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एक असंभव लक्ष्य का फ़ायदा

कैसे एक 'अवास्तविक' लक्ष्य तय करना बड़ी पूंजी बनाने का आदर्श तरीक़ा हो सकता है?

निवेश का असंभव लक्ष्य और उसका फ़ायदा पढ़ें हिंदी मेंAnand Kumar

एक कॉन्सेप्ट है, 'स्ट्रेच टारगेट' (stretch targets) जिसे 'एक चुनौती भरे, महत्वाकांक्षी लक्ष्य के तौर पर परिभाषित किया जाता है, यानि एक ऐसा लक्ष्य, जिसे आमतौर पर पाने उम्मीद नहीं की जाती या जिसे आसानी से हासिल नहीं किया जा सकता.' 'स्ट्रेच टारगेट' दिमाग़ खोल देने वाली सोच है और कुछ ऐसा हासिल करना संभव कर देती है जिसे आप असंभव मानते थे.

जब एलन मस्क से उनके व्यवसायों के लिए तय किए पागलपन भरे लक्ष्यों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "धीरज रखना बंद करें और अपने-आप से पूछना शुरू करें कि मैं अपने 10 साल के प्लान को छह महीने में कैसे पूरा कर सकता हूं? शायद आप असफल हो जाएं, लेकिन उससे काफ़ी आगे होंगे जिसने ये मान लिया कि इसमें 10 साल लगेंगे."

हमारी इस महीने की कवर स्टोरी एक हद तक यही बात कर रही है, यानि, म्यूचुअल फ़ंड निवेश में स्ट्रेच टारगेट को लेकर है: क्या हर महीने ₹10,000 की SIP आपको ₹100 करोड़ तक पहुंचा सकती है? अगर सवाल बिना संदर्भ के है, तो 10 में से 10 लोग कहेंगे, "नहीं, ऐसा करना असंभव है", और वे शायद सही भी हों. हालांकि, यहां मस्क की सोच लागू करने की ज़रूरत है. एक असंभव लक्ष्य तय करना और उस पर काम करना आपको उस व्यक्ति की तुलना में अपने लक्ष्य के बहुत क़रीब ले जाएगा जो इसे असंभव मानता है और कभी कोशिश नहीं करता.

लेकिन यहां लक्ष्य तय करने से परे, एक गहरा मनोविज्ञान काम करता है. निवेश में स्ट्रेच टार्गेट की ख़ूबसूरती उसके महत्वाकांक्षी स्वभाव में है जो हमारे व्यवहार और फ़ैसलों के पैटर्न को बुनियादी स्तर पर बदल देता है. जब आप ₹100 करोड़ जैसा लक्ष्य ठान लेते हैं, तो पैसों को लेकर आपकी मानसिकता में कुछ दिलचस्प होता है. अचानक, उस महंगी कार को ख़रीदना इतना ज़रूरी नहीं रह जाता जिस पर अब तक आपका दिल आया हुआ था. और वो लेटेस्ट आईफ़ोन? उसके बजाए, एक बीच के प्राइस वाला एंड्रॉयड फ़ोन बेहतर लगता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि स्ट्रेच टार्गेट हमें धीरे-धीरे बढ़ने के बजाय बड़े स्तर पर बढ़ने की सोच रखने पर मजबूर करते हैं.

याद रखें, ज़्यादा बचत करने का सबसे शर्तिया तरीक़ा है ज़्यादा बचत करना. सोचिए: अगर आपका लक्ष्य ₹5 करोड़ जमा करना है, तो शॉपिंग में ₹20,000 बचा लेना बहुत बड़ी बात लगेगी. लेकिन जब लक्ष्य ₹100 करोड़ होता है, तो आप ₹20,000 को हाई-ग्रोथ में लगाने के मौक़ों के बारे में सोचना शुरू कर देंगे. आपका दिमाग़ी गुणा-भाग, "मैं कितना बचा सकता हूं?" नहीं पूछेगा, बल्कि इससे बदलकर ये सवाल करेगा कि "मैं इसे गुणा कैसे कर सकता हूं?". और ऐसे में, स्ट्रेच टार्गेट महत्त्वाकांक्षी न रहकर परिवर्तनकारी बन जाते हैं.

मैं जो कह रहा हूं, उसके विरोध का तर्क स्पष्ट है. लोग कहेंगे कि जब ऊपर बढ़ने की रफ़्तार धीमी लगती है तो ऐसे पहाड़ जैसे लक्ष्य हौसला तोड़ सकते हैं. ऐसा कहने वाले पूरी तरह से ग़लत नहीं हैं. ₹10,000 महीने की SIP से ₹100 करोड़ का सफ़र सिर्फ़ रिटर्न और कंपाउंडिंग की बात नहीं है - ये मार्केट साइकिल में गहरा भरोसा रखने की बात है जो अनुभवी से अनुभवी निवेशकों का भी सख़्त इम्तिहान लेती है. लेकिन यहां मैं मस्क के 'छह महीने में 10 साल' की फ़िलॉसफ़ी से अलग बात कर रहा हूं. बिज़नस में कुछ नया करने में कम समय लगाना एक बात है, मगर निवेश में समय आपका दुश्मन नहीं - सबसे बड़ा सहयोगी होता है. निवेश में स्ट्रेच टार्गेट की असली ताक़त निवेश का समय बढ़ाने की हमारी क्षमता में छुपी है.

जब आप ₹100 करोड़ जैसा लक्ष्य तय करते हैं, तो आपको कुछ साल के बजाय दशकों में सोचना पड़ता है. और ये लंबा समय आपको निवेश के बेहतर फ़ैसलों की ओर ले जाता है. मार्केट की गिरावट के दौरान आपके घबराने की संभावना कम होती है और हाई-ग्रोथ के साथ ज़्यादा उतार-चढ़ाव वाले एसेट्स में निवेश की संभावना ज़्यादा होती है.अब आप जल्दी मुनाफ़ा कमाने के बजाय अपने मुनाफ़े को दोबारा निवेश करने में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं.

तो, क्या ₹10,000 की SIP से ₹100 करोड़ पाना एक यथार्थवादी सोच है? हो सकता है मुट्ठी भर निवेशकों के लिए हो. लेकिन असल बात तय किए गए आंकड़े तक पहुंचना नहीं, बल्कि ऐसे बड़े महत्वाकांक्षी लक्ष्य का पीछा करना है, जो पूंजी बनाने का आपका पूरा नज़रिया बदल देता है. हो सकता है कि ₹100 करोड़ का लक्ष्य रखने वाला शख़्स 'केवल' ₹40 करोड़ तक ही पहुंच पाए - लेकिन तब भी ये उससे कहीं ज़्यादा होगा जो ₹10 करोड़ के ज़्यादा 'यथार्थवादी' लक्ष्य के साथ हासिल किया जा सकता था.

जैसे-जैसे हम 2025 में प्रवेश कर रहे हैं, ये सोचने का समय आ गया है कि हमारी निवेश यात्रा में क्या संभव है. मैं हमेशा से यथार्थवादी रहा हूं, लेकिन शायद यथार्थवादी लक्ष्य तय करने का पारंपरिक ज्ञान हमें पीछे खींच रहा है. ऐसी दुनिया, जहां तकनीकी प्रगति अभूतपूर्व गति से पैसा बना रही है, शायद सबसे अवास्तविक नज़रिया बहुत छोटा सोचना है.

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