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निवेश के लिए बेहतर विकल्‍प कब चुनेंगे भारतीय

बचत करने वाले ज्‍यादातर लोगों को फिक्‍स्ड इनमम निवेश को लेकर अपनी पसंद पर दोबारा सोचने की जरूरत है। यह काम जितना जल्‍दी करेंगे उतना बेहतर होगा

निवेश के लिए बेहतर विकल्‍प कब चुनेंगे भारतीय

पिछले कई सालों से मैं लिखता रहा हूं कि फिक्‍स्ड इनकम म्‍युचुअल फंड बैंक एफडी से बेहतर विकल्‍प है। लेकिन शायद लोग इस बात को उतना अहम नहीं मान रहे हैं। इसका कारण यह है कि सबसे बेहतर और सबसे खराब इक्विटी इन्‍वेस्‍टमेंट के बीच अंतर के बारे में निवेशक इसलिए जानते हैं क्‍योंकि यह अंतर काफी बड़ा है। लेकिन सबसे बेहतर और सबसे खराब फिक्‍स्ड इनकम विकल्‍पों के बीच अंतर इससे कम है। शायद इसीलिए बचत करने वाले इस टॉपिक पर खास दिलचस्‍पी नहीं दिखा रहे हैं।

लेकिन इस टॉपिक पर इस तरह से सोचना सही तरीका नहीं है। अच्‍छा हो या बुरा लेकिन लंबे समय से भारत एक फिक्‍स्ड इनकम कंट्री रहा है। यानी यहां कई पीढियों से लोग पीपीएफ, बैंक एफडी, पोस्‍ट ऑफिस डिपॉजिट जैसी स्‍कीमों में अपनी बचत लगाते रहे हैं। सिर्फ इसलिए क्‍योंकि यहां रिटर्न की गारंटी है। निवेश के लिहाज ये सभी स्‍कीमें खराब विकल्‍प हैं। यह एक अलग कहानी है। लेकिन अगर फिक्‍स्ड इनकम ऑप्‍शन की बात करें तो ज्‍यादातर लोग म्‍युचुअल फंड के बारे में विचार नहीं करते हैं और निवेश के लिए एफडी को चुनते हैं।

सबसे बेहतर और सबसे खराब फिक्‍स्ड इनकम च्‍वाइस के बीच अंतर 1.5 फीसदी या शायद 2 फीसदी का है। लोग इस पर उतना गौर नहीं करते हैं लेकिन लंबी अवधि में आपकी कुल रकम में यह बहुत बड़ा फर्क पैदा करता है। कुछ दशकों में 2 फीसदी सालान का अंतर अगर रकम के लिहाज से देखें तो यह आपके कुल रिटर्न का 50 फीसदी हो सकता है। अब आप सोच सकते हैं कि कोई भ 20 साल के लिए निवेश नहीं करता है। लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। कोई भी एक निवेश दो या तीन साल से ज्‍यादा नहीं चलता है लेकिन ज्‍यादतर लोग हमेशा एक बड़ी रकम फिक्‍स्ड इनकम ऑप्‍शन में रखते हैं। यह सिलसिला साल दर साल और दशक दर दशक चलता है। इसका मतलब है कि बचत करने वाला हर व्‍यक्ति संभावित आय के तौर पर बड़ी रकम गंवाता है।

पोस्‍ट टैक्‍स फिक्‍स्ड इनकम रिटर्न बढ़ाने का सबसे अच्‍छा तरीका बैक एफडी से पैसा निकाल कर फिक्‍स्ड इनकम म्‍युचुअल फंड में निवेश करना है। कुछ खास तरह के डेट फंड में मुश्किलों के बावजूद शार्ट ड्यूरेशन डेट फंड सबसे सुरक्षित हैं और एफडी की तुलना में ज्‍यादा फायदा देते हैं। निवेश से जुड़ी तीन अहम बातों रिटर्न, लिक्विडिटी और टैक्‍स बचाने के लिहाज से शार्ट ड्यूरेशन डेट फंड निश्चित तौर पर बेहतर विकल्‍प हैं।

ओपेन एंडेड फिक्‍स्ड इनकम फंड में आप अपनी रकम एक दिन की नोटिस पर निकाल सकते हैं। और ऐसा करने से आपको रिटर्न का नुकसान भी नहीं होगा। जब‍कि एफडी में समय से पहले पैसा निकालने से आपको पेनल्‍टी देनी होगी। निवेशक म्‍युचुअल फंड में कभी भी निवेश शुरू कर सकते हैं। उनको इस बात पर भी ज्‍यादा सोचने की जरूरत नहीं है कि वे रकम कितनी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं। और समय के साथ म्‍युचुअल फंड आम तौर पर एफडी से 1 फीसदी ज्‍यादा रिटर्न देते हैं। सिर्फ 1 फीसदी रिटर्न का अंतर ही लंबी अवधि में बड़ा फर्क पैदा करता है और यह म्‍युचुअल फंड को बेहतर विकल्‍प बनाता है।

अगर टैक्‍स के मोर्चे पर अंतर की बात करें तो यह बड़ा फर्क पैदा करता है। म्‍युचुअल फंड से मिलने वाले रिटर्न को कैपिटग गेन्‍स माना जाता है। वहीं एफडी पर मिलने वाले ब्‍याज को इनकम माना जाता है और यह आपकी टैक्‍सेबल इनकम में जुड़ जाता है। कैपिटल गेन पर टैक्‍स आपको तभी देना होता है जब आप म्‍युचुअल फंड में अपना निवेश भुनाते हैं। लेकिन ब्‍याज इनकम पर आपको अपनी इनकम की तरह हर साल टैक्‍स देना पड़ता है। चाहे आपने एफडी को भुनाया हो या न भुनाया हो। अगर आप सभी बैंक अकाउंट और डिपॉजिट से आपको एक साल में 10,000 रुपए अधिक ब्‍याज मिलता है तो बैंक इस इनकम पर टीडीएस काट लेता है। इसका मतलब है मि ब्‍याज एक हिस्‍सा कंपाउंडिंग के लिए नहीं मिलता है। क्‍योंकि यह हर साल टैक्‍स के तौर पर ले लिया जाता है। तो कुल रिटर्न पर इसका बड़ा असर पड़ता है।

म्‍युचुअल फंड का टैक्‍स के मोर्चे पर फायदा यहीं खत्‍म नहीं होता है। अगर आप म्‍युचुअल फंड में तीन साल से अधिक समय तक निवेश बनाए रखते हैं तो आपका गेन यानी रिटर्न लॉग टर्म कैपिटल गेन्‍स की कैटेगरी में आ जाता है। और इस पर टैक्‍स इंडेक्‍सेशन बेनेफिट के साथ टैक्‍स लगता है। इंडेक्‍सेशन बेनेफिट का मतलब है कि आपके रिटर्न को महंगाई से घटाने के बाद जो रिटर्न बचत है उसी पर टैक्‍स देना पड़ता है। लेकिन एफडी के साथ ऐसा नहीं होता है क्‍योंकि ब्‍याज सामान्‍य इनकम की तरह ही है। इन सभी बातों का हिसाब लगाएं तो अल्‍ट्रा शार्ट ड्यूरेशन डेट फंड में भी तीन साल के निवेश पर पोस्‍ट टैक्‍स रिटर्न बैंक एफडी की तुलना में लगभग दोगुना होता है।

अफसोस की बात है फिक्‍स्ड इनकम इन्‍वेस्‍टमेंट में निर्भर होने के बावजूद ज्‍यादातर भारतीय बचतकर्ता बेहतर विकल्‍प चुनने का प्रयास नहीं करते हैं।


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