AI-generated image
भारत के ब्यूटी और पर्सनल केयर के अव्वल ब्रांड्स में से एक है मामाअर्थ. अपने विषाक्त सामग्रियों से रहित और पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लिए मामाअर्थ एक जाना-माना घरेलू नाम बन गया है. अपनी मज़बूत ऑनलाइन मौजूदगी, आक्रामक मार्केटिंग और जागरूक उपभोक्ताओं पर ध्यान केंद्रित करने से इसे तेज़ी से सफलता मिली है.
हालांकि, पिछले दो महीनों के दौरान कंपनी के शेयर 45 फ़ीसदी गिरे और इस वजह से एक निवेशक के तौर पर इसके कारोबार के तौर तरीक़ों और रणनीति पर ग़ौर करना ज़रूरी हो गया है.
आइए, कंपनी की चुनौतियों, मुद्दों और रणनीति पर बात करते हैं.
मामाअर्थ की फ़ाइनेंशियल मुश्किलें: आंकड़े क्या बयान करते हैं?
FY25 की दूसरी तिमाही के दौरान कंपनी का रेवेन्यू सालाना आधार पर 6.9 फ़ीसदी घट गया. इन्वेंट्री की कमी एडजस्ट करने के बावजूद, रेवेन्यू ग्रोथ में 5.7 फ़ीसदी सालाना की मामूली बढ़ोतरी ही हुई. इससे भी बड़ी चिंता ये रही कि पिछले साल इसी अर्से में ₹34 करोड़ के ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट के मुक़ाबले ऑपरेटिंग लॉस ₹41 करोड़ रहे.
FY25 की पहली छमाही में अपने ऑपरेशंस से कंपनी का कैश-फ़्लो भी निगेटिव हो गया, जो पिछले साल की तुलना में बड़ा बदलाव रहा और इससे फ़ाइनेंशियल मुश्किलों के बढ़ने के पता चलता है.
इस गिरावट का बड़ा कारण है, प्रोजेक्ट नीव (Project Neev), जिसका मक़सद टॉप 50 शहरों में सुपर-स्टॉकिस्ट से सीधे डिस्ट्रीब्यूटर बनाने की रणनीति अपनाना है. भले ही, ये रणनीति लंबे समय में सप्लाई चेन को आसान और दक्ष बना देगी, लेकिन छोटे अर्से में इससे मुश्किलें पैदा हुई हैं. ₹64 करोड़ के इस इन्वेंट्री सुधार ने रेवेन्यू और प्रॉफ़िट दोनों पर नेगेटिव असर डाला है.
मामाअर्थ का प्रोजेक्ट नीव: इरादा बनाम अमल
इरादा है कि प्रोजेक्ट नीव से मामाअर्थ की डिस्ट्रीब्यूशन स्ट्रैटजी में बुनियादी बदलाव आएंगे. कुछ बड़े बदलाव इस तरह होंगे:
- बड़े शहरों में सुपर-स्टॉकिस्ट बीच से हट जाएंगे.
- सीधे डिस्ट्रीब्यूशन करने का मॉडल बेहतर नियंत्रण और पारदर्शिता लाएगा.
- इन्वेंट्री, रियल टाइम में दिखेगी और सप्लाई चेन की क्षमता बेहतर होगी.
अब बात करते हैं इस प्लान पर अमल करने से पड़ने वाले असर की. इस पहल से भले ही वक़्त के साथ कंपनी की ऑफ़लाइन मौजूदगी मज़बूत होने की उम्मीद हो, लेकिन इसने प्लान को अमल में लाने की बाधाओं को उजागर किया है. मैनेजमेंट का अंदाज़ा है कि ऑपरेशन दुरुस्त करने में दो-तीन तिमाहियों का समय लग सकता है. आने वाली मुश्किलों की यही बात निवेशकों को चिंतित कर रही है.
इसके अलावा, IPO के दौरान डिस्ट्रीब्यूटरों ने जो ओवरस्टॉकिंग की उससे जुड़ी पुरानी चिंताएं दिखाती हैं कि इन्वेंट्री का मैनेजमेंट कंपनी के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है. ऐसे मुद्दों पर निवेशकों का भरोसा फिर से पाने करने के लिए सही प्लानिंग और उसके सही अमल की ज़रूरत बढ़ जाती है.
...एक परेशानी जो स्वीकारी गई
दूसरी तिमाही की अर्निंग कॉल के दौरान, मैनेजमेंट ने एक बड़ी वास्तविकता को स्वीकार किया और कहा कि मामाअर्थ को ₹1,000 करोड़ के रेवेन्यू तक ले जाने के लिए जो काम किया गया, वो इसे आगे बढ़ाने में काम नहीं करेगा.
भले ही, कंपनी के द डर्मा कंपनी और एक्वालॉजिका जैसे नए ब्रांड तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहे हैं (सालाना 30% ग्रोथ), लेकिन उनका आधार छोटा है. इसके अलावा ये ब्रांड, मामाअर्थ की तरह ही प्रोडक्ट लाइन में काम करते हैं, जो बताता है कि जैसे-जैसे उनमें ग्रोथ होती है, ऐसी ही चुनौतियां उनके सामने भी खड़ी हो सकती हैं.
ये भी पढ़िए - वैल्यू रिसर्च एक्सक्लूसिव: मल्टी-कैप फ़ंड्स पर हमारी पहली रेटिंग जारी!
इससे कंपनी को ऑफ़लाइन स्पेस में हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी दिग्गज FMCG कंपनियों से मुक़ाबला करना पड़ रहा है. ये एक ऐसा सेक्टर है, जिसमें बहुत ज़्यादा निवेश, कुशल संचालन और मज़बूत ब्रांड इक्विटी की ज़रूरत पड़ती है.
आगे का सफ़र
FY25 की दूसरी तिमाही के नतीजों के बाद शेयर की क़ीमत में गिरावट तेज़ हो गई है, लेकिन क्या आपके लिए ये निवेश का मौक़ा है? यहां हम कुछ फ़ैक्टर दे रहे हैं जिन पर आप विचार कर सकते हैं:
- बिज़नस मॉडल में बदलाव: कंपनी पारंपरिक FMCG कंपनियों के साथ तालमेल बैठाते हुए ऑफ़लाइन डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल की ओर बढ़ रही है. ये बदलाव महंगा और ऑपरेशन के लिहाज़ से चुनौती भरा है.
- मार्केटिंग पर ज़्यादा निर्भरता: कंपनी का मार्केटिंग ख़र्च रेवेन्यू का 40 फ़ीसदी है (FY25 की दूसरी तिमाही तक), जो पुरानी FMCG कंपनियों के 5 फ़ीसदी औसत से कहीं ज़्यादा है. इससे स्थिरता और प्रॉफ़िट से जुड़ी चिंताएं पैदा होती हैं.
निवेशकों के लिए, कंपनी का सफ़र ग्रोथ की कहानियों पर ग़ौर करने और बदलावों के दौरान सब्र रखने की अहमियत पर ज़ोर देता है. मामाअर्थ में क्षमता हो सकती है, लेकिन अपनी रणनीतिक पहल को पूरा करने की इसकी क्षमता ही तय करेगी कि ये अपने पैर जमा सकती है या नहीं.
ये भी पढ़िए - FMCG कंपनियों की ग्रोथ सुस्त क्यों है?