फ़र्स्ट पेज

PMS का रिप्लेसमेंट आ गया?

बड़े पूंजी निवेश वाले पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट के नए प्रोडक्ट पर SEBI का प्रस्ताव दिलचस्प है

PMS का रिप्लेसमेंट आ गया?Anand Kumar

back back back
6:42

म्यूचुअल फ़ंड में दिलचस्पी रखने वाले ज़्यादातर लोगों ने अब तक सुन ही लिया होगा कि मार्केट रेग्युलेटर SEBI ने एक नया इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट शुरू करने की बात कही है. SEBI का दस्तावेज़ एक परामर्श पत्र है जिसमें सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया है और इस प्रोडक्ट को पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट सर्विस (PMS) और म्यूचुअल फ़ंड के बीच एक बीच के प्रोडक्ट के तौर पर पेश करता है. इसे लेकर सेबी ने कहा है "... पोर्टफ़ोलियो बनाने में लचीलेपन के मामले में म्यूचुअल फ़ंड और PMS के बीच एक नई एसेट क्लास का मौक़ा है." SEBI के इस पेपर में नए प्रोडक्ट का कोई नाम नहीं दिया गया है और असल में, लोगों से नाम सुझाने के लिए कहा गया है.

मेरा सुझाव है कि इसे PMS कहा जाना चाहिए, और जो प्रोडक्ट अभी PMS होने का दावा करता है उसे बंद कर दिया जाना चाहिए. ये एक मज़ाक लगेगा, लेकिन मैं इसे लेकर थोड़ा गंभीर हूं. क्योंकि ये नया प्रोडक्ट म्यूचुअल फ़ंड और PMS के बीच का माना जाता है, इसलिए इसकी तुलना उन दोनों के साथ करके समझने की कोशिश की जानी चाहिए. अगर आप इसकी तुलना मौजूदा म्यूचुअल फ़ंड से करते हैं, तो मूल रूप से ये एक जैसे लगेंगे, अगर कुछ हद तक एडजस्ट किया जाए. हालांकि, अगर आप इसकी तुलना PMS से करेंगे, तो ये एक बहुत बड़ा सुधार लगेगा. ये नया प्रोडक्ट, PMS के दो बड़े नकारात्मक पहलुओं को ख़त्म कर देता है: पहला, टैक्स के लिहाज़ से उसकी अक्षमता और दूसरा, पारदर्शिता की कमी.

सबसे पहले, टैक्स पर नज़र डालते हैं. PMS में, इन्वेस्टर की बुक में शेयर ट्रेड किए जाते हैं. हरेक ट्रेड, इन्वेस्टर के लिए एक अलग कैपिटल गेन या नुक़सान के तौर पर माना जाता है, जिसकी वजह से कैलकुलेशन मुश्किल होते हैं और टैक्स ज़्यादा लगता है. समय के साथ, टैक्स का लगातार होने वाला ख़र्च निवेशकों के मुनाफ़े को काफ़ी कम कर देता है. ये नया प्रोडक्ट, जो म्यूचुअल फ़ंड की तरह ही बना है, टैक्स के मामले में म्यूचुअल फ़ंड जैसी सहूलियत देता है, जिसमें मुनाफ़े और नुक़सान को फ़ंड के भीतर ही एडजस्ट किया जाता है और केवल तभी टैक्स अदा करना होता है जब निवेशक अपनी यूनिट्स को भुनाता है.

जहां तक ​​पारदर्शिता का सवाल है, PMS में डिस्क्लोज़र और पारदर्शिता की कमी को लेकर लंबे समय से आलोचना की जाती रही है. सेबी के प्रस्ताव के अनुसार, इस नए प्रोडक्ट के लिए हर महीने पोर्टफ़ोलियो के डिस्क्लोज़र और मूलभूत दस्तावेजों को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने की ज़रूरत होगी, बिल्कुल म्यूचुअल फ़ंड की तरह. इतना ही नहीं, चूंकि ये एक पूल्ड यानी बहुत से निवेशकों का मिलाजुला फ़ंड है, इसलिए स्टैंडर्ड NAV भी उपलब्ध होंगे, जिससे रिटर्न को कैलकुलेट हो सकेगा, और आपस में तुलना के साथ-साथ बेंचमार्किंग भी कैलकुलेट की जा सकेगी. PMS के साथ ये सब संभव नहीं है. पारदर्शिता का ये स्तर पारंपरिक PMS की तुलना में काफ़ी बेहतर होगा, जिससे निवेशक ज़्यादा समझ-बूझ के साथ फ़ैसले कर सकेंगे.

ये भी पढ़िए- PMS के साथ किस तरह के जो‍खिम जुड़े हैं ?

इसके अलावा, जहां ₹10 लाख का प्रस्तावित न्यूनतम निवेश, ज़्यादातर म्यूचुअल फ़ंड्स से ज़्यादा है, वहीं PMS के लिए ज़रूरी ₹50 लाख से काफ़ी कम है. ये संभावित रूप से नई निवेश रणनीतियों और बहुत से नए निवेशकों के लिए रिस्क-रिटर्न के पैमाने पर दरवाज़े खोल सकता है, बेशक़, उम्मीद तो इसी बात की है.

नई प्रस्तावित एसेट क्लास, पोर्टफ़ोलियो बनाने को लेकर में कई तरह की छूट देती है. इनमें डेट सिक्योरिटीज़ के लिए एक ही जारीकर्ता की बढ़ी हुई सीमा (एसेट का 20%, 10% से ज़्यादा) होगी, अलग-अलग क्रेडिट रेटिंग के लिए क्रेडिट रिस्क-आधारित एक ही जारीकर्ता की सीमा ज़्यादा होगी, और वोटिंग अधिकार के साथ प्रदत्त-पूंजी यानी पेड-अप कैपिटल के स्वामित्व की बढ़ी हुई सीमा (15%, 10% से ज़्यादा) भी शामिल है. ये नई क्लास, किसी भी कंपनी की इक्विटी में ज़्यादा निवेश की इजाज़त देती है (15%, 10% से ज़्यादा) और REITs और InvITs में निवेश की सीमा को दोगुना कर देती है. इसमें डेट सिक्योरिटीज़ के लिए सेक्टर स्तर की सीमा 20% से बढ़ाकर 25% कर दी गई है. सबसे बड़ी बात है कि जहां म्यूचुअल फ़ंड्स को केवल हेजिंग और पोर्टफ़ोलियो रीबैलेंसिंग के लिए डेरिवेटिव का इस्तेमाल करने की अनुमति है, इस नए प्रोडक्ट को मार्केट रिस्क लेने के लिए भी डेरिवेटिव का इस्तेमाल करने की इजाज़त है. इन सभी राहतों का मक़सद पोर्टफ़ोलियो बनाने में ज़्यादा लचीलापन लाना और बढ़े हुए रिस्क के साथ ज़्यादा रिटर्न की उम्मीद करना है.

क्या ये काम करेगा? क्या ये प्रोडक्ट असल में ज़्यादा रिटर्न देंगे? इसका निश्चित उत्तर पाने में कई साल लगेंगे, लेकिन निवेशकों के लिए ये सही ही होना चाहिए. रिटर्न और प्रदर्शन की पारदर्शिता किसी भी इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट का आधार होनी चाहिए.

दिलचस्प बात है कि सेबी का ये पेपर, फ़ीस और ख़र्चों को लेकर ख़ामोश है. इडस्ट्री में उम्मीद करेगी कि फ़ीस सामान्य फ़ंड्स से ज़्यादा होगी. हालांकि, प्रस्ताव केवल अपने मूल ढ़ाचे में ही एक आम म्यूचुअल फ़ंड से अलग है, इसलिए मैं कहूंगा कि इसका कोई ज़िक्र न होने का मतलब है कि इस सिलसिले में अलग से कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया है, लेकिन ये बाद में पक्का होगा.

बेशक़, PMS वाले विरोध में चल्लाएंगे कि उनकी सर्विस बेहतर है, लेकिन एक कहावत है, 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?' मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर PMS वाक़ई दूसरी एसेट क्लास से बेहतर होते, तो ये लोग प्रमाणित करने लायक़ डेटा पेश करने का कोई न कोई तरीक़ा ढूंढ़ ही लेते. सच तो ये है कि वे ऐसा नहीं करते, जिसे इस बात का सबूत माना जा सकता है कि उनकी सर्विस घटिया है.

सभी बातों पर सोचने-विचारने के बाद, लगता है कि अगर इसे निवेशकों को PMS से दूर करने और उन्हें बेहतर प्रोडक्ट की ओर ले जाने के क़दम के तौर पर देखा जाए, तो ये एक अच्छा प्रस्ताव है.

ये भी पढ़िए- SIP: 10 साल में ₹2 करोड़ कैसे जोड़ें?


टॉप पिक

वैल्यू रिसर्च एक्सक्लूसिव: मल्टी-कैप फ़ंड्स पर हमारी पहली रेटिंग जारी!

पढ़ने का समय 4 मिनटआशीष मेनन

चार्ली मंगर की असली पूंजी

पढ़ने का समय 5 मिनटधीरेंद्र कुमार

मिड और स्मॉल-कैप एक्टिव फ़ंड चमके हैं इस गिरावट में

पढ़ने का समय 3 मिनटआशीष मेनन

ये सब नज़रअंदाज़ करें

पढ़ने का समय 4 मिनटधीरेंद्र कुमार

लंबे समय के निवेश के लिए म्यूचुअल फ़ंड कैसे चुनें?

पढ़ने का समय 2 मिनटरिसर्च डेस्क

म्यूचुअल फंड पॉडकास्ट

updateनए एपिसोड हर शुक्रवार

Invest in NPS

AI तो है, पर AI नहीं

ऑटोमेटेड, मशीन से मिलने वाली फ़ाइनेंस पर सलाह कैसी होनी चाहिए.

दूसरी कैटेगरी