फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (FD) लंबे समय से आम लोगों की पहली पसंद रही है. इसकी ख़ास बात है कि इसमें गारंटीशुदा रिटर्न मिलता है और इसे टैक्स बचाने का अच्छा तरीक़ा माना जाता है. लेकिन, अगर आप इसकी तुलना डेट फ़ंड से करेंगे, तो कौन सा विकल्प बेहतर होगा. यहां इसी पर चर्चा करते हैं.
Debt Fund क्या है?
डेट फ़ंड ऐसे फ़ंड हैं जो निवेशकों के पैसे बॉन्ड, डिबेंचर, सरकारी सिक्योरिटी और फ़िक्स्ड-इनकम के दूसरे विकल्पों में निवेश करते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य पूंजी को सुरक्षा और स्थिर रिटर्न देना है. डेट फ़ंड में रिस्क का स्तर इक्विटी फ़ंड की तुलना में कम होता है, जिससे ये कम रिस्क वाले निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प बनते हैं. ये कम समय के लक्ष्यों के लिए कारगर हैं. डेट फ़ंड में रिटर्न की दर उस दौर में लागू ब्याज दरों और क्रेडिट रिस्क पर निर्भर करती है. डेट फ़ंड में निवेश पर लिक्विडिटी और डायवर्सिफ़िकेशन का भी फ़ायदा मिलता है.
फिक्स्ड डिपॉज़िट क्या हैं?
फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) निवेश का एक ऐसा विकल्प है, जिसे बैंकों और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) द्वारा उपलब्ध कराया जाता है. इसमें निवेशक एक तय अवधि के लिए पैसा जमा करते हैं और उस पर पहले से तय ब्याज हासिल करते हैं. इस निवेश में सुरक्षित और तयशुदा रिटर्न मिलता है, जिससे ये कम रिस्क वाले निवेशकों के लिए सही होते हैं. FD की अवधि 7 दिनों से 10 साल तक हो सकती है और ब्याज दर अवधि और बाज़ार की स्थितियों पर निर्भर करती है. निवेशक मैच्योरिटी पर मूलधन और ब्याज प्राप्त करते हैं. FD टैक्स सेविंग के काम आती है और लोन के लिए कोलेट्रल के रूप में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
फ़िक्स्ड डिपॉज़िट अच्छा है या डेट फंड?
डेट फ़ंड और फ़िक्स्ड डिपॉज़िट काफ़ी हद तक एक जैसे हैं और क़रीबी प्रतिस्पर्धी भी हैं. हालांकि, दोनों में रिटर्न, निवेश की सुरक्षा और लिक्विडिटी के लिहाज़ से अंतर है. डेट फ़ंड की तुलना में फ़िक्स्ड डिपॉज़िट निवेश की सुरक्षा के लिहाज़ से बेहतर है. आगे दिए गए प्वाइंट्स से विस्तार से समझते हैं.
1. निवेश की सुरक्षा पहले
बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट करने वालों के लिए निवेश का सबसे सुरक्षित विकल्प है. इसमें डिफ़ॉल्ट की आशंका न के बराबर है. वहीं डेट फ़ंड में डिफ़ॉल्ट नहीं होगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है और इसका रिटर्न बाज़ार से जुड़ा है. डेट फ़ंड में निवेश करने वाले निवेशकों का डिफ़ॉल्ट का सामना करना पड़ सकता है. डेट फ़ंड जिन बॉन्ड में निवेश करता है उसे जारी करने वाली कंपनी को क्रेडिट से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
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2. लिक्विडिटी
लिक्विडिटी की बात करें तो ओपेन एंडेड डेट फ़ंड की रक़म दो से तीन वर्किंग-डे में अकाउंट में आ जाती है. वहीं FD का पैसा भी एक से दो दिन में मिल जाता है लेकिन FD से रक़म अगर मेच्योरिटी से पहले निकाली जाए तो इस पर जुर्माना देना पड़ता है. कुछ डेट फ़ंड को भुनाने पर एग्ज़िट लोड और चार्ज लगता है और कुछ डेट फ़ंड पर एग्ज़िट लोड नहीं लगता है. जैसे सात दिन के बाद बेचने पर लिक्विड फ़ंड पर एग्जिट लोड नहीं लगता है.
3. रिटर्न
बीते एक साल के दौरान (24 नवंबर 2024 तक) डेट फ़ंड (कैटेगरीज़) का रिटर्न 6.63 फ़ीसदी से 10.90 फ़ीसदी के बीच रहा है. इससे साफ़ है कि आप डेट फ़ंड में निवेश करके बैंक FD से ज़्यादा या उसके बराबर रिटर्न पा सकते हैं. निवेशक क्रेडिट रिस्क और इंटरेस्ट रिस्क को जानते हुए डेट फ़ंड में निवेश करते हैं और बदले में अच्छा रिटर्न हासिल करते हैं. आपको ज़्यादा फ़ायदा उठाने के लिए जोख़िम को लेकर सतर्क रहना चाहिए और सही फ़ंड में निवेश करना चाहिए.
वहीं, SBI की 1-3 साल तक की FD पर वर्तमान में (25 नवंबर 2024 तक) लगभग 7 फ़ीसदी ब्याज दर मिल रही है.
डेट फ़ंड की प्रमुख कैटेगरीज़ का एक साल का रिटर्न (%)
शॉर्ट ड्यूरेशन | 7.78 |
अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन | 7.09 |
लिक्विड | 7.13 |
मनी मार्केट | 7.39 |
ओवरनाइट | 6.63 |
कॉर्पोरेट बॉन्ड | 8.06 |
नोटः रिटर्न 24 नवंबर, 2024 तक के हैं |
4. टैक्स
डेट फ़ंड पर टैक्सः डेट फ़ंड पर टैक्स, ख़रीद की तारीख़, निवेश की अवधि और निवेश से बाहर निकलने की तारीख़ पर निर्भर करता है. यही बात आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं.
डेट फ़ंड्स में टैक्स
ख़रीद की तारीख़ | रिडीम करने की तारीख़ | निवेश होल्ड करने का पीरियड | टैक्स रेट | इंडेक्सेशन बेनिफ़िट |
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1 अप्रैल 2023 से पहले* | 23 जुलाई, 2024 से पहले | >36 महीने | 20.00% | उपलब्ध |
1 अप्रैल 2023 से पहले* | 23 जुलाई, 2024 को / उसके बाद | >24 महीने | 12.50% | उपलब्ध नहीं |
1 अप्रैल 2023 को / उसके बाद | किसी भी रिडेम्शन तारीख़ में | कोई भी होल्डिंग पीरियड | इनकम टैक्स स्लैब रेट के मुताबिक़% | लागू नहीं |
36 महीने या 24 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड के लिए, किसी मामले में, कैपिटल गेन्स को टैक्स के दायरे मे आने वाली इनकम में जोड़ा जाता है और लागू होने वाले स्लैब रेट के मुताबिक़ टैक्स लगाया जाता है. |
FD के रिटर्न पर टैक्सः इनकम टैक्स एक्ट की धारा 194A के अनुसार, FD के ब्याज पर TDS काटा जाता है. एक फ़ाइनेंशियल ईयर के दौरान FD से हुई इंटरेस्ट इनकम ₹40,000 (सीनियर सिटीजंस के लिए ₹50,000) से ज़्यादा होने पर 10% की दर से TDS काटा जाता है. लेकिन, अगर PAN की डिटेल्स नहीं दी जाती हैं, तो इंटरेस्ट इनकम से 20% की दर से TDS काटा जाता है.
डिपॉज़िट करने वाले जो लोग टैक्स के दायरे में नहीं आते, वे फ़ॉर्म 15G और फ़ॉर्म 15H (60 और उससे ज़्यादा की उम्र के सीनियर सिटीज़न के लिए) में एक डिक्लरेशन जमा कर सकते हैं. ऐसा करने से बैंक FD ब्याज पर TDS की कटौती नहीं कर पाएंगे और इस तरह डिपॉज़िटर को ज़्यादा प्रभावी कैश फ़्लो मैनेजमेंट में मदद मिलेगी.
टैक्स रिटर्न फ़ाइल करते समय FD की इंटरेस्ट इनकम को डिपॉज़िटर की सालाना कमाई में जोड़ा जाता है. ऐसे डिपॉज़िटर जिन्होंने फ़ॉर्म 15G या 15H दाखिल किया है, लेकिन उनकी आय टैक्सेबल है, उन्हें ITR दाखिल करते समय अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स का भुगतान करना होगा.
हमारी राय
आंकड़ों से साफ़ है कि आप डेट फ़ंड (debt fund) में निवेश करके बैंक फ़िक्स्ड डिपॉज़िट (FD) से ज़्यादा रिटर्न पा सकते हैं. निवेशक क्रेडिट रिस्क सहित दूसरे रिस्क को जानते हुए डेट फ़ंड में निवेश करते हैं और बदले में अच्छा रिटर्न हासिल करते हैं. आपको ज़्यादा फ़ायदा उठाने के लिए रिस्क को लेकर सतर्क रहना चाहिए और सही फ़ंड में निवेश करना चाहिए.
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