‘मल्टीबैगर’ शब्द का इस्तेमाल दिग्गज निवेशक पीटर लिंच ने अपनी किताब ‘वन अप ऑन वॉल स्ट्रीट’ में किया था. ऐसा स्टॉक जो दोगुने से ज़्यादा बढ़ जाता है, उसे मल्टीबैगर कहते हैं. निवेश की दुनिया में इस बात की चर्चा काफ़ी होती है कि कौन सा स्टॉक मल्टीबैगर बन सकता है, लेकिन ये पता लगाना कोई आसान काम नहीं है. आख़िर क्या ख़ूबियां हैं जो किसी स्टॉक को मल्टीबैगर बना सकती हैं, इसे समझने के लिए हमने कई स्टॉक्स का अनालेसिस किया. इसके लिए, हमने पिछले 16 साल के कुछ बड़े मल्टीबैगर स्टॉक्स को स्टडी किया. हमने निष्कर्ष निकाला कि तीन ख़ूबियां हैं जो किसी स्टॉक को असली मल्टीबैगर बनाती हैं, ये ख़ूबियां हैं - टाइम, अर्निंग और एक्स्ट्रा अडवांटेज. आइए इन बातों पर गहराई से नज़र डालते हैं.
टाइम
एक टिकाऊ मल्टीबैगर रातों रात नहीं बनता, बल्कि इसमें समय लगता है. हमारे द्वारा चुने गए, लगभग 16 साल के 7 मल्टीबैगर पर ग़ौर करें तो ये बात सही साबित होती है. ये शेयर कुछ दिन या महीनों में मल्टीबैगर नहीं बने, बल्कि इसमें कई साल का वक़्त लगा.
दूसरी तरफ़, जब कोई स्टॉक बहुत कम समय में कई गुना हो जाए, तो इस बात की काफ़ी गुंजाइश रहती है कि कंपनी बाज़ार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरे. इसलिए, अगर आपको लगता है कि आप किसी स्टॉक को लेकर चूक गए हैं, तो पछतावे की कोई ज़रूरत नहीं, हो सकता है कि आपकी बस अगले स्टॉप पर बहुत तेज़ी से पहुंच जाए, लेकिन मंज़िल तक पहुंचने में नाकाम रह जाए. एक टिकाऊ मल्टीबैगर समय के साथ बनता है और इसे ख़रीदने के लिए काफ़ी मौक़े और समय होता है. अगर आपको कोई मल्टीबैगर मिल गया है, तो कभी देर नहीं होती.
7 बड़े मल्टीबैगर स्टॉक्स
2008 में P/E | 2024 में P/E | 16 साल में कितना गुना हुआ शेयर | |
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बजाज फ़ाइनांस | 13.0 | 26.4 | 153 |
अजंता फ़ार्मा | 2.8 | 40.0 | 274 |
ला ओपाला RG | 11.4 | 30.0 | 55 |
आयशर मोटर्स | 7.4 | 31.6 | 112 |
विनाती ऑर्गैनिक्स | 4.2 | 52.0 | 122 |
भारत रसायन | 5.3 | 34.6 | 163 |
सेरा सैनिट्रीवेयर | 3.7 | 37.5 | 66 |
कमाई बढ़ने की संभावनाएं
किसी शेयर के लंबे समय के प्रदर्शन की बड़ी वजह कमाई (अर्निंग) का बढ़ना होती है. इसलिए, संभावित चढ़ने वाले स्टॉक को चुनते समय, उन कंपनियों पर दांव लगाएं जिनकी कमाई के बढ़ने की संभावना हो. कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप किसी कंपनी को कितना जानते हैं, अगर आपको उसकी कमाई की क्षमता पर भरोसा नहीं है, तो वो एक औसत शेयर बनकर ही रह जाएगा.
दूसरा, किसी कंपनी के लिए समय के साथ कमाई को कई गुना बढ़ाने के लिए, उसका बाज़ार बढ़ने लायक़ होना चाहिए. एक नमक बनाने वाली कंपनी मल्टीबैगर नहीं हो सकती क्योंकि उसका बाज़ार बढ़ने लायक़ नहीं है, लेकिन अगर उसका बाज़ार कमज़ोर है या मांग को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जा सकता है, तो कंपनी के बढ़ने की गुंजाइश ज़्यादा होगी.
एक्सट्रा अडवांटेज
मल्टीबैगर बनने के लिए एक स्टॉक को एक्स्ट्रा अडवांटेज या अतिरिक्त बढ़त होनी चाहिए. असल में कुछ स्टॉक्स की ग्रोथ उसके रेवेन्यू और फ़ायदे में बढ़ोतरी से ज़्यादा होती है. ऐसे स्टॉक्स को कुछ मामलों में एक्सट्रा अडवांटेज होती है. वो 'एक्सट्रा' कंपनी के फ़्यूचर और उसकी कमाई को लेकर बाज़ार का भरोसा होता है. बाज़ार जितना ज़्यादा किसी कंपनी के बारे में आश्वस्त होगा, उसे उतना ही ज़्यादा प्रीमियम मिलेगा, जो कंपनी के प्राइस टू अर्निंग्स (PE) मल्टीपल में नज़र आता है. आगे कुछ फ़ैक्टर बताए जा रहे हैं जो किसी कंपनी में भरोसा पैदा करते हैं.
1. स्केल और मार्जिन में लगातार बढ़ोतरी
बड़े पैमाने वाले बिज़नस के कई फ़ायदे हैं. इससे मार्जिन में सुधार होता है, कंपनी के लिए समय-समय पर आने वाली मुश्किलों का सामना करने और टैलेंट को लुभाना संभव होता है. बड़े पैमाने के साथ, एक कंपनी नए क्षेत्रों में उतर सकती है, छोटी कंपनियों को प्रभावित कर सकती है और उसकी मोलभाव की क्षमता ज़्यादा होती है. इसका एक उदाहरण बजाज फ़ाइनांस है. कैपिटल के तेज़ टर्नओवर के चलते, कंपनी बढ़ी है, इससे लागत कम हुई है और कम संसाधनों में ज़्यादा ग्राहकों को सेवा देने की इसकी क्षमता बढ़ी है. पिछले कुछ साल में, इसके PE मल्टीपल बढ़े हैं.
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2. ब्रांड की मज़बूती या धारणा में बदलाव
मान लीजिए, आप डिनर सेट ख़रीदने के लिए हाइपरमार्केट जाते हैं. आप कितने ब्रांड जानते हैं? संभवतः, पहला नाम ला ओपाला होगा. ये ब्रांड एडवांटेज है, जिसमें उपभोक्ता किसी ख़ास ब्रांड को प्राथमिकता देते हैं. इसलिए, ब्रांड के मज़बूत होने से प्रीमियम बढ़ता है.
मौजूदा ब्रांड के बारे में उपभोक्ताओंं की धारणा में बदलाव भी अहम भूमिका निभाती है. उदाहरण के लिए, आयशर मोटर्स की रॉयल एनफ़ील्ड मोटरसाइकिलों को ही लें. 10 साल पहले, इन मोटरसाइकिलों को भारी-भरकम, उबाऊ और पुराने जमाने की माना जाता था. लेकिन अब, वे बोल्ड, दमदार और क्लासिक बन गई हैं. मोटरसाइकिल को पसंद करने वाले आज इन्हें ख़रीदना चाहते हैं. इस क्रेज़ के कारण कंपनी के वैल्यूएशन में कई गुना ग्रोथ हुई है.
3. कंपनी को प्रीमियम
अगर आप कई काम करते हैं, तो शायद आप किसी में भी मास्टर नहीं हैं. इसलिए, बाज़ार डायवर्सिफ़ाइड उत्पादों वाले समूहों को कम अहमियत देता है. इसके विपरीत, फ़ोकस्ड कंपनियों को प्रीमियम मिलता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कंपनी एक ही उत्पाद में अपनी जान झोंकने में सक्षम है और उसमें लगातार सुधार करती रहती है.
उदाहरण के तौर पर, अजंता फ़ार्मा ने कुछ उत्पादों पर अपना फ़ोकस रखा है. इसकी मौजूदगी कार्डियोलॉजी, ऑप्थेमोलॉजी, डर्मेटोलॉजी और पेन मैनेजरमेंट में है. ये दूसरी भारतीय फ़ार्मा कंपनियों के विपरीत है, जिनका फ़ोकस इतना सीमित नहीं है. इन हाई ग्रोथ सेग्मेंट ने अजंता को इंडस्ट्री की तुलना में तेज़ी से बढ़ने और मल्टीबैगर बनने में मदद की है.
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4. दमदार मैनेजमेंट
बाज़ार की ज़रूरतों के अनुसार नई तकनीक को जल्दी अपनाना एक ऐसा कौशल है जो सभी में नहीं होता. जो कंपनियां या प्रबंधन बदलते माहौल पर तेज़ी से प्रतिक्रिया देने में सक्षम हैं, वे न केवल बनी रहती हैं बल्कि फलती-फूलती भी हैं.
भारत रसायन ऐसे एग्री-केमिकल्स के जेनेरिक संस्करणों की पहचान करने और उनकी लॉन्चिंग के दम पर तेज़ी से आगे बढ़ी है, जिनके पेटेंट समाप्त होने वाले हैं. इस शुरुआती लाभ ने इसे एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता बना दिया है.
अजंता फ़ार्मा भारत में पहली बार अधिकतम संख्या में फ़ॉर्मूलेशन पेश करने की अपनी रणनीति पर फली-फूली है.
5. कॉर्पोरेट गवर्नेंस और ट्रांसपरेंसी
कॉर्पोरेट गवर्नेंस और ट्रांसपरेंसी किसी कंपनी को उसके सेगमेंट में बाक़ी कंपनियों से अलग कर सकती है और उसे प्रीमियम हासिल करने में मदद कर सकती है. ट्रांसपरेंट कॉर्पोरेट गवर्नेंस निवेशकों को मुश्किल दौर में भी भरोसा दिलाता है और ऐसी कंपनियों में लंबे समय तक निवेश करना समझदारी है. दूसरी ओर, अगर कॉर्पोरेट गवर्नेंस की क्वालिटी संदिग्ध है, तो कोई नहीं जानता कि जब चीज़ें प्रतिकूल हो जाती हैं तो कितना कुछ दांव पर लगा होता है.
6. नेगेटिव सेंटीमेंट का पलटना
निगेटिव बातें तब पलट जाती हैं जब संकट में फंसी या निराशाजनक परिदृश्य वाली कोई कंपनी न्यूट्रल हो जाती है. कंपनी के लिए नेगेटिव सेंटीमेंट के किसी भी उलटफेर से उसके P/E मल्टीपल में सुधार होता है और इसलिए उसी आमदनी पर ऊंचा रिटर्न मिलता है.
सेरा सैनिटरीवेयर को ही लें, जो 2013 में अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले डिस्काउंट पर कारोबार कर रही थी, जब उसने बाथरूम-फ़िटिंग के सेगमेंट में क़दम रखने का फ़ैसला किया, और नल और टाइल जैसी चीज़ें बनाना शुरू किया. ये डिस्काउंट नए सेगमेंट में विफलता के डर से थे. लेकिन जब कंपनी मार्जिन पर समझौता किए बिना चीज़ों को सही दिशा में ले जाने में सक्षम हुई, तो 2015 में डिस्काउंट ग़ायब हो गया, जिससे कंपनी के वैल्यूएशन मल्टीपल्स में सुधार हुआ.
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