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स्पाइसजेट की लेसर यानी पट्टादाता कंपनी कार्लाइल एविएशन (Carlyle Aviation) को यही लगता है. इस महीने की शुरुआत में, क़र्ज़ में डूबी एयरलाइन ने कहा कि लेसर 30 मिलियन डॉलर के बकाया (लीज एरियर) को एयरलाइन में ₹100 प्रति शेयर के हिसाब से इक्विटी में बदल रही है, जो इसके पिछले क्लोजिंग प्राइस से 72 फ़ीसदी प्रीमियम है! कार्लाइल 40 मिलियन डॉलर और राइट ऑफ कर रहा है और स्पाइसजेट की सहायक कंपनी स्पाइसएक्सप्रेस के लिए लगभग 20 मिलियन डॉलर को कनवर्टिबल डिबेंचर में बदल रही है. इस पूरी कवायद का मतलब है कि कंपनी की बुक में कुल ₹5,376 करोड़ के क़र्ज़ में से ₹587 करोड़ घट जाएंगे.
ये एयरलाइन दिक़्क़तों से गुजर रही है. हाल ही में QIP के ज़रिए ₹3,000 करोड़ जुटाना इसका एक और सबूत है. इस पैसे का इस्तेमाल बंद पड़ी फ्लीट को फिर से चालू करने और कैपेसिटी बढ़ाने में किया जाएगा. मैनेजमेंट को भरोसा है कि ये प्रयास सफल होंगे और स्पाइसजेट, जो ₹2,825 करोड़ की नेगेटिव नेटवर्थ और ₹409 करोड़ के घाटे (फ़ाइनेंशियल ईयर 24 तक) से जूझ रही है, दो से तीन साल में मुनाफ़े में आ जाएगी. ऐसा निम्नलिखित कारणों से संभव हो सकता है:
1. क़र्ज़ का बोझ स्पाइसजेट की कमज़ोरी रही है. कंपनी अपने कुछ सबसे बड़े लेसर (कार्लाइल एविएशन सहित) के साथ क़र्ज़ का निपटान कर रही है और उसे बाकी लेनदारों की बकाया राशि चुकाए जाने की भी उम्मीद है. कंपनी इस उद्देश्य के लिए QIP राशि के ₹750 करोड़ का इस्तेमाल करने की योजना बना रही है.
2. पेमेंट में चूक, मेंटेनेंस पर ज़्यादा ख़र्च और स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण इसके 58 विमानों में से लगभग 36 (62 फ़ीसदी) उड़ान नहीं भर पा रहे हैं. इसका लक्ष्य QIP के ज़्यादातर पैसे का इस्तेमाल इन विमानों को उड़ाना और अपनी फ्लीट में और विमान जोड़ना है. फ़ाइनेंशियल ईयर 2025 के आख़िर तक, इसका लक्ष्य 40 विमानों की फ्लीट बनाना है - जो अभी के साइज़ (22) से लगभग दोगुना है!
अगर ये लक्ष्य पूरे हो जाते हैं, तो स्पाइसजेट के कायापलट की बात मानी जा सकती है. मज़बूत ऑपरेशनल कैपेसिटी, कम क़र्ज़, ईंधन की कम क़ीमत और ज़्यादा डिमांड से कंपनी को अपना घाटा कम करने और अपनी बैलेंस शीट को हल्का करने (क़र्ज़ घटाने) में मदद मिल सकती है.
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लेकिन क्या ये काफ़ी है?
एयरलाइन की कोशिशें उम्मीद जगाती है. लेकिन इससे पहले कि आप इस बात पर भरोसा करें, हम आपको इंडस्ट्री में मौजूद कॉम्पिटीशन की याद दिलाना चाहेंगे, जो स्पाइसजेट की ग्रोथ की संभावनाओं के लिए जोख़िम पैदा करता है.
1. एविएशन एक हाई-वॉल्यूम इंडस्ट्री बानी हुई है. जो मार्केट शेयर जीतता है, वो दौड़ भी जीतता है. चूंकि स्पाइसजेट के पास स्टेबल फ्लीट नहीं है, इसलिए इसका मार्केट शेयर 2021 में 10.5 फ़ीसदी से घटकर इस समय 4 फ़ीसदी हो गया है. प्रतिस्पर्धी कंपनियां इंडिगो और एयर इंडिया के पास कुल मिलाकर लगभग 90 फ़ीसदी मार्केट शेयर है.
2. जहां इंडिगो अपनी समय की पाबंदी से ग्राहकों को लुभाती है, वहीं एयर इंडिया (अब टाटा ग्रुप से जुड़ी हुई) प्रीमियम यात्रियों को लुभाने के लिए अपने ऑफर बढ़ाने में व्यस्त है. ये दोनों दिग्गज मार्केट में अपनी स्थिति मज़बूत कर रही हैं और अपनी सेवाओं में सुधार कर रही हैं, जिसने ऑपरेशनल चुनौतियों से जूझ रही स्पाइसजेट को काफ़ी पीछे छोड़ दिया है.
3. स्पाइसजेट ग्राहक सेवा में भी पिछड़ी हुई है, जो कमज़ोर ब्रांड को दर्शाता है. ऑनलाइन सर्वे प्लेटफ़ॉर्म LocalCircles की एक हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि एयरलाइन सेवा संतुष्टि (सर्विस सेटिस्फैक्शन) के मामले में अपनी जैसी दूसरी कंपनियों की तुलना में सबसे निचले पायदान पर है. यात्रियों ने उड़ान में देरी, उड़ान के दौरान सेवाएं, बोर्डिंग और चेक-इन प्रोसेस और समय पर सूचना देने से संबंधित कई दिक़्क़तों को उजागर किया है.
4. आख़िर में, भले ही कंपनी अपने क़र्ज़ को कम करने और फ्लीट को बढ़ाने में कामयाब हो जाए, लेकिन इंडस्ट्री में ज़्यादा ऑपरेशनल ख़र्च और कम मार्जिन से शायद दिक़्क़तें बनी रहेंगी. जैसा कि इससे पहले भी देखा गया है, कुछ अच्छे साल के बाद ख़राब वक़्त भी शुरू हो सकता है.
हमारी राय
ऊपर बताए गए जोखिम इतने संजीदा हैं कि उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. ये जोखिम स्पाइसजेट के लिए बड़े खिलाड़ियों से मार्केट शेयर छीनना भी मुश्किल बनाते हैं. कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर अजय सिंह ने हाल ही में QIP फ़ंडरेजिंग के बाद एक न्यूज़ प्लेटफॉर्म से कहा, "ये एक ऐसी एयरलाइन है जो मरना नहीं जानती". जबकि हम इस बात से सहमत हैं कि एयरलाइन बच सकती है, पर निवेश करने लायक बदलाव भी सामने आने चाहिए. इसके लिए स्पाइसजेट को ऑपरेशनल और फ़ाइनेंशियल दोनों ही मोर्चों पर काफ़ी अच्छा काम करना होगा.
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