Income Tax on Buyback of Shares: अगर आप कंपनियों के द्वारा समय-समय पर लाए जाने वाले बायबैक ऑफ़र में अपने शेयर देकर फ़ायदा कमाने की स्ट्रैटजी के साथ निवेश की प्लानिंग कर रहे हैं तो अब आपके लिए सावधान हो जाने का समय है. इसकी वजह 1 अक्तूबर 2024 से शेयर बायबैक पर लगने वाले टैक्स के तरीक़े (taxation of share buybacks) में होने वाला बदलाव है. यहां हम आपको इस नई व्यवस्था को आसान शब्दों में समझा रहे हैं.
अभी शेयर बायबैक पर कैसे लगता है टैक्स
मौजूदा व्यवस्था के तहत, कंपनियों को बायबैक से जुड़े ट्रांज़ैक्शन पर 23.296 फ़ीसदी कर देना पड़ता है, जिसमें सरचार्ज (surcharge) और सेस (cess) शामिल हैं, जबकि शेयरहोल्डर्स को बायबैक से होने वाली आमदनी पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता.
अब कैसे लगेगा टैक्स
नए नियमों के तहत, बायबैक से होने वाली आय को डिविडेंड माना जाएगा और शेयरहोल्डर के इनकम टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स लगेगा. इसके अलावा, कंपनियों के लिए बायबैक ऑफ़र में भाग लेने वाले भारतीय नागरिकों से 10 फ़ीसदी और नॉन रेज़िडेंट इंडिविजुअल्स से 20 फ़ीसदी TDS कटौती करना ज़रूरी हो गया है.
नए नियमों से बुनियादी रूप से ये बदलाव हुआ है कि टैक्स की देनदारी अब कंपनियों से शेयरहोल्डर की तरफ़ शिफ्ट हो गई है.
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कम आकर्षक हो सकते हैं बायबैक
भले ही पहले कंपनियां टैक्स फ़्री बायबैक का लुत्फ़ उठाती थीं, लेकिन अब शेयरहोल्डर्स को अब उनके इनकम ब्रेकेट के आधार पर टैक्स का सामना करना पड़ेगा. इससे बायबैक अब कम आकर्षक हो सकते हैं और संभावित रूप से कंपनियां डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन या पूंजी वापस देने के दूसरे तरीक़ों को प्राथमिकता देती नज़र आ सकती हैं.
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10(34A) के तहत, शेयर बायबैक के ज़रिए शेयरहोल्डर्स को मिली रक़म को छूट हासिल थी. हालांकि, कंपनी को मिले प्रीमियम (अगर कोई है) को एडजस्ट करते हुए बायबैक की रक़म पर 20 फ़ीसदी टैक्स के साथ-साथ 12 फ़ीसदी सरचार्ज और 4 फ़ीसदी सेस का बोझ उठाना पड़ता था. इस प्रकार प्रभावी टैक्स 23.296 फ़ीसदी होता है. इस प्रकार टैक्स की मौजूदा व्यवस्था में बायबैक से मिले पैसे पर टैक्स से जुड़ी कोई देनदारी शेयरहोल्डर्स पर नहीं आती है, जो कैपिटल लौटाने के लिहाज़ से इन्वेस्टरों के लिए फ़ायदेमंद है.
किसे होगा फ़ायदा
बायबैक से जुड़े टैक्स में बदलाव से कुछ ख़ास तबकों को फ़ायदा हो सकता है. उदारण के लिए, डबल टैक्सेशन ट्रीटीज के चलते नॉन रेज़िडेंट शेयरहो्डरों पर लगने वाले डिविडेंड टैक्स रेट्स में कमी आ सकती है, जिससे शेयर बाज़ार में उनकी भागीदारी बढ़ सकती है.
इसके अलावा, इक्विटी में निवेश करने वाले फ़ंड्स को डिविडेंड और बायबैक के बीच कम कर अंतर से फ़ायदा मिल सकता है. हालांकि, अमीर निवेशक यानी हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स और ऊंचे टैक्स ब्रैकेट में आने वाले भारतीय शेयरधारकों के लिए, बढ़ी हुई टैक्स की देनदारियों के कारण बायबैक स्कीम कम आकर्षक हो सकती हैं. इसके चलते कंपनियों और इन्वेस्टर्स को अपनी निवेश स्ट्रैटजी पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
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