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क्या म्यूचुअल फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो के आधार पर निवेश करें?

म्यूचुअल फ़ंड्स के पोर्टफ़ोलियो में झांकना निवेशकों के अपने फ़ंड निवेश को दोयम दर्जे का बना रहा है

Should a common investor follow a mutual fund portfolio? Read in Hindi

निवेशक कई आधार पर म्यूचुअल फंड चुनते या अस्वीकार करते हैं. इनमें से काम के मापदंड स्पष्ट हैं, जैसे रिटर्न का ट्रैक रिकॉर्ड, उतार-चढ़ाव, उनका निवेशक की ज़रूरत के मुताबिक़ होना, और इसी तरह की दूसरी बातें. ज़ाहिर है, कुछ बेकार के मापदंड भी हैं जैसे ब्रांड इमेज या सेल्सपर्सन का दबाव, जो मेरे अनुभव में सबसे आम होते हैं. हालांकि, म्यूचुअल फ़ंड चुनने का जो तरीक़ा सही लगता है, मगर बिल्कुल ग़लत है, वो किसी फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का पता लगाने और उसका आकलन करने और फिर उस पर राय बनने का है.

इसके पीछे सोच ये होती है कि निवेशकों को म्यूचुअल फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो के आधार पर अपना फ़ंड चुनना चाहिए. बदक़िस्मती से, ऐसा करने वालों की कोई कमी नहीं है. अजीब बात ये है कि म्यूचुअल फ़ंड का विश्लेषण करने की ये शैली सिर्फ़ निवेशकों में ही नहीं बल्कि कुछ विश्लेषकों और फ़ाइनांस मीडिया में भी आम है. आमतौर पर, इस तरह के विश्लेषण का तरीक़ा होता है कि फ़ंड के ताज़ा निवेश पोर्टफ़ोलियो का पता लगाया जाता है और फिर देखा जाता है कि जल्दी ही किसी शेयर के चढ़ने की संभावना है या नहीं.

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इसमें दो बड़ी मुश्किलें हैं. एक, तो ये कि ये तरीक़ा तभी कारगर होगा जब निवेशक की समझ फ़ंड मैनेजर से बेहतर होगी. ये मान लिया जाता है कि निवेशक या उसके सलाहकारों को पता है कि कौन से स्टॉक अच्छा करेगा और कौन सा नहीं और इसी आधार पर उन्हें फ़ंड को आंकना चाहिए. ये काम अक्सर वो निवेशक करते हैं जो सीधे इक्विटी और फ़ंड में निवेश करते रहे हैं. और जो मैंने देखा है, उसके मुताबिक़, ऐसा करने वाले स्टॉक की ब्रोकरिंग करने वाले हैं जो अब फ़ंड बिज़नस में भी उतर गए हैं. वे बस वही दोहराते हैं जो इक्विटी में करते रहे हैं. उनकी फ़ंड रिपोर्ट असल में कुछ इस तरह होती है, "HDFC बैंक और मारुति इस फ़ंड की टॉप होल्डिंग्स में हैं, लेकिन हमारी रिसर्च टीम का कहना है कि इनका वैल्युएशन ज़्यादा है, इसलिए इस फ़ंड को न ख़रीदें". ये इक्विटी बेचने वाले हैं जो रिसर्च का दिखावा कर रहे हैं, इसलिए वे म्यूचुअल फ़ंड चुनते समय भी अपने पुराने ढर्रे पर ही चलते हैं. दरअसल, जब आपके पास केवल हथौड़ा हो, तो सब कुछ कील जैसा दिखता है.

दूसरा तरीक़ा मीडिया में आम देखा जाता है. ये कुछ समय से चल रहा है, लेकिन सोशल मीडिया के कारण और भी तीखा हो गया है. ये तरीक़ा है सभी सार्वजनिक मुद्दों पर ग़ुस्सा जताने का, जो अब एक स्टैंडर्ड बन चुका है. कोई व्यक्ति किसी फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो में कुछ ऐसे स्टॉक चुन लेगा, जिनमें भारी गिरावट आई है और उस पर ग़ुस्सा जताएगा, चाहे फ़ंड का रिटर्न जो भी रहा हो. ऐसे पाठक भी हैं, जिन्होंने लिखकर मुझसे पूछा है कि क्या किसी ऐसे स्टॉक में निवेश करने के लिए म्यूचुअल फ़ंड पर मुकदमा किया जा सकता है जिसने पैसा गंवाया है. इसके पीछे ये सोच होती है कि पोर्टफ़ोलियो में मौजूद किसी भी स्टॉक को ख़राब प्रदर्शन नहीं करना चाहिए. और इसका आधार ये ग़लतफ़हमी होती है कि पोर्टफ़ोलियो का मक़सद क्या है. कोई भी पोर्टफ़ोलियो अपने हिस्सों का कुल जोड़ ही नहीं होता. पोर्टफ़ोलियो का मुख्य उद्देश्य निवेश में विविधता लाना है, उसका लक्ष्य जोख़िम को सीमित करना, और एक हिस्से का प्रदर्शन ख़राब होने की स्थिति में संतुलन क़ायम करना होता है.

विश्लेषण करने और फिर फ़ंड चुनने का एकमात्र सही तरीक़ा बेंचमार्क और कैटेगरी के दूसरे फ़ंड्स के साथ रिटर्न के आधार पर तुलना करना है. क्या पोर्टफ़ोलियो इसमें कोई भूमिका निभाता है? हां, सिर्फ़ ये पता करने के लिए कि फ़ंड अपने मैंडेट पर क़ायम है या नहीं (जो अब रेग्युलेटर तय करता है), इसके अलावा रिटर्न की क्वालिटी का अनालेसिस भी समग्र स्तर पर किया जा सकता है. किसी फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो को समझने के सवाल इस तरह होने चाहिए: एक फ़ंड अलग-अलग इंडस्ट्री या कैपिटलाइज़ेशन बैंड में कितना केंद्रित है? क्या उसकी टॉप होल्डिंग्स, छोटी होल्डिंग्स की तुलना में बहुत बड़ी हैं? क्या फ़ंड मार्केट की स्थितियों की प्रतिक्रिया में अपने पोर्टफ़ोलियो में बहुत बदलाव करता है, या ये केवल मामूली या कोई बदलाव नहीं करता? निवेश का चुनाव करने के लिहाज़ से फ़ंड के पोर्टफ़ोलियो का अध्ययन करने का कोई उद्देश्य नहीं बनता.

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ये लेख पहली बार 30 जुलाई 2018 में छपा था.


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