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निक ट्रेन UK में लिंडसेल ट्रेन लिमिटेड चलाते हैं और उनका ट्रैक रिकॉर्ड सबसे बढ़िया है. क़ानूनी तौर पर, तो भारत के हमारे पाठक उनके फ़ंड में निवेश कर सकते हैं, लेकिन असल में, आप में से बहुत कम लोगों के ऐसा करने की संभावना है. इसके बावजूद मुझे लगता है कि उनसे बातचीत हमारे सबसे अहम इंटरव्यू में से एक है. ये इंटर्व्यू दुर्लभ भी कहा जाएगा क्योंकि ट्रेन शायद ही कभी कोई इंटरव्यू देते हैं और उन्होंने कभी किसी भारतीय प्रकाशन को इंटरव्यू नहीं दिया है. ज़्यादातर फ़ंड मैनेजरों से उलट, ट्रेन एक सच्चे बाय-एंड-होल्ड क़िस्म के निवेशक हैं. वे शायद ही कभी अपना निवेश बेचते हैं. इससे भी ज़्यादा बड़ी बात है कि वे शायद ही कभी कुछ नया ख़रीदते हैं! उन्होंने हमें बताया कि ऐसे चार साल रहे, जब उन्होंने कुछ भी नया नहीं ख़रीदा. इस अर्से में उन्होंने अपने सभी नए निवेश, उन्हीं शेयरों में किए जो पहले से उनके पास थे. निवेशों को लेकर इस तरह का दृढ़ विश्वास ऐसा है जो आश्चर्य में डाल देता है.
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ट्रेन ने अपने इंटरव्यू में कुछ ऐसी बातें कहीं जो विरोधाभासी लगेंगी. मिसाल के तौर पर, "मेरी राय में कोई भी चीज़ पूरी तरह से इस बात का संकेत नहीं देती कि बाज़ार सस्ते हैं या महंगे. यही वजह है, मैं समझता हूं कि ये मान लेना बेहतर होगा कि इक्विटी बाज़ार हमेशा सस्ते होते हैं." हमेशा सस्ते! ये बात उन लोगों को बहुत अजीब लगेगी जो वैल्यू इन्वेस्टिंग के भक्त हैं और वॉरेन बफ़े को मानने वाले हैं. वास्तव में, भले ही ट्रेन अक्सर बफ़े का ज़िक्र करते हैं और उनकी बातों को दोहराते हैं, लेकिन वैल्यू इन्वेस्टिंग बनाम ग्रोथ इन्वेस्टिंग के बुनियादी पैमानों पर उनका नज़रिया मौलिक है.
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ट्रेन के अपने सिद्धांतों में से एक, जो मुख्य तौर पर उनके निवेश की दिशा तय करता है, वो है प्रॉफ़िट बुकिंग (निवेश बेच कर मुनाफ़ा कमाना) की बात. इस बात को हमारे सभी पाठकों को ध्यान से समझना चाहिए. उन्होंने एक जगह लिखा, "(पीटर) लिंच ने अपने विजेताओं को ये तर्क देते हुए जारी रखा कि अगर किसी शेयर ने अच्छा प्रदर्शन किया है - कम से कम उन कारणों से जो समझ में आते हैं और पूरी तरह से सट्टेबाज़ी नहीं - तो उम्मीद रखनी ही चाहिए कि अच्छा प्रदर्शन जारी रहेगा (हालांकि हमेशा याद रखें कि कोई भी चीज़ सीधी रेखा में नहीं बढ़ती). वो (और हम भी) उस पारंपरिक ज्ञान से असहमत हैं जो कहता है: "प्रॉफ़िट बुक करना कभी भी ग़लत नहीं होता." ये बहुत ग़लत हो सकता है.
ऐसा करके आप एक लंबे समय के बेहतरीन निवेश में अपनी भागीदारी हमेशा के लिए कम कर देते हैं. सबसे अच्छी कंपनियों के शेयर की क़ीमतें समय के साथ दोगुनी हो जाती हैं, फिर बार-बार दोगुनी होती हैं. शानदार व्यवसायों की अपने मालिकों के लिए पूंजी बढ़ाने के स्वभाव को लॉक करना हमारे तरीक़े का आधार है."
कई भारतीय निवेशकों के 'मुनाफ़ा कमाने' का जुनून काफ़ी बुरा है. बुनियादी तौर पर, ये आपको अपने विजेताओं को बेचने और बेचने देने के कारण अपने घाटे को परमानेंट बना पर मजबूर कर देता है. इक्विटी निवेशकों के लिए, ये शायद निक ट्रेन की विचारों से मिलने वाली सबसे बड़ी सीख है.
अच्छे स्टॉक में निवेश बनाए रखने को लेकर उनकी लगन जितनी ज़्यादा है, उतना ही उल्लेखनीय है कि वे उन मैक्रो नंबरों को लेकर शक करते हैं जो निवेश प्रबंधकों और बिज़नस टीवी की चर्चाओं में विश्लेषकों की बांछें खिला देते हैं. ब्याज दरों जैसी चीज़ें ट्रेन के लिए बिल्कुल मायने नहीं रखतीं. वास्तव में, उनके लिए ऐशे व्यवसायों का चुनाव करने के अलावा और कुछ मायने नहीं रखता जो बढ़ने वाले व्यवसाय हैं. वो कंपनी की वैल्यू से बहुत ज़्यादा परेशान हुए बिना उन्हें ख़रीदने में यक़ीन करते हैं. वे कहते हैं, "मेरी टाइम लाइन पर किसी कंपनी की क्षमता उसकी वैल्यू से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है. आप कम समय में वैल्यू को लेकर ग़लत हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद समय के साथ एक बढ़िया निवेश कर सकते हैं. मेरी सबसे बड़ी ग़लतियां किसी कंपनी के बिज़नस मॉडल को ज़्यादा आंकने से हुई हैं, न कि किसी बढ़िया कंपनी की वैल्यू को ज़्यादा आंकने से."
क्या निवेशक ये सारे सबक़ आत्मसात कर सकते हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी में अपना सकते हैं? मेरा मानना है कि वे कर सकते हैं. असल में, ट्रेन के निवेश के तरीक़े को बफ़े के तरीक़ों की तुलना में एक आम निवेशक ज़्यादा आज़मा और दोहरा सकता है. इन बातों को आप ध्यान से पढ़ें - और बार-बार पढ़ें. आप इसका आनंद भी लेंगे और इससे बहुत कुछ सीखेंगे भी.
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ये लेख वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन पर पहले 6 फ़रवरी 2016 को पब्लिश हुआ.