भारत में स्टार्टअप के IPO को लेकर काफ़ी उत्सुकता रहती है. इतिहास बताता है कि निवेशक इनमें निवेश करने से हिचकिचाते नहीं हैं. EV या AI जैसी हॉट थीम से हर कोई जुड़ना चाहता है. दलाल स्ट्रीट में, इस वक़्त सबसे ज़्यादा 'ओला इलेक्ट्रिक' के IPO की चर्चा हो रही है. चर्चा का एक कारण शायद इस इशू की आकर्षक क़ीमत है, जिसे कंपनी से जुड़ी पिछली उम्मीदों से थोड़ा कम करके आंका गया है. इस IPO को लेकर चल रहा उतावलापन फिर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या ये कंपनी भी न्यू-ऐज़ क्लब की बाक़ी कंपनियों की तरह निवेशकों को घाटा ही पहुंचाएगी, ख़ासकर तब जब आप ओला की शुरुआती ग्रोथ स्टेज और उसके मौजूदा घाटे के दौर को देखते हैं?
कंपनी का बिज़नस मॉडल फंडामेंटल नज़रिए से भी सही नहीं है. यही वजह है कि आपको ओला इलेक्ट्रिक की 'सवारी' करने से पहले सोच-विचार कर लेना चाहिए. इसकी आठ वजह ये हैं:
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1. ये एक कैश-बर्निंग मशीन है
अपने मार्केट शेयर को बढ़ाने के नाम पर घाटे वाले ऑपरेशन चलाना न्यू-ऐज़ टेक कंपनियों के बीच एक आम चलन सा बन गया है, और ओला इलेक्ट्रिक पर भी ये बात लागू होती है. ऑपरेटिंग लेवल पर ये अभी भी मुनाफ़े में नहीं आई है. लेकिन इससे भी ज़्यादा चिंता की बात ये है कि इसका कैश-बर्निंग रेट तेज़ी से बढ़ रहा है. कंपनी ने FY22 और FY24 के बीच ₹3,025 करोड़ का कुल ऑपरेटिंग कैश ऑउटफ़्लो दर्ज़ किया, जो कि IPO से जुटाई जा रही राशि (नए इश्यू) का लगभग 55 फ़ीसदी है. ये बात इसके बिज़नस की स्टेबिलिटी पर गहरा शक़ पैदा करती है.
2. बाहरी फ़ंड पर निर्भर रहने से जुड़ा जोख़िम
नए स्टार्टअप की एक और विशेषता ये होती है कि वे फ़ंड के लिए बाहरी सोर्स पर निर्भर रहते हैं. ये सोर्स आम तौर पर वेंचर कैपिटलिस्ट (VC) होते हैं जो शुरुआती स्टेज में नए स्टार्टअप के महत्वाकांक्षी आईडिया को फ़ंड देते हैं. हालांकि, ये VC बिज़नस के मैच्योर हो जाने पर IPO के ज़रिए बाहर निकलकर अपना मुनाफ़ा बुक कर लेते हैं, जिससे अक्सर नए निवेशक कमज़ोर पड़ जाते हैं. ओला इलेक्ट्रिक के VC निवेशक भी यही रास्ता अपना रहे हैं. इसके अलावा, अब कंपनी को प्राइवेट निवेशकों से पहले की तरह आसानी से फ़ंड जुटाने के लिए जूझना पड़ सकता है. इसे अपनी वर्किंग कैपिटल ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर लोन भी लेना पड़ा है. मार्च 2024 तक, कंपनी का डेट-टू-इक्विटी रेशियो 1.3 गुना था. कैश की ख़राब स्थिति को देखते हुए, कंपनी संभावित रूप से बाहरी फ़ंड जुटाने पर निर्भर रहेगी.
3. EV मार्केट में जमना बाक़ी है
EV अपनाने को बढ़ावा देने के लिए नए प्रोडक्ट लॉन्च और सरकारी सब्सिडी के बावज़ूद, ये तकनीक और इसका मार्केट अभी भी नया है. इंडस्ट्री को बड़े स्तर पर R&D की ज़रूरत है और EV बैटरी पैक लगाने में काफ़ी ज़्यादा ख़र्च भी आता है. इसकी तकनीक नई है क्योंकि लिथियम बैटरी की जगह दूसरे विकल्प खोजने का काम अभी भी जारी है. भारत जैसे देश (जहां एनर्जी की पहले से ही कमी है) में चार्जिंग इंफ़्रास्ट्रक्चर अभी काफ़ी कम विकसित है. इसलिए, ओला इलेक्ट्रिक जैसी 'कैश की कमी' वाली कंपनी के लिए इस बिज़नस को बढ़ाना एक कठिन काम साबित हो सकता है.
4. सिर्फ़ EV सेगमेंट पर फ़ोकस
ओला इलेक्ट्रिक एक पूरी तरह से EV पर फ़ोकस करने वाली कंपनी है जो अपने साथी खिलाडियों की तरह ईंधन का इस्तेमाल करने वाले इंटरनल कम्बशन इंजन (ICE) व्हीकल नहीं बनाती है. यहां तक कि मौज़ूदा भारतीय व्हीकल मैन्युफैक्चरर भी अपने साइडकिक EV बिज़नस में प्रॉफ़िटेबल नहीं बन पाए हैं; इसलिए क्योंकि ये तकनीक और इसका मार्केट अभी मैच्योर नहीं है और साथ ही छोटा भी है. तो, ये सवाल तो बनता ही है एक पूरी तरह से EV ये कंपनी कैसे मुनाफ़ा कमाएगी. ICE कंपनियों के पास भारतीय ऑटो मार्केट में दशकों का प्रॉफ़िटेबल ट्रैक रिकॉर्ड है. ये चीज़ ओला इलेक्ट्रिक के लिए प्रोडक्ट डाइवर्सिफ़िकेशन से जुड़े बड़े जोख़िम पैदा करती है, क्योंकि EV तकनीक या मार्केट में आने वाली एक छोटी सी अड़चन भी इसके पहले से ही ख़राब फ़ाइनेंशियल को बड़ा झटका दे सकती है.
5. सरकारी बैसाखी के सहारे
ओला इलेक्ट्रिक एक छोटे (पूरी तरह से डेवलप नहीं है) EV मार्केट में एक छोटा सा खिलाड़ी है. न सिर्फ़ कंपनी, बल्कि पूरी इंडस्ट्री को निवेश के लिए सरकार से बड़ी मदद की ज़रूरत है. सरकार, ऑटोमोबाइल PLI योजना के तहत इंडस्ट्री को उनकी इंक्रीमेंटल EV सेल (स्टीपलटेड बेस ईयर में) पर इंसेंटिव देती है. यहां तक कि ग्राहकों को भी इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर ख़रीदने पर 15 फ़ीसदी तक की सब्सिडी मिलती है, साथ ही GST दरें भी कम होती हैं. इन फ़ायदों के बावज़ूद, इंडस्ट्री ने मुश्किल से उड़ान भरी है और सरकारी मदद में किसी भी तरह की कमी इस नाज़ुक मार्केट के लिए दिक्क़ते पैदा कर सकती है.
6. चीन पर निर्भरता
FY24 में, ओला द्वारा चीन से मंगाई गई सप्लाई कंपनी के कुल मैटेरियल ख़र्च का 36 फ़ीसदी थी. ये निर्भरता एक बड़ा ख़तरा है क्योंकि चीन दुनिया की लगभग 80 फ़ीसदी लिथियम सप्लाई को नियंत्रित करता है. वैसे तो पिछले साल चीनी ओवरसप्लाई के कारण लिथियम की क़ीमतों में 70 फ़ीसदी तक की गिरावट से कंपनी को फ़ायदा हुआ था, पर सप्लाई कॉन्सेंट्रेशन ने लिथियम की क़ीमतों को काफ़ी ज़्यादा अस्थिरता के प्रति उजागर कर दिया है. ये स्वाभाविक रूप से ओला के कॉस्ट स्ट्रक्चर पर असर डालता है. यहां तक कि ओला इलेक्ट्रिक का सेल-मैन्युफैक्चरिंग गीगाफैक्ट्री प्रोजेक्ट भी चीन से आने वाली सप्लाई पर बहुत ज़्यादा निर्भर करता है.
7. कमज़ोर डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क
टू-व्हीलर बनाने वाली कंपनियों को बड़े डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क की ज़रूरत पड़ती है. हीरो मोटोकॉर्प के पास 9,000 से ज़्यादा रिटेल टच पॉइंट हैं, जबकि TVS मोटर के पास 4,500 से ज़्यादा हैं. अब इसकी तुलना ओला के सिर्फ़ 870 एक्सपीरियंस सेंटर के छोटे नेटवर्क से करें -- जो कि COCO (कंपनी ओन्ड कंपनी ऑपरेटेड) मॉडल पर चलता है, जिसके लिए ज़्यादा कैपिटल की ज़रूरत पड़ती है. यही कारण है कि कंपनी मौज़ूदा सेंटरों का किराया देने और अपने नेटवर्क को बढ़ाने के लिए IPO की कुल राशि से लगभग ₹300 करोड़ का इस्तेमाल करेगी. बड़े खिलाड़ियों के क़रीब पहुंचने के लिए, ओला को भारी निवेश की ज़रूरत पड़ेगी, जिसका मतलब है लगातार फ़ंड जुटाना.
8. मौज़ूदा बड़े खिलाड़ियों से ख़तरा
इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर मार्केट में एंट्री करने वाले दूसरे खिलाड़ियों या कार मैन्युफैक्चरर का मार्केट शेयर FY22 में 93 फ़ीसदी से घटकर FY24 में 67 फ़ीसदी हो गया है. तो, इनका मार्केट शेयर कौन खा गया? ज़वाब है-- टू-व्हीलर मार्केट के मौज़ूदा बड़े खिलाड़ी. और ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि इन कंपनियों के पास पहले से बड़े या ज़्यादा रिसोर्स थे. ओला का ₹5,500 करोड़ का 'नया इश्यू' हीरो मोटो और बजाज ऑटो जैसी कंपनियों के फ़्री कैश फ़्लो के लगभग बराबर है. ये कंपनियां, ओला की तुलना में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर सेगमेंट में अपने घाटे को ज़्यादा किसी परेशानी के बिना सह सकती हैं -- बिना इस बात की चिंता किए कि उनके पास कैश ख़त्म हो जाएगा. इन कंपनियों की ये ताक़त आगे चलकर ओला की मार्केट लीडरशिप को चुनौती देगी.
संक्षेप में, ओला इलेक्ट्रिक न्यू-ऐज़ की एक कैश-बर्निंग कंपनी है जिसका बिज़नस मॉडल फ़ायदेमंद और मैच्योर होना अभी बाक़ी है. IPO को लेकर निवेशक ज़ोरदार उत्साह दिखा सकते हैं, लेकिन इसकी लॉन्ग-टर्म ग्रोथ की संभावनाएं काफ़ी धुंधली हैं. अगर आप एक निवेशक के रूप में EV की सवारी करना चाहते हैं, तो मार्केट में दूसरे समझदारी भरे विकल्प भी मौज़ूद हैं.
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