मैंने पिछले दस साल में निवेश के बारे में जो कुछ सीखा है उसे लेकर दस बातें यहां शेयर कर रहा हूं।
1. आप टीवी देख कर धन नहीं बना सकते: काफ़ी ऐसे बिज़नस-न्यूज़ चैनल हैं जो ये दावा करते हैं, कि वो धनवान बनने में आपकी मदद कर सकते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि वो अपनी सलाह के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड का विज्ञापन कभी क्यों नहीं जारी करते? या वो सिर्फ़ अपनी सही सलाहों के प्रचार में ही क्यों लगे रहते हैं और ग़लत होने वाली सलाह का ज़िक्र कभी क्यों नहीं होता? या उनके मुताबिक़ हमेशा स्टॉक मार्केट को ड्राइव करने का ज़िम्मेदार ‘वैश्विक-संकेत’ ही क्यों होते हैं?
ज़्यादातर टीवी की बिज़नस न्यूज़, पिछली चीज़ों को समझने के लिए अच्छी है। दरअसल, जब बिज़नस टीवी वालों के पास मार्केट को ड्राइव करने वाला कोई कारण नहीं पता होता, तो वो कह देते हैं, ‘वैश्विक-संकेत’। इसी के साथ, टीवी चैनलों का छोटी-अवधि के बारे में ही बात करना आपको ब्रोकर तो बना सकता है, अमीर नहीं।
2. आप न्यूज़पेपर पढ़-पढ़ कर भी धन नहीं बना सकते: आजकल सभी बिज़नस न्यूज़पेपरों में पर्सनल-फ़ाइनांस और स्टॉक-मार्केट का बड़ा सा सेक्शन होता है। मगर इसका काफ़ी हिस्सा पिछली घटनाओं के विश्लेषण से भरा होता है, यानि ये लोग उसका बहुत ही अच्छा निष्कर्ष देते हैं, जो घट चुका होता है। साथ ही, न्यूज़पेपर के रिपोर्टर विश्लेषक से आसानी से वो बात कहलवा लेते हैं जो पहले से तय की हुई उनकी हेडलाइन में फ़िट बैठती है। अक्सर विश्लेषक मनमाफ़िक बातें खुशी-खुशी कह भी देते हैं, ताकि उनका नाम न्यूज़पेपर में आ सके। और याद रखने वाली बात ये है कि न्यूज़पेपर को अपने पन्ने भरने होते हैं, तो लिखना तो उनकी मजबूरी है चाहे स्थिति के मुताबिक़ ज़रूरत हो या न हो।
3. एस.आई.पी. लंबी अवधि में ही बेस्ट रहती हैं: अगर आप एक आम फ़ंड मैनेजर से पूछेंगे कि किसी को कितने वक़्त के लिए एस.आई.पी. में निवेश करना चहिए, तो अक्सर आपको जवाब मिलेगा, तीन से पांच साल। सच कहूं तो ये अर्सा बहुत कम है। मैंने अपनी पहली एस.आई.पी. दिसंबर 2005 में शुरु की थी। और अब दस साल बाद, इतने दिनों के निवेश के बाद, अब जा कर मुझे नतीजे देखने को मिल रहे हैं। साथ ही, ये भी याद रखने वाली बात है कि एस.आई.पी. लंबी अवधि के लिए निवेश की आदत डालने के लिए होते हैं, जिनका उचित रिटर्न मिलता है, न की सही स्टॉक में निवेश करने जैसे शानदार रिटर्न मिलने की संभावना होती है। ये एक महत्वपूर्ण फ़र्क है जिसे समझना चाहिए।
4. फ़ंड मैनेजरों के पीछे मत भागिए: मैंने 2007-2008 के दौरान यही किया था, और ऐसा करने में बहुत सा पैसा गंवाया। मैं समझता हूं कि बजाए सबसे बढ़िया फ़ंड मैनेजर के पीछे भागने के, ऐसे अच्छे लार्ज-कैप और मिड-कैप फ़ंड में निवेश करना बेहतर होता है, जिनका लंबे वक़्त का अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड हो। छोटी अवधि (एक से तीन साल) में बहुत अच्छा रिटर्न देने वाले फ़ंड बदलते रहते हैं, और ऐसा कोई तरीक़ा नहीं है कि आप अगले बड़े बदलाव का अंदाज़ा लगा सकें; इसका मतलब ये है, निवेश को बोरियत से भरा होना चाहिए। अगर ये आपमें जोश जगा रहा है, तो कुछ ऐसा ज़रूर है जो आप ग़लत कर रहे हैं।
5. एंडाउमेंट पॉलिसी निवेश पॉलिसी नहीं हैं: इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा बेची जा रही एंडाउमेंट पॉलिसी निवेश, और टैक्स सेविंग के लिए काफ़ी पॉपुलर हैं। इसका एक कारण ये भी है कि ये सुरक्षित होती हैं। मगर क्या आपने कभी पूछा है कि ये पॉलिसियां असल में कितना रिटर्न देती हैं? अगर मैं यहां थोड़ा टैक्नीकल हो कर कहूं, तो किसी आम एंडाउमेंट पॉलिसी जिसमें एक व्यक्ति 20 साल के लिए धन लगाता है ,उसके औसत आंतरिक रिटर्न की दर क्या होती है? आपको जान कर आश्चर्य होगा कि ऐसा डाटा मौजूद नहीं है। मगर जितना मैं इन चीज़ों के बारे में जानता हूं, एंडाउमेंट पॉलिसी आपको महंगाई दर के कम रेट पर रिटर्न देती हैं। तो इनकी परवाह क्यों करें? दरअसल एंडाउमेंट पॉलिसियां सरकार के लिए धन इकठ्ठा करने का सबसे सस्ता ज़रिया होती हैं, और इनमें से ज़्यादातर पॉलिसियां सरकार के बॉंड में निवेश की जाती हैं। इससे ज़्यादा इसमें कुछ नहीं है। अगर आप सरकार को पैसा देना चाहते हैं तो ज़रूर दीजिए, मगर अपने निवेश पर धन कमाने के बेहतर तरीक़े मौजूद हैं।
6. यूलिप क्या हैं? मैं अब भी समझने की कोशिश कर रहा हूं: यूलिप यूनिट-लिंक्ड इन्वेस्टमेंट प्लान होते हैं, यानि ऐसे निवेश प्लान जो कि इंश्योरेंस भी देते हैं। मुश्किल ये है, कि अगर ये निवेश के प्लान हैं, तो इन पॉलिसियों का पिछले रिटर्न का कोई आंकड़ा क्यों मौजूद नहीं हैं? वैल्यू रिसर्च की वेबसाइट पर (और दूसरी कई वेबसाइट पर), आपको बेस्ट म्यूचुअल फ़ंड के बारे में पता चल जाएगा (इक्विटी, डेट या हाइब्रिड), आप ये जानकारी किसी भी अवधि के लिए ले सकते हैं - एक दिन, एक हफ़्ते, एक महीने, तीन महीने, छः महीने, एक साल, दो साल, तीन साल, पांच साल आदि।
मगर यूलिप क्या हैं? ये सवाल मैंने कई लोगों से पूछा है, और मैं अब भी उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा हूं। पिछले पांच साल का सबसे बढ़िया-प्रदर्शन करने वाला यूलिप कौन सा रहा है? इस सवाल का जवाब मुझे कोई नहीं दे पाया है। एक औसत यूलिप के पेचीदा स्वरूप को देखते हुए, ये कोई चौंकाने वाली बात भी नहीं है। तो अगर आप सीधे इक्विटी में पैसा नहीं लगाना चाहते, तो बेस्ट यही होगा कि आप म्यूचुअल फ़ंड के ज़रिए ऐसा करें।
7. सेन्सेक्स/निफ़्टी के बारे में ज़्यादातर भविष्यवाणियां बोगस होती हैं: हर साल के अंत में, या दिवाली के दौरान भी सभी ब्रोकिंग हाउस अगले साल के लिए अपने सेनसेक्स/ निफ़्टी के पूर्वानुमान की घोषणा करते हैं। आमतौर पर ये घोषणाएं, सकारात्मक होती हैं और इंडेक्स के ऊपर जाने की बात करती हैं। मगर, ये ज़्यादातर ग़लत होती हैं। आप इस बात को गूगल कर, चैक कर सकते हैं। तो, इन घोषणाओं को एक मनोरंजन की तरह लीजिए और गंभीरता से मत लीजिए। स्टॉक ब्रोकरेज इस तरह का पूर्वानुमान निकालते हैं क्योंकि ये मीडिया में कवरेज हासिल करने का आसान तरीक़ा है। मुझे समझ में नहीं आता कि टीवी और न्यूज़पेपर दोनों, क्यों सेनसेक्स और निफ़्टी के इन पूर्वानुमानों को इतना महत्व देते हैं।
8. अगर रहना नहीं है तो घर मत ख़रीदिए या काला धन मत रखिए: प्रॉपर्टी के शानदार रिटर्न के बारे में बहुत बात की जाती है। मुश्किल ये है कि इसके बारे में भरोसे लायक़ नंबर नहीं हैं। ये सिर्फ़ बातें लोग अफने अनुभव के आधार पर करते हैं। मगर जब लोग प्रॉप्रटी के रिटर्न कैलकुलेट करते हैं, तो वो इसके बहुत से ख़र्च नहीं जोड़ते हैं। इसके अलावा, जब लोग प्रॉपर्टी के रिटर्न की बात करते हैं, तो वो बड़े नंबरों की बात ही करते हैं: 'मैंने इसे 20 लाख में ख़रीदा और एक करोड़ में बेच दिया।' ये एक बड़े रिटर्न जैसा लगता है, मगर इस रिटर्न में समय का फ़ैक्टर और प्रॉपर्टी को रखने का ख़र्च शामिल नहीं है, इसके अलावा ये भी नहीं देखा जाता है कि इस प्रॉपर्टी को रखने में कितनी सिरदर्दी हुई। इन दिनों दूसरे रिस्क भी हैं, जैसे बिल्डर का भाग जाना या लंबे समय तक पज़ेशन में देर। इससे लोगों को ई.एम.आई. के साथ-साथ किराया भी देना पड़ता है। इसके अलावा, पिछले कुछ साल में देश के कई हिस्सों में प्रॉपर्टी के रिटर्न नेगेटिव रहे हैं। और आज के प्रॉपर्टी के दाम जिस तरह के हैं, मुझे नहीं लगता कि घर ख़रीदना, निवेश का अच्छा तरीक़ा माना जा सकता है।
9. गुरु काफ़ी मज़ेदार होते हैं: एक जर्नलिस्ट के मेरे पिछले अवतार में, एक बहुत जाने-माने स्टॉक मार्केट गुरु ने एक छोटी सी बैठक के दौरान ये बताया था, कि सेन्सेक्स 50,000 का आकंड़ा अगले छः से सात साल में छुएगा। उन्होंने ये बात पूरे विश्वास के साथ कही थी। विश्वास से भरे स्टॉक-मार्केट गुरु का मतलब है, एक अच्छी न्यूज़पेपर कॉपी। मैंने इस स्टोरी के बारे में लिखा और जिस न्यूज़पेपर में मैं काम करता था, उसमें इसे पहले पन्ने पर छापा गया। ये अक्टूबर 2007 की घटना है। साल गुज़रते रहे मगर उनकी भविष्यवाणी के क़रीब नौ साल बाद भी सेन्सेक्स आधा ही पहुंच पाया था। असल बात ये है कि वो बहुत ही अच्छे गुरु होंगे। उनके पास चीज़ों को पहले से भांप लेने की क्षमता भी होगी। मगर वो ये बात मीडिया को, और इस तरह से, आप पाठकों को, फ्री में क्यों देंगे? अगली बार आप किसी गुरु को पूर्वानुमान लगाते देखें तो इस बात को याद रखिएगा।
10. लोन पर कम ब्याज-दर का मतलब ये भी है कि आपके फ़िक्स डिपॉज़िट पर भी कम ब्याज मिलेगा: ये ऐसी बात है जिसे बहुत से लोग नहीं समझते। लोग अपने लोन पर कम ब्याज दर चाहते हैं, मगर अपने जमा धन पर कम ब्याज की दरों से वो खुश नहीं होते। बैंक फ़िक्स डिपॉज़िट खोल कर लोन देते हैं। वो अपने लोन पर ब्याज नहीं कम कर सकते, अगर वो अपने डिपॉज़िट पर ब्याज को कम नहीं करते हैं। ये बात इतनी सरल सी है। मगर, मुझे समझ नहीं आता कि लोग क्यों ये बुनयादी सी बात समझ नहीं पाते हैं।
ये कॉलम पहली बार जुलाई 1016 के वैल्थ इनसाइट में छपा था
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