Anand Kumar
मार्केट और निवेश रेग्युलेटर सेबी ने हाल ही में एक पहल की घोषणा की है जो भारत में म्यूचुअल फ़ंड निवेश की पहुंच को बढ़ा सकता है. अगले तीन साल में, केवल ₹250 प्रति माह की SIP के ज़रिए म्यूचुअल फ़ंड में निवेश किया जा सकेगा. SBI म्यूचुअल फ़ंड के एक कार्यक्रम में सेबी चेयरपर्सन की ये घोषणा, हमारे देश में वित्तीय भागीदारी को बढ़ाने और व्यापक बनाने की दिशा में एक अच्छा क़दम है.
फ़ाइनेंशियल मार्केट के ऑब्ज़र्वर के तौर पर, मैं इसे और ज़्यादा लोगों को निवेश के दायरे में लाने की हमारी प्रगति के लिहाज से एक अच्छी घटना के तौर पर देखता हूं. ₹250 की SIP कई भारतीयों के लिए दरवाज़े खोलती है जो पहले म्यूचुअल फ़ंड निवेश में भाग नहीं ले पा रहे थे. सेबी का निवेश की सीमा को कम करना, हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से को म्यूचुअल फ़ंड्स में शामिल करने का न्यौता है.
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ये पहल, म्यूचुअल फ़ंड के मुख्य उद्देश्यों में से एक के साथ मेल खाती है, ख़ासतौर से भारतीय संदर्भ में: अपेक्षाकृत कम राशि के साथ कई स्टॉक और बॉन्ड में भाग लेने को आसान बनाना. म्यूचुअल फ़ंड कई व्यक्तियों से निवेश जमा करते हैं, जिससे उन्हें सिक्योरिटीज़ के डाइवर्स पोर्टफ़ोलियो तक पहुंच मिलती है, जो किसी आम निवेशकों के लिए चुनौती भरा हो सकता है. ₹250 की SIP इसी सोच को और आगे बढ़ाती है, और पेशेवर फ़ंड मैनेजमेंट और डाइवर्स पोर्टफ़ोलियो को ज़्यादा लोगों की पहुंच में ला देती है. इसे सेबी प्रमुख ने म्यूचुअल फ़ंड्स का "sachetisation" बताया, (सैशे यानी पॉलीथीन के छोटे पैकेट) जिन्होंने रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ों को बहुत बड़ी आबादी की पहुंच में ला दिया. ये एक सही तुलना है, क्योंकि ये रणनीति ऐसे देश में म्यूचुअल फ़ंड को ज़्यादा लोगों तक पहुंचा सकती है, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा ख़ुद को ₹500 या ₹1,000 की मौजूदा न्यूनतम SIP से बाहर पा सकता है.
हालांकि, भारत में म्यूचुअल फ़ंड निवेश अभी भी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, विशेष तौर पर जटिलता के संदर्भ में. हम नए निवेशकों का स्वागत करते हैं, मगर हमें उन बाधाओं पर भी विचार करना चाहिए जिनका वे सामना कर सकते हैं. आज उपलब्ध अलग-अलग तरह के फ़ंड, जिनमें से हरेक की अपनी ख़ासियतें और रिस्क प्रोफ़ाइल हैं, अनुभवी निवेशकों के लिए भी चुनौती खड़ी कर सकते हैं. नए निवेशकों के लिए तो ये जटिलताएं एक बड़ी चुनौती पेश करती हैं, ख़ासकर उन लोगों के लिए जिनकी आमदनी सीमित है और जो पैसों के मामले में ज़्यादा ग़लतियां कर सकते हैं.
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भारतीय फ़ंड इंडस्ट्री के आसान-से-समझने वाले वेनिला डायवर्सिफ़ाइड फ़ंड्स से थीमैटिक, सेक्टोरल या दूसरी तरह के ख़ास फ़ंड्स के कारण ये चुनौती काफ़ी मुश्किल हो गई है. आप इस पर सोचिए, जिसे मैंने वैल्यू रिसर्च के डेटा वेयरहाउस से निकाला है: 2018 में, भारतीय निवेशक के लिए उपलब्ध कुल इक्विटी फ़ंड्स में से 61 प्रतिशत सरल डायवर्सिफ़ाइड फ़ंड थे. उस साल के बाद, एक बदलाव होना शुरू हुआ और अब पैटर्न लगभग उलट गया है. 2023 में, लॉन्च किए गए फ़ंड्स में से 48 प्रतिशत डायवर्सिफ़ाइड थे, और 2024 में, लॉन्च किए गए फ़ंड्स में से केवल 37 प्रतिशत डायवर्सिफ़ाइड हैं! ये हास्यास्पद है. अगर म्यूचुअल फ़ंड का लक्ष्य सरल, समझने में आसान निवेश के रास्ते देना है, तो फ़ंड इंडस्ट्री द्वारा ये बदलाव 100 प्रतिशत निवेशक विरोधी है.
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ऐसा क्यों हो रहा है? ये कुछ रेग्युलेटर के किए गए बदलावों और भारतीय फ़ंड इंडस्ट्री द्वारा अपनाए गए रवैये के बीच बातचीत का नतीजा है. हालांकि आज ये मेरा विषय नहीं है (मैंने इस पेज पर पहले भी इस पर चर्चा की है और आगे भी करूंगा), लेकिन ये ₹250 की स्कीम के साथ संभावित समस्या को दिखाता है. म्यूचुअल फ़ंड विकल्पों की बढ़ती जटिलता और सही फ़ंड चुनने की मुश्किल पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. व्यापक वित्तीय भागीदारी की संभावना को देखते हुए, हमें फ़ंड विकल्पों को सरल बनाने और वित्तीय शिक्षा में सुधार करने की ज़रूरत को भी पहचानना चाहिए. वरना, अच्छी मंशा वाली पहल भी बुरे नतीजों की ओर ले जाएगी.
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