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सपनों का घर न बन जाए बुरा सपना

भविष्‍य में इनकम बढ़ने की उम्‍मीद पर घर खरीदना हो सकता है खतरनाक

सपनों का घर न बन जाए बुरा सपना

कई सालों से भारत का रियल एस्‍टेट सेक्‍टर एक तरह से सुस्‍ती की गिरफ्त में है। लगभग एक दशक से रियल एस्‍टेट सेक्‍टर में कीमतों में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है। इसे टाइम करेक्‍शन कहा जा रहा है। टाइम करेक्‍शन का वैसे तो मतलब यह है कि पहले कीमतें बहुत ज्‍यादा थीं और अब कीमते वाजिब स्‍तर पर आ रही हैं। लेकिन टाइम करेक्‍शन से यह मतलब भी निकलता है कि कीमतें उसी रेंज में बनी हुईं हैं। कीमतें बढ़ नहीं रहीं हैं। यानी आने वाले समय में कीमतों में स्थिरता का दौर खत्‍म होगा और रियल एस्‍टेट सेक्‍टर में कीमतें बढ़ने लगेंगी।

सालों से रियल एस्‍टेट सेक्‍टर में कीमतें न बढ़ने के कई कारण हैं। एक बड़ा कारण तो यह है कि निवेशकों की वजह से कीमतें बहुत ज्‍यादा और बहुत तेजी से बढ़ीं। कई सालों तक ये निवेशक एक दूसरे को अपार्टमेंट ज्‍यादा से ज्‍यादा कीमतों पर बेचते रहे और एक समय ऐसा जब कीमतें वास्‍तविक खरीददार के लिए बहुत ज्‍यादा हो गईं। या कहें कि कीमतें वास्‍तविक खरीदार की पहुंच से बाहर हो गईं। वास्‍तविक खरीदार वे खरीदार हैं तो घर या फलैट रहने के लिए खरीदते हैं। ऐसे में कीमतों में स्थिरता का ऐसा समय है जब वास्‍तविक खरीदारों की खरीद क्षमता कीमतों के स्‍तर तक धीरे धीरे पहुंच रही है। इसके अलाव एक और बड़ा कारण रियल एस्‍टेट डेवलपर्स को लेकर खरीदारों के मन में आया अविश्‍वास है। खरीदारों को रियल एस्‍टेट डेवलपर्स पर भरोसा क्‍यों नहीं हो पा रहा है इसका कारण सबको पता है।

समय बीतने के साथ संभावित खरीदारों का एक बड़ा हिस्‍सा वास्‍तविक खरीदारों में बदल जाएगा। दूसरे निवेश की तरह से रियल एस्‍टेट इस मायने में सबसे अलग है कि हर परिवार को एक घर की जरूरत होती है। और जब कोई दूसरा घर खरीदता है तो वह निवेशक बनता है और ऐसा वह तमाम जोखिम के साथ करता है।

अफसोस की बात है कि कई मनोवैज्ञानिक और वित्‍तीय वजहें मिल कर घर खरीदना एक मुश्किल काम बना देती हैं। और ऐसा हम लोगों में से ज्‍यादातर लोगों के साथ होता है। एक आधुनिक उपभोक्‍तावादी अर्थव्‍यवस्‍था में हर उत्‍पाद को बेचने वाला अपने सबसे महंगे उत्‍पाद को बेचने का प्रयास करता है। इसी तरह से रियल एस्‍टेट डेवलपर्स भी हर व्‍यक्ति को उसका सपनो का घर बेचने का प्रयास करते हैं। एक शानदार घर जिसे खरीदने के लिए किसी का मन ललचा जाए। ऐसा घर जिसमें खरीदारी पहले कभी नही रहा है लेकिन उसने इस तरह का घर खरीदने का सपना जरूर देखा है।

समस्‍या यह है कि सपनों का घर खरीदना महंगी घड़ी खरीदने या विदेश में छुट्टियां मनाने से बहुत अलग है। घर खरीदना इसलिए बहुत अलग है क्‍योंकि इस पर खर्च बहुत ज्‍यादा आता है। अगर आप दूसरी चीजों पर पैसा खर्च करते हैं तो आप कुछ महीनों में इसकी भरपाई कर सकते हैं। लेकिन अगर आप सपनों का घर खरीदते हैं तो इस पर इतनी ज्‍यादा रकम खर्च होती है कि इससे उबरने में आपको सालों लग सकते हैं। और इस अवधि में आपको और आपके परिवार को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। और कुछ लोगों के लिए तो यह झटका इतना तगड़ा होता है कि इसका असर पूरी जिंदगी महसूस होता है।

घर खरीदने का फैसला बहुत बड़ा होता है। शायद हर व्‍यक्ति की जिंदगी का रकम के लिहाज से सबसे बड़ा फैसला। इसीलिए मैं इस टॉपिक पर बार बार लौट कर आता हूं। अगर आप अपनी जिंदगी का एक बड़ा फैसला करने जा रहे हैं तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि यह फैस्‍ला सही हो। घर खरीदने वाले वैसे तो कई गलतियां करते हैं। लेकिन इनमें सबसे आम है घर खरीदने के लिए खुद पर ज्‍यादा वित्‍तीय बोझ डाल लेना। जब खरीदार घर देखने जाता है तो वह ऐसे घर के लालच में पड़ जाता है जो उसकी क्षमता से बाहर होता है लेकिन उसका दिल ऐसे ही घर पर आ जाता है।
और इस चक्‍कर में खरीदार अपने बजट से ज्‍यादा भी खर्च कर देता है। और बहुत से लोग बाद में इसका खामियाजा भी भुगतते हैं। एक सामान्‍य नियम है कि आपके होम लोन की ईएमआई परिवार की मंथली इनकम का एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिए। अगर बाद में आप ज्‍यादा अमीर बन जाते हैं तो आप अपना घर बेच कर बड़ा और महंगा घर खरीद सकते हैं। लेकिन सबसे खतरनाक बात यह सोच कर घर खरीदना है कि चलो आज थोड़ी दिक्‍कत है। बाद में इनकम बढ़ जाएगी तो चीजें ठीक हो जाएंगी। सबसे ज्‍यादा मुसीबत ऐसी सोच रखने वाले ही झेलते हैं।

लोग अपने बजट से बाहर जाकर घर खरीद रहे हैं इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोन बहुत आसानी से मिल रहा है। हमारे पैरेंट्स के जमाने में लोन मिलना बहुत मुकिश्‍ल था। इसके अलावा लोग लोन को खराब चीज समझते थे। ये लोग वही चीज खरीदते थे जिसका भुगतान वे उस समय कर पाते थे। एक उपभोक्‍तावादी अर्थव्‍यवस्‍था के लिए ईएमआई कल्‍चर अच्‍छी चीज है लेकिन अगर इससे किसी के सपनों का घर बुरा सपना बन जाता है तो यह ठीक नहीं है।
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