाए उसने निवेश को कोलैटरल रख कर सिर्फ 3 मिलियन कर्ज लिया। इस पर ब्‍याज सिर्फ 1 फीसदी है। फिर उन्‍होंने 2 मिलियन डॉलर बतौर टैक्‍स बचा लिया और सारी रकम अब भी रिटर्न अर्जित कर रही है। कुल मिला कर यह सालों तक काम कर सकता है।

एक बात तो साफ है कि इस तरह की वित्‍तीय ट्रिक इसलिए संभव है क्‍योंकि पश्चिमी देशों के सेंट्रल बैंकों ने विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में बड़े पैमाने पर कम ब्‍याज दर पर रकम प्रवा‍हित की है। दुनिया के तमाम देशों में देखें तो यहां कम ब्‍याज दरों का बोलबाला है। इन देशों में ब्‍याज दरें अलग अलग हो सकती हैं। इसकी वजह से दुनिया दो तरह के लोगों में विभाजित हो गई है। एक वे जो कर्ज ले रहे हैं और दूसरे वे जो डेट यानी डिपॉजिट और इसी तरह की चीजों से रकम बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

इसका क्‍या मतलब है ? इसका एक सरल और सीधा जवाब है। आपको इस दूसरी कैटेगरी से निकलने की जरूरत है। शायद पूरी तरह से नहीं लेकिन आपको यह भ्रम छोड़ना होगा कि आपकी रकम कुछ कमाई कर रही है। जब आप बैंक को कर्ज देते हैं तो आप उन कंपनियों से प्रतिस्‍पर्धा करते हैं। इस खेल में आपकी हार तय है। दुनिया हमेशा दो तरह के लोगों के बीच विभाजित रही है। एक जिनके पास सब कुछ है और दूसरे जिनके पास हर चीज का अभाव है। यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि वित्‍तीय दुनिया में कर्ज देने वाला खास कर कर्ज देने वाला छोटा व्‍यक्ति ऐसा व्‍यक्ति बन गया है जिसके पास चीजों का अभाव है।

ज्‍यादातर समय आपकी रकम उस रफ्तार से नहीं बढ़ पाती है जिस रफ्तार से महंगाई बढ़ती है। इस पर अगर टैक्‍स और हर साल रकम की वैल्‍यू कम होने का असर जोड़ ले तो फिक्‍स्ड इनकम से आपको नेगेटिव रिटर्न मिल रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि हालात बदलते नहीं दिख रहे हैं।


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