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कोल इंडिया ने तीन दिग्गज केमिकल कंपनियों के लिए मुश्किल खड़ी की

Coal India की वजह से Deepak Fertilisers, RCF और Chambal Fertilisers का अमोनियम नाइट्रेट कारोबार मुश्किल में पड़ेगा

Coal India ने इन 3 chemical stocks की बढ़ाईं मुश्किलेंAI-generated image

भारत की सबसे बड़ी अमोनियम नाइट्रेट बनाने वाली कंपनियों के लिए मुश्किल दौर की शुरुआत हो गई है. कोल इंडिया ने भारतीय खनन क्षेत्र में ग्रोथ की उनकी शानदार योजनाओं में बाधा डाल दी है. लेकिन ऐसा कैसे हुआ? आइए समझते हैं.

संभावनाएं भरपूर हैं
कोयला भारत की ऊर्जा का सबसे बड़ा ज़रिया है और देश की खनन गतिविधियों को विस्तार भी देता है. खनन के लिए अमोनियम नाइट्रेट की ज़रूरत होती है, जिसका इस्तेमाल खदानों के लिए विस्फोटक बनाने में किया जाता है. तीन कंपनियां - दीपक फ़र्टिलाइजर्स एंड पेट्रोकेमिकल्स, चंबल फ़र्टिलाइजर्स और RCF - बड़े पैमाने पर अमोनियम नाइट्रेट के लगभग 10 लाख टन प्रति वर्ष के बाज़ार को आपूर्ति करती हैं, जिसमें से 60 प्रतिशत की अकेले कोयला खनन में खपत होती है.

स्वाभाविक रूप से, कोल इंडिया अमोनियम नाइट्रेट की सबसे बड़ी कंज़्यूमर है. और, इसका कोयला उत्पादन (मात्रा के हिसाब से) इस केमिकल की मांग को और मज़बूत कर रहा है. असल में, FY21-24 के बीच इसका कोयला उत्पादन 9 फ़ीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है. इसके अलावा, लगभग 20-30 फ़ीसदी रसायन आयात किया जाता है, जिससे इसके उत्पादकों के लिए और ज़्यादा गुंजाइश बचती है.

इसलिए वे अनुमानित ग्रोथ का फ़ायदा उठाने के लिए दोगुनी कोशिश कर रहे हैं. दीपक फ़र्टिलाइज़र्स के इसका सबसे बड़ी लाभार्थी होने की उम्मीद है. 40 फ़ीसदी की बाज़ार हिस्सेदारी और 5.4 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MTPA) की अमोनियम नाइट्रेट उत्पादन क्षमता के साथ, ये अपनी क्षमता को दोगुना करके 10 लाख MTPA करने के लिए डी-बॉटलनेकिंग और ग्रीनफ़ील्ड बढ़ा रही है. अगर कंपनी ये उपलब्धि हासिल कर लेती है, तो ये दुनिया की तीन सबसे बड़ी शुद्ध अमोनियम नाइट्रेट बनाने वाली कंपनियों में शामिल हो जाएगी. दूसरी प्रमुख कंपनी RCF अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 3.3 लाख MTPA करने के लिए पूंजीगत व्यय करेगी. तुलनात्मक रूप से इस क्षेत्र की नई कंपनी चंबल फर्टिलाइजर्स ₹1,645 करोड़ के पूंजीगत व्यय के साथ 2.4 लाख MTPA क्षमता का अमोनियम नाइट्रेट संयंत्र स्थापित कर रही है.

अब आपको लग रहा होगा कि सब कुछ ठीक चल रहा है. मांग अच्छी है और बड़ी क्षमता वाले बड़े खिलाड़ी और भी बड़े बनने के लिए पैसे लगा रहे हैं. तो, आखिर क्या ग़लत हो सकता है?

क्या कर रही है कोल इंडिया
कोल इंडिया अब तक अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल करने वाली सबसे बड़ी कंपनी थी. अब ये एक प्रमुख सप्लायर भी बनना चाहती है. लेकिन वो ऐसा मुख्य रूप से अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए करना चाहती है. कंपनी कोयला गैसीफ़िकेशन संयंत्र के लिए BHEL के साथ एक ज्वाइंट वेंचर स्थापित करेगी, जिससे 6.6 लाख टन अमोनियम नाइट्रेट का उत्पादन होने की उम्मीद है. कोल इंडिया अपने मार्जिन और क्षमता उपयोग को बेहतर बनाने के लिए इस उत्पादन का ज़्यादातर हिस्सा कैप्टिव खपत के लिए इस्तेमाल करेगी, जिसका मतलब है कि वो अब सबसे बड़ी कंज़्यूमर नहीं रह जाएगी, जिससे बाज़ार की मांग कम हो जाएगी. और चूंकि ये एक उत्पादक भी होगी, इसलिए ये आपूर्ति की अधिकता का कारण भी बन सकती है, जो निश्चित रूप से केमिकल मार्केट को दोतरफ़ा नुक़सान पहुंचाएगी!

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जहां तक केमिकल का उत्पादन करने वाली कंपनियों का सवाल है, उनकी ग्रोथ की योजनाएं और उम्मीदें शायद उनके अपने हित के लिए बहुत अच्छी हैं. चंबल के प्रबंधन ने पुष्टि की है कि 6 फ़ीसदी प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही बाज़ार की मांग मज़बूत बनी रहेगी, क्योंकि खनन गतिविधियां ज़ोरदार बनी रहेंगी. उन्होंने भरोसा ज़ाहिर किया कि कोल इंडिया के आने से होने वाली किसी भी अतिरिक्त सप्लाई को आसानी से अवशोषित कर लिया जाएगा. लेकिन गहराई से कैलकुलेशन करें तो ये बात झूठ लगती जहां तक रासायनिक उत्पादकों का सवाल है, उनकी विकास योजनाएं और आशावाद शायद उनके अपने हित के लिए बहुत अच्छा है. चंबल के प्रबंधन ने पुष्टि की है कि 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही बाज़ार की मांग मज़बूत बनी रहेगी क्योंकि खनन गतिविधियां ज़ोरदार बनी रहेंगी. उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि कोल इंडिया के प्रवेश से होने वाली किसी भी अतिरिक्त आपूर्ति को आसानी से इस्तेमाल किया जाएगा. लेकिन मोटे तौर पर किए गए कैलकुलेशन से भी ये बात सही नहीं लगती.

असर क्या होगा
मौजूदा, क़रीब 10 लाख टन के अमोनियम नाइट्रेट मार्केट में 7 फ़ीसदी की सालाना ग्रोथ और कोल इंडिया- BHEL संयंत्र के चालू होने में संभावित रूप से 10 साल लगने की बात मानते हुए, 2034-35 तक मांग लगभग 20 लाख टन तक बढ़ जाएगी. इसमें से, कोल इंडिया को 6-7 लाख टन की खपत करनी है. लेकिन, तीनों केमिकल कंपनियों द्वारा उनकी मौजूदा क्षमता बढ़ाने की योजनाओं के अनुसार लगभग 16 लाख टन का उत्पादन किया जाएगा, जबकि शेष मांग केवल 13 लाख टन होगी. इस प्रकार, ये कहना काफ़ी है कि वर्तमान में घरेलू आपूर्ति में कमी वाले बाज़ार में आने वाले सालों में कमी आ जाएगी.

एक सबक़ निवेशकों के लिए
कोल इंडिया ने एक ऐसी बड़ी पहल की है, जिसे टालना मुश्किल है. तीनों केमिकल बनाने वाली कंपनियां अब गंभीर बाधा की ओर देख रही हैं, भले ही ऐसा कुछ सालों बाद हो. ये बात इसलिए भी अहम है, क्योंकि वे अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा अमोनियम नाइट्रेट से कमाती हैं. इस केमिकल के दम पर FY25 की पहली तिमाही में दीपक फ़र्टिलाइज़र्स ने अपने ऑपरेटिंग मार्जिन का क़रीब 50 फ़ीसदी हासिल किया. और, FY23 में RCF के रेवेन्यू का लगभग 32 फ़ीसदी (यह सबसे हालिया आंकड़ा है जो हम पा सके) हासिल किया. वहीं, चंबल के लिए, पूंजीगत व्यय समाप्त होने के बाद कंपनी की अचल संपत्तियों का लगभग 20 फ़ीसदी इससे आने की उम्मीद है.

अब एकमात्र राहत की बात ये है कि भारत में कोयला गैसीफ़िकेशन को सीमित सफलता मिली है, भले ही ये 1960 के दशक से लागू हो. इसका एक कारण भारत के कोयला भंडार में राख की ऊंची मात्रा हो सकती है, जो प्रक्रिया की समग्र दक्षता को कम करती है. अगर ये कोल इंडिया के लक्ष्य में देरी या पटरी से उतरने में भूमिका निभाता है, तो केमिकल प्रोड्यूसर कंपनियां राहत की सांस ले सकती हैं. शायद, बाज़ार भी इसी पर उम्मीदें लगाए बैठा है, क्योंकि तीनों शेयरों ने इस घटनाक्रम पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है.

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