लंबी अवधि के निवेश में आपके सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि आप महंगाई को मात दे सकें। लंबी अवधि में आपको महंगाई और ब्याज दरों के खतरनाक गठजोड़ का सामना करना पड़ता है।
इसका मतलब है कि फिक्स्ड इनकम निवेश जैसे बैंक डिपॉजिट से हमको जो इन्फ्लेशन एडजस्टेड इंटरेस्ट रेट मिलता है वह वास्तव में नेगेटिव है। इसको ऐसे समझ सकते हैं कि अगर आपको डिपॉजिट पर सालाना 7 फीसदी इंटरेस्ट मिल रहा और महंगाई दर भी 7 फीसदी है तो आपका इन्फ्लेशन एडजेस्टेड इंटरेस्ट रेट शून्य होगा।
मौजूदा समय में हमारे देश में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन इस तरह से किया जा रहा है कि यह समस्या हाल फिलहाज तो खत्म नहीं होने जा रही है। फिक्स्ड इनकम रिटर्न बढ़ कर महंगाई दर से अधिक होने में सालों का समय लग सकता है। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे निवेशक जो अपनी रकम को सही मायने में बढ़ाना चाहते हैं उनके लिए आगे का रास्ता क्या होना चाहिए ?
इसका जवाब इक्विटी हो सकता है। इक्विटी ऐसी असेट क्लास है जो न सिर्फ महंगाई को मात दे सकती है बल्कि रियल रिटर्न हासिल कर सकती है। ऐसे में आपको अपनी रकम का एक बड़ा हिस्सा इक्विटी में निवेश करना चाहिए।
हालांकि इसके साथ एक समस्या है। एक आम भारतीय निवेशक सोचता है कि इक्विटी का मतलब है जोखिम। पूंजी गंवाने के डर से ऐसे निवेशक भी इक्विटी में निवेश से बचते हैं जो महंगाई दर से अधिक रिटर्न की जरूरत को अच्छी तरह से समझते हैं। हम इक्विटी में निवेश को शेयर बाजार के उतार चढ़ाव के साथ देखने के आदी हैं। शेयर बाजार में आपका पैसा बढ़ता रहता है और अचानक गिरावट आने पर आप रकम गवां देते हैं।
लेकिन अगर आप गौर करें तो शेयर बाजार का यह उतार चढ़ाव सिर्फ एक भ्रम है। वास्तव में इक्विटी से मिलने वाला रिटर्न न सिर्फ अधिक होता है बल्कि यह काफी हद तक सुरक्षित भी है। आप सोच सकते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है। बड़े पैमाने पर उतार चढ़ाव वाले निवेश से मिलने वाला रिटर्न अधिक और सुरक्षित कैसे है। इस सवाल का जवाब हासिल करने के लिए आपको उसी चीज को अलग तरह से और अलग पैमाने पर देखना होगा।
आप एक सवाल से इस बात को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। भारत का समुद्र तट यानी कोस्ट लाइन कितनी लंबी है। इसका आधिकारिक जवाब है 7,517 किलोमीटर। आपको क्या लगता है कि अगर कोई व्यक्ति गुजरात के समुद्र तट से चल कर पश्चिम बंगाल तक आएगा तो इसका यही जवाब होगा। आप चींटी के बोर में सोचिए। अगर कोई चींटी या दूरी तय करती है तो क्या उसका जवाब वही होगा। या आप हवाई जहाज के बारे में सोचिए। अगर आप समुद्र तट के साथ साथ हवाई जहाज उड़ाएं तो क्या आपका जवाब वही होगा। नहीं
इनमें से हर मामले में जवाब अलग अलग होगा। चींटी को लगेगा यह हजारों किलोमीटर में फैला है क्योंकि चींटी इसे मिलीमीटर के पैमाने पर नापेगी। वहीं अगर कोई आदमी पैदल ही चलेगा तो वह इस दूरी को फीट में नापेगा। और वहीं हवाई जहाज इसे किलोमीटर के पैमाने पर नापेगा तो उसे समुद्र तट की लंबाई कम लगेगी।
शेयर बाजार का उतार चढ़ाव भी कुछ ऐसा ही है। अगर आप बाजार को रोज ट्रैक करेंगे तो आपको बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव दिखेगा। अगर आप बाजार को महीने में एक बार ट्रैक करेंगे तो उतार चढ़ाव कुछ कम लगेगा। अगर आप बाजार को साल में एक बार ट्रैक करेंगे तो उतार चढ़ाव और कम लगेगा। और अगर आप बाजार को दो या तीन साल में एक बार ट्रैक करेंगे तो आपको मुश्किल से कोई उतार चढ़ाव दिखेगा। अब आप सोच कर देखिए कि दस साल या इससे भी अधिक समय में बाजार को ट्रैक करने पर क्या होगा।
आप नीचे दिए गए दो चार्ट देखिए। एक चार्ट में 1994 से 2019 तक सेंसेक्स को डेली का उतार चढ़ाव दिखाया गया है। दूसरे चार्ट में अवधि समान है लेकिन सेंसेक्स को पांच साल में एक बार ट्रैक किया गया है।
पहला ग्राफ किसी भी निवेशक को चिंता में डाल सकता है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव दिख रहा है। वहीं दूसरे ग्राफ में एक तरह से उतार चढ़ाव बिल्कुल भी नहीं दिख रहा है।
अगर आपने इक्विटी में 1994 में निवेश किया होता और अपना निवेश पांच साल में एक बार देखते तो कभी आपको लगता कि आपका निवेश ज्यादा बढ़ा है और कभी कम बढ़ा है। लेकिन इसमें आपको ऐसा कुछ भी नहीं दिखेगा जो ज्यादा उतार चढ़ाव की बात साबित करे। 10 साल या इससे भी लंबी अवधि में सेंसेक्स का उतार चढ़ाव समतल हो जाता है और इसका मतलब है कि वास्तव में लगभग कोई उतार चढ़ाव नहीं रह जाता है।
इसका मतलब है कि शेयरों में निवेश से आपको लगातार नुकसान तभी हो सकता है अगर आप कम अवधि के ट्रेडर हैं। यानी कम अवधि के लिए निवेश करते हैं। अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं तो आपके लिए चिंता की कोई बात ही नहीं है।
लेकिन आप इक्विटी में निवेश कैसे करेंगे। इक्विटी में सोच समझ कर निवेश करने और रकम बनाने के लिए आपको शेयरों में खुद को निवेश करने की जरूरत नहीं है। आपके लिए यह काम इक्विटी म्युचुअल फंड करेगा।