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प्‍लानिंग के साथ करें निवेश

निवेश से जोखिम को अलग नहीं किया जा सकता है लेकिन प्‍लान जोखिम को संभालने में आपकी मदद कर सकता है। आपकी वित्‍तीय जरूरतों को ध्‍यान में रखते हुए असेट अलॉकेशन यही काम करता है

प्‍लानिंग के साथ करें निवेश

अपने काम को प्‍लान करें और प्‍लान पर काम करें। इन शब्‍दों में जीवन में सफल होने का सूत्र है। निवेश आपकी कामकाजी जिंदगी का अहम हिस्‍सा है। निवेश में भी इस रणनीति पर अमल किया जा सकता है। निवेश की दुनिया में अच्‍छी बातें छोटे पैकेज में आती हैं। प्‍लान भी यही काम करता है। निवेश की तकनीकी भाषा में इसे असेट अलॉकेशन कहा जाता है। आपको यह शब्‍द जटिल लग सकता है। लेकिन इसका मतलब है कि निवेश को लेकर आपके पास एक प्‍लान होना चाहिए। यह इस बारे में भी है कि प्‍लान को लगातार मैनेज कैसे करना है।

असेट अलॉकेशन अलग-अलग असेट क्‍लास में निवेश को फैला कर जोखिम कम करने का आसान तरीका है। यह आपकी वित्‍तीय जरूरतों के हिसाब से आपकी रकम को एक तय समय में फैला कर निवेश करने के बारे में भी है।

असेट अलॉकेशन इस तथ्‍य पर आधारित है कि अलग-अलग असेट क्‍लास का व्‍यवहार अलग होता है। इक्विटी कम अवधि में तेज उतार-चढ़ाव के लिए जानी जाती है लेकिन सभी असेट क्‍लास में यह सबसे ज्‍यादा रिटर्न देती है। वहीं डेट काफी स्थिर होता है लेकिन ये लंबी अवधि में महंगाई के असर से निपटने में मदद नहीं कर सकता है। ऐसे में अगर दोनों असेट क्‍लास में निवेश किया जाए तो किसी एक असेट क्‍लास में निवेश करने की तुलना में बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। इस तरह से आपको दोनों असेट क्‍लास की खूबियों का फायदा मिल सकता है। अगर आपको अचानक जरूरत पड़ जाती है तो मामूली नुकसान के साथ डेट से रकम निकाली जा सकती है। वहीं लंबी अवधि में इक्विटी आपका रिटर्न बढ़ा सकती है।

असेट अलॉकेशन इस लिहाज से भी आपका मदद करती है कि आपको बाजार में निवेश का सही मौका तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है। वित्‍तीय बाजार के बारे में लगातार सटीक अनुमान लगाना लगभग असंभव है। आप यह नहीं कह सकते कि कौन सी असेट क्‍लास कब अच्‍छा प्रदर्शन करेगी। जैसे अच्‍छा समय कब आएगा इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। ऐसा ही बुरे समय के बारे में भी है। इक्विटी मार्केट में हाल में आई तेज गिरावट और मौजूदा समय की अनिश्चितता इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है।

जब एक निवेशक युवा होता है तो उसकी जिम्‍मेदारियां कम होती हैं। और जोखिम उठाने की क्षमता सबसे अधिक होती है। उम्र बढ़ने के साथ जिम्‍मेदारियां बढ़ती हैं। वहीं जोखिम उठाने की क्षमता कम होती जाती है। बच्‍चों की शिक्षा, बीमा और घर खरीदने की जरूरत होती है। ऐसे में आपका इक्विटी अलॉकेशन कम होना चाहिए। रिटायरमेंट के बाद नियमित तौर पर निवेश करने की क्षमता या तो बहुत कम हो जाती है या खत्‍म हो जाती है। ऐसे समय में प्रॉविडेंट फंड और दूसरे स्रोत से मिलने वाली एकमुश्‍त रकम को इस तरह से निवेश्‍ा किया जाना चाहिए कि लगातार इनकम मिलती रहे। इस समय जोखिम उठाने की क्षमता बहुत कम हो जाती है। ऐसे में पूंजी की सुरक्षा सबसे बड़ी बात होती है। फिक्‍स्ड इनकम विकल्‍पों से मिलने वाले रिटर्न में काफी गिरावट आई है। ऐसे में रिटर्न बढ़ाने का एक ही विकल्‍प है इक्विटी। लेकिन इसमें जोखिम काफी अधिक है। ऐसे में अपनी जोखिम उठाने की क्षमता को समझना बहुत जरूरी है।

इनमें से काफी बातें मौजूदा वित्‍तीय स्थिति, कमाई की संभावनाओं और वित्‍तीय जरूरतों का आंकलन करने से निकलती हैं। एक असेट अलॉकेशन प्‍लान इन सभी जरूरतों का ध्‍यान रखता है और व्‍यक्ति विशेष की जरूरत के हिसाब से निवेश की रणनीति मुहैया कराता है। यह सबसे अहम कदम है। और किसी भी निवेश पर अमल करने से पहले इस पर विचार किया जाना चाहिए।


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