दुनिया में दो तरह के निवेशक हैं। एक तो वे जो कंपाउंडिंग को समझते हैं और दूसरे वे निवेशक जो कंपाउंडिंग को नहीं समझते हैं। आमतौर पर निवेश करने वाला हर व्यक्ति यह दावा करता है कि वह कंपाउंडिंग को समझता है। लेकिन कंपाउंडिंग के उस जादू को बहुत कम लोग समझते हैं जिसकी वजह से आपका पैसा जादुई रफ्तार से बढ़ता है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि कंपाउंडिंग के नतीजों को गणित की समझ रखने वाले लोग ही अच्छी तरह से समझ सकते हैं। बाकी लोग इसे समझने के लिए कैलकुलेशन का सहारा लेते हैं। उदाहरण के लिए हम एक स्थिति पर विचार करते हैं। मान लेते हैं कि आपकों अपने निवेश पर 15 साल तक सालाना 10 फीसदी रिटर्न मिल रहा है या 5 साल की अवधि में निवेश पर 33 फीसदी रिटर्न मिल रहा है। इसका जवाब यह है कि आपको दोनों स्थिति में समान राशि मिलेगी। यह लगभग 4.18 गुना होगा।
लेकिन हम पहले समझते हैं कि कंपाउंडिंग है क्या ? कंपाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृदिध ब्याज तब पैदा होता है जब आपकी मूल राशि यानी निवेश में ब्याज या रिटर्न जुड़ता है। इस तरह से आपके निवेश में जो ब्याज या रिटर्न जुड़ता है वह भी ब्याज या रिटर्न कमाता है। सरल शब्दों में कहें तो आपकी मूल राशि में ब्याज का जुड़ना ही कंपाउंडिंग हैं। उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि आप बैंक में 100 रुपए जमा करते हैं और 10 फीसदी ब्याज सालाना कंपाउंड हो रहा है। पहले साल के अंत में ब्याज 10 रुपए होगा। दूसरे साल 10 फीसदी ब्याज आपकी मूल राशि यानी 100 रुपए और पहले साल मिले ब्याज दोनों पर मिलेगा। यह दोनों मिला कर 110 रुपए होगा। और अगले साल दूसरे साल मिला ब्याज भी इसमें जुड़ जाएगा। और हर साल यह प्रक्रिया चलती रहेगी। हालांकि हम यहां ब्याज शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन कंपाउडिंग हर तरह के रिटर्न पर होती है न कि सिर्फ ब्याज पर।
कंपाउंडिंग में समय या निवेश की अवधि सबसे अहम है। कंपाउंडिंग में आपका रिटर्न कमाई करना शुरू करता और इसके बाद पहले मिले रिटर्न पर मिलने वाला रिटर्न कमाई करना शुरू करता है। इस तरह से आपका मुनाफा तेजी से बढ़ता जाता है।