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आखिरकार इंतज़ार ख़त्म हुआ. हिंदुस्तान जिंक में 30 फ़ीसदी के साथ सबसे बड़ी माइनॉरिटी शेयरहोल्डर सरकार ने आखिरकार माइनिंग कंपनी में अपनी हिस्सेदारी कम करने की योजना पर आगे क़दम बढ़ा दिए हैं. कई साल की देरी और मार्केट में अनुकूल स्थितियों के इंतजार के बाद, सरकार जिंक और सिल्वर का उत्पादन करने वाली कंपनी में ऑफ़र फॉर सेल (OFS) के ज़रिए 2.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचकर क़रीब ₹ 5,900 करोड़ जुटा रही है.
पिछले साल शेयर में 73 फ़ीसदी की मज़बूती आई है, जिसका श्रेय सिल्वर की क़ीमतों में उछाल को जाता है और इससे सरकार को अच्छा फ़ायदा होना तय है. लेकिन OFS हिंद जिंक के मेजॉरिटी शेयरहोल्डर और पैरेंट कंपनी वेदांता के लिए भी ख़ुश होने का कारण है. असल में, वेदांता और सरकार एक-दूसरे से तमाम मुद्दों पर सहमत नहीं हैं. पैरेंट कंपनी कई साल से सरकार से हिंद जिंक में हिस्सेदारी बेचने और बाहर निकलने का अनुरोध करती रही है. इसकी वजह सरकार का फ़ैसले लेने में दखल होना है. OFS से ऐसा लगता है कि सरकार आखिरकार वेदांता के अनुरोधों का जवाब देते हुए हिंद जिंक पर अपनी पकड़ ढीली करने के लिए तैयार है.
लेकिन अगर ऐसा होता है, तो हिंद जिंक के निवेशकों के लिए ये चिंता की बात होगी. भविष्य में किसी समय सरकार के निकलने के परिणाम अच्छे नहीं होंगे.
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सरकार का संभावित एग्ज़िट क्यों चिंता की बात है
हिंद जिंक का शेयरहोल्डर्स को कमाई कराने का शानदार रिकॉर्ड रहा है. इसने पिछले 10 वर्षों में इक्विटी पर 25 फ़ीसदी का एवरेज रिटर्न या ROE दिया है, जबकि इस अवधि में डिविडेंड पेमेंट रेशियो 100 फ़ीसदी से ज़्यादा बनाए रखा है. हालांकि, पिछले तीन से चार वर्षों में, भारी डिविडेंड पेमेंट के चलते ग्रोथ पर इसका ख़र्च कम हो गया है.
फ़ाइनेंशियल ईयर 21 से फ़ाइनेंशियल ईयर 24 तक, इसकी अचल संपत्तियां स्थिर बनी हुई हैं क्योंकि लगभग ₹61,000 करोड़ डिविडेंड में बहा दिए गए हैं. ये कैश फ़्लो का लगभग 1.2 गुना है, जिसका मतलब है कि इसका डिविडेंड कमाई से कहीं ज़्यादा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि एक समय कैश सरप्लस वाली कंपनी के पास अब कैश से ज़्यादा क़र्ज़ है. इसकी जिम्मेदार वेदांता है जो डिविडेंड के माध्यम से हिंद जिंक से कैश लेती है और इसे अपने यूके की पैरेंट कंपनी वेदांता रिसोर्सेज को अपने भारी क़र्ज़ को कम करने के लिए देती है.
सरकार स्पष्ट रूप से एक ऐसी ताकत रही है जो कई प्रस्तावों के ज़रिए वेदांता को हिंद जिंक के कैश से बड़ा हिस्सा लेने से रोक रही है. सरकार के पूरी तरह से बाहर हो जाने का मतलब है कि वेदांता को अब कोई रोक नहीं सकता.
आपके लिए सबक
भले ही, हिंद जिंक की वित्तीय स्थिति मज़बूत बनी हुई है, जिसे सिल्वर (इसका रेवेन्यू में अहम योगदान है) के लिए मजबूत अनुकूल परिस्थितियों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन पैरेंट कंपनी वेदांता द्वारा निकाले गए भारी डिविडेंड का कंपनी के संचालन पर असर पड़ रहा है, जैसा कि इसकी अचल संपत्तियों में मंदी से स्पष्ट है. ग्रोथ के लिए निवेश करने की तुलना में डिविडेंड पर ज़्यादा पैसा ख़र्च किया जा रहा है. ये तभी बढ़ सकता है जब सरकार अंततः पूरी तरह से बाहर निकल जाए, जिससे वेदांता के कैश निकाले जाने को चुनौती देने वाला कोई नहीं बचेगा और हिंद जिंक की ग्रोथ की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचेगा.
डिस्क्लेमर: ये स्टॉक रिकमंडेशन नहीं है. निवेशकों को कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले पर्याप्त विचार कर लेना चाहिए.
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