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सरल निवेश से अद्भुत दौलत तक का सफ़र

धीरज रखने का जादू क्या है और क्यों 'कुछ न करना' बेहतर हो सकता है 'कुछ भी करने' से

Simple investing strategy in HindiAnand Kumar

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कुछ समय पहले, मैंने रोनाल्ड रीड की दिलचस्प कहानी सुनी. वो एक अमेरिकन क्लीनर और गैस स्टेशन अटेंडेंट थे, जिन्होंने 2014 में अपने निधन के समय 8 मिलियन डॉलर (क़रीब ₹65 करोड़) की दौलत छोड़ी. ये वाक़ई अचरज भरा है कि उन्होंने ये संपत्ति ऐसे कामों को करते हुए बनाई, जिनसे उन्हें कभी बड़ी सैलरी नहीं मिली.

रोनाल्ड रीड की कहानी किसी जादुई इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजी की नहीं है, न ही किसी बड़े जैकपॉट पा जाने की है. ये उन बुनियादी निवेश के सिद्धांतों की कहानी है, जिनके बारे में मैंने इस कॉलम में बरसों लिखा है. रीड की कहानी इन सिद्धांतों की ताक़त की अनोखी मिसाल है.

रीड ने 25 साल तक गैस स्टेशन पर और 17 साल जे.सी. पेनी में बतौर क्लीनर काम किया. इस दौरान, उन्होंने लगातार उन कंपनियों में निवेश किया जिन्हें वे समझते थे. वे डिविडेंड देने वाली ब्लू-चिप कंपनियों पर फ़ोकस करते थे, जैसे जॉनसन एंड जॉनसन, सी.वी.एस. हेल्थ और प्रॉक्टर एंड गैंबल. उन्होंने कभी भी ट्रेंडी टेक के शेयरों या ऐसे विकल्प नहीं चुने, जिन्हें वे समझते नहीं थे. उनके निधन के समय, उनके पोर्टफ़ोलियो में 95 कंपनियों के शेयर थे, जो हेल्थकेयर, टेलीकॉम, यूटिलिटीज़ और कंज़्यूमर गुड्स जैसे अलग-अलग सेक्टरों से थे.

रीड के निवेश की सबसे ख़ास बात ये थी कि वो 'कुछ न करने' की कला में माहिर थे. वे पूरी तरह से धैर्यवान निवेशक थे. उनके शेयर सर्टिफ़िकेट्स उनकी बैंक लॉकर में पांच इंच के ढेर में एक के ऊपर एक रखे रहते थे. ये शेयर ट्रेडिंग के लिए नहीं, बल्कि दशक-दर-दशक बढ़ने और कंपाउंडिंग के लिए रखे गए लॉन्ग-टर्म होल्डिंग्स थे.

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उनकी निवेश रणनीति बेहद सरल थी: अच्छी क्वालिटी की कंपनियों के शेयर ख़रीदो, डिविडेंड्स को दोबारा इन्वेस्ट करो, और - सबसे अहम - उन्हें वैसे ही छोड़ दो. 2008 में जब लेहमैन ब्रदर्स का पतन हुआ, तब भी रीड घबराए नहीं. उनके कई निवेशों में फैले हुए पोर्टफ़ोलियो की वजह से ये बड़ा झटका भी उनके कुल रिटर्न पर कम असर डाल सका.

रीड का ये तरीक़ा बेहद सुंदर और सरल है, क्योंकि इसके लिए किसी ख़ास ज्ञान या कला की ज़रूरत नहीं है. सिर्फ़ अनुशासन और धीरज चाहिए. वे ख़ुद को रोज़ाना वॉल स्ट्रीट जरनल पढ़कर और लाइब्रेरी जाकर शिक्षित करते थे. उनके पास न तो ट्रेडिंग टर्मिनल थे, न जटिल एल्गोरिदम, न ही कोई डे-ट्रेडिंग ऐप.

लेकिन रीड की कहानी का एक और पहलू है, जिस पर चर्चा ज़रूरी है - उनकी ग़ज़ब की सादगी. वे पुरानी टोयोटा कार चलाते थे, कपड़े सेफ़्टी-पिन्स के सहारे जोड़े रखते थे, और एक बार किसी ने उन्हें रेस्टोरेंट में फ़्री खाने का ऑफ़र दिया क्योंकि उसे लगा कि वे पैसे नहीं दे पाएंगे. हालांकि उनका बचत करने का जुनून क़ाबिल-ए-तारीफ़ है, हमें उनकी निवेश की समझ को अपनाने के लिए उनके लाइफ़स्टाइल को कॉपी करने की ज़रूरत नहीं है. असली सीख ये है कि साधारण, धीरज वाले निवेश से बड़ी दौलत बनाई जा सकती है.

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भारतीय निवेशकों के लिए सबक़
भारतीय निवेशकों के लिए रीड की कहानी आज के समय में बेहद प्रासंगिक है. जिस तरह वे अमेरिकी ब्लू-चिप्स पर टिके रहे, वैसे ही हमारे पास भी ऐसी क्वालिटी कंपनियां हैं, जिनका लंबा डिविडेंड देने का इतिहास है. जैसे पावर ग्रिड, एबट इंडिया या सेरा सैनिट्रीवेयर. ये भले ही सोशल मीडिया पर रोमांचक चर्चाओं का हिस्सा न बनें, लेकिन लंबे समय तक धैर्य रखने वाले निवेशकों के लिए ये स्टॉक लगातार दौलत बनाने वाले साबित हुए हैं.

आज के दौर में, जब युवा निवेशक एफ़ एंड ओ ट्रेडिंग या क्रिप्टो करेंसी के तेज़ी से पैसे बनाने के जाल में फंस रहे हैं, रीड की सफलता हमें सिखाती है कि तेज़ मुनाफ़े की बजाय ठोस कंपनियों में निवेश करना बेहतर है. ख़ासतौर पर डिविडेंड देने वाले स्टॉक्स पर उनका फ़ोकस बेहद शिक्षाप्रद है. डिविडेंड पॉलिसी में निरंतरता अक्सर मज़बूत कॉर्पोरेट गवर्नेंस और टिकाऊ बिज़नेस मॉडल्स का संकेत देती है.

इसलिए, अगली बार जब आप अपने पोर्टफ़ोलियो में नाटकीय बदलाव करने की सोचें या किसी नए इन्वेस्टमेंट ट्रेंड के पीछे भागें, तो इस वर्किंग-क्लास अमेरिकन की कहानी को याद करें. ये दिखाता है कि कभी-कभी सबसे अच्छा निवेश कदम 'कुछ न करना' भी हो सकता है.

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