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शहरी मांग कमज़ोर है और इसीलिए भारत की फ़ास्ट-मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (FMCG) कंपनियों के कारोबार की धीमी रफ़्तार धीमी रही है.
साल 22-23 के वो सुनहरे दिन बीच चुके हैं जब FMCG कंपनियों ने सेंसेक्स - भारतीय बाज़ार का प्रॉक्सी - को बड़े अंतर से पछाड़ा था. आज, यानि 13 नवंबर 2024 तक ये सेक्टर सेंसेक्स से 10 फ़ीसदी पीछे चल रहा है. अगर ये उतना बुरा नहीं है, तो पिछले तीन महीनों में इस सेक्टर की 7 फ़ीसदी गिरावट, ‘ग़रीबी में आटा गीला’ वाली कहावत सिद्ध करती है.
मांग में कमी
तो, FMCG सेक्टर परेशान क्यों है? कम शब्दों में कहें, तो कम कंज़्यूमर डिमांड. दरअसल, ख़ाने-पीने की चीज़ों के महंगे होने ने घर के बजट हिला दिए हैं.
FMCG कंपनियां पहले ग्रामीण इलाक़ों में ख़राब मांग से जूझने के बावजूद चल रही थीं, लेकिन फिर शहरी इलाक़ों की मंदी ने उन्हें झटका दे दिया. और झटका लगे भी क्यों न, शहर उनकी कुल बिक्री का दो-तिहाई हिस्सा जो हैं.
अकेले इसी तिमाही (जुलाई से सितंबर 2024) में, शहरी बिक्री की ग्रोथ एक साल पहले के मुक़ाबले 11 प्रतिशत से धीमी होकर 2.8 प्रतिशत पर आ गिरी है.
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बड़ी कंपनियों पर असर
ब्रिटानिया को ही लें, कोलकाता की इस कंपनी की मेट्रो कैटेगरी इस साल (FY) के पहले तीन महीनों - अप्रैल, मई और जून - में 15 फ़ीसदी बढ़ी, लेकिन चालू तिमाही में इसका बिस्किट लोगों के हाथ से छूट गया औऱ महज़ 2 फ़ीसदी की दर से बढ़ रहा है.
ITC के भी पैर उखड़ गए हैं. दूर से नतीजों देखेंगे तो लगेगा ITC बड़ी अच्छी हालत में है, लेकिन क़रीब से स्टडी करेंगे तो कुछ और ही दिखाई देगा. तंबाकू से टूथपेस्ट तक बनाने वाली इस कंपनी ने इस तिमाही में दो अंकों की बढ़ोतरी पाई, जिसकी बड़ी वजह इसका कृषि और होटल बिज़नस है. इसी दौरान, इसका FMCG सेगमेंट सिर्फ़ 5.4 फ़ीसदी ही बढ़ा.
HUL ने भी अपनी सुस्त रफ़्तार के लिए शहरी बिक्री में कमी को ज़िम्मेदार ठहराया.
चोट पर नमक छिड़कने के लिए, नए दौर की उभरती कंपनियां, जमे-जमाए दिग्गजों का बाज़ार खा रही हैं, ख़ासतौर पर प्रीमियम सेगमेंट का बाज़ार.
इसके बावजूद, वरुण बेवरेजेज़ एक अलग ही कैटेगरी में है, जिसकी दोहरे अंकों की ऊंची आमदनी और मुनाफ़े का बढ़ना, प्रोडक्ट की बढ़ती पहुंच और अंतरराष्ट्रीय मार्केट में उसका विस्तार इस बढ़त की वजह रहे हैं.
FMGC कंपनियों के लिए बहुत कम विकल्प
वरुण बेवरेजेज को छोड़कर, ज़्यादातर बड़ी कंपनियों के अग्रिम पंक्ति के आंकड़े या तो कम हो रहे हैं या कम एकल अंकों के आंकड़ों में बढ़ रहे हैं
कंपनियां | मार्केट कैप (करोड़ ₹ में) | रेवेन्यू दर वर्ष | EBIT (अन्य आय को छोड़कर) YoY | PAT YoY |
---|---|---|---|---|
ITC | 6,00,778 | 15.6 | 3.9 | 1.80 |
हिंदुस्तान यूनिलीवर | 5,89,395 | 2.0 | -1.6 | -0.02 |
नेस्ले इंडिया | 2,18,661 | 1.3 | 0.7 | -0.01 |
वरुण बेवरेजेज | 1,91,123 | 25.2 | 25.8 | 22.30 |
ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज | 1,30,678 | 5.3 | -11.7 | -9.60 |
गोदरेज कंज्यूमर | 1,31,027 | 1.8 | 11.8 | 13.30 |
₹1 लाख करोड़ से ज़्यादा मार्केट कैप वाली कंपनियां शामिल की गई हैं ये आंकड़े FY25 की दूसरी तिमाही के हैं EBIT ब्याज और टैक्स से पहले की आय है PAT टैक्स के बाद का मुनाफ़ा है |
आगे क्या होगा
आइए पहले बुरी ख़बर की बात कर लें. कच्चे माल की क़ीमतों में लगातार बढ़ने से कंज़्यूमर गुड्स कंपनियों को नुक़सान होने की उम्मीद है. निकट भविष्य में उनकी बिक्री कम होकर, सिंगल डिजिट पर आ सकती है.
अब कुछ अच्छी ख़बर भी देख लेते हैं. प्रीमियम प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ी है. नीलसन (Nielsen IQ) की रिपोर्ट कहती है कि FMGC सेक्टर में प्रीमियम ब्रांड, ग़ैर-प्रीमियम ब्रांड के मुक़ाबले क़रीब दोगुने रेट से बढ़ रहे हैं, यानि उपभोक्ताओं महत्वकाक्षाएं बढ़ी हैं. हिंदुस्तान यूनिलीवर के मैनेजिंग डाइरेक्टर और चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफ़िसर रोहित जावा ने भी इसी बात को दोहराया, कि ""the premiumisation trend is secular"".
डिस्क्लेमर: ये स्टॉक रेकमंडेशन नहीं है. निवेश का कोई भी फ़ैसला पूरी जांच-पड़ताल से ही करें.
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