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Havells Share Price: हैवेल्स इंडिया आज इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंस मार्केट में एक दिग्गज कंपनी है. लेकिन कंपनी की शुरुआत अलग थी और इसका सफ़र हार के बहुत क़रीब पहुंच गया था. संकट के कगार पर, कंपनी के आर्किटेक्ट कीमत राय गुप्ता (Qimat Rai Gupta) ने उस समय अपने सबसे बड़े बिज़नस को बंद करने का एक जोख़िम भरा जुआ खेला. उनके बेटे और कंपनी के वर्तमान मैनेजिंग डायरेक्टर, अनिल राय गुप्ता (anil rai gupta) ने अपनी क़िताब "हैवेल्स: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ कीमत राय गुप्ता" में इस साहसिक छलांग के बारे में लिखा है. क़िताब के आधार पर, उन वजहों पर एक नज़र डालते हैं जनके कारण कंपनी ने ये क़दम उठाया और अपनी दिशा बदल दी.
हैवेल्स की शुरुआत
90 के दशक के आखिर में, हैवेल्स इंडिया इलेक्ट्रिक मीटर के क़ारोबार का एक पावरहाउस था, जो कंपनी के सालाना क़ारोबार का 60 फ़ीसदी से ज़्यादा था. कंपनी भारत के तेज़ी से बढ़ते बिजली सेक्टर के सुधारों पर फली-फूली, जिसने बिजली प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन जैसी आकर्षक परियोजनाओं में निवेश करने के लिए उत्सुक कई बड़ी कंपनियों को आकर्षित किया. हैवेल्स इस मौक़े के लिए बिल्कुल सही स्थिति में थी. नतीजा, इसकी मीटर डिवीज़न ₹60 करोड़ के वेंचर से बढ़कर सिर्फ़ चार साल में ₹300 करोड़ का रेवेन्यू पैदा करने लगा!
हैवेल्स के सामने जब कई रास्ते थे
लेकिन ये शानदार समय टिकने वाला नहीं था. और हैवेल्स के नेतृत्व, ख़ासतौर से कीमत राय गुप्ता, जिन्हें प्यार से QRG कहा जाता है, उन्होंने ख़तरों को भांप लिया. संकट का पहला संकेत मीटर टैक्नोलॉजी में बदलाव था. अनिल राय ने क़िताब में लिखा है, "2000 तक, ये साफ़ हो गया था कि टैक्नोलॉजी में बदलाव हुआ है. विश्व बैंक, साथ ही दूसरे फ़ंडर और राज्य बिजली बोर्डों ने मौजूदा इलेक्ट्रोमैकेनिकल मीटरों को इलेक्ट्रॉनिक मीटरों से बदलने का फ़ैसला किया."
इस बदलाव ने मीटरों का प्रोडक्शन आसान और सस्ता बना दिया, जिससे बाज़ार में नई कंपनियों की बाढ़ आ गई और क़ीमतें गिर गईं. बिगड़ते क़ारोबारी मानदंडों के साथ, हैवेल्स के लिए लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखना एक बड़ी चिंता बन गई. "नब्बे के दशक के आख़िर में, रिश्वत और कमीशन की पूरी संस्कृति बड़े पैमाने पर सामने आई. हम इन सबसे साफ़ तौर पर असहज थे." पावर ब्रोकरों ने ऑर्डर देने के लिए ख़ुलेआम 5 फ़ीसदी कमीशन की मांग की, साथ ही विश्व बैंक की फ़ंडिंग बढ़ने के साथ चुनौतियां और बढ़ गईं.
बिज़नस में उछाल ने कई नए खिलाड़ियों को आकर्षित किया, जिनमें से ज़्यादातर छोटे-छोटे खिलाड़ी थे जो बाज़ार में हिस्सेदारी हासिल करने के लिए किसी भी क़ीमत पर बेचने को तैयार थे. क़ीमतें गिर गईं और इंडस्ट्री के मार्जिन बहुत कम हो गए, और कभी-कभी तो पूरी तरह से गायब भी हो गए.
हैवेल्स एक मोड़ पर था. उसे ये तय करना था कि बिना किसी गारंटी वाले रिटर्न के साथ बने रहना है या सबसे ज़्यादा मुनाफ़े वाले, लेकिन लगातार अव्यवहारिक होते जा रहे बिज़नस को छोड़ देना है. QRG ने वेंचर को बंद करने और रेवेन्यू के लिए कोई दूसरा बेहतर रास्ता तलाशने पर ध्यान देने का फ़ैसला किया.
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हैवेल्स का बड़ा बदलाव
साल 2003 में, QRG ने मीटर बिज़नस पर पर्दा गिराने का एलान कर दिया. अपने पिता के फ़ैसले को याद करते हुए, अनिल राय लिखते हैं, "उनका तर्क था कि नए बिज़नस की गतिशीलता समूह के DNA के साथ मेल नहीं खाती थी. हमारे पास भ्रष्ट बाजार में क़ामयाब होने के लिए कौशल नहीं था. उनका मानना था कि मीटर में जारी रखने के बजाय दूसरे बिज़नसों को विकसित करने के लिए पैसा ख़र्च करना बेहतर था. यह एक बहुत बड़ा फ़ैसला था - हमें अपने सबसे सफल वेंचर को छोड़ना पड़ा."
कंपनी ने नए ऑर्डर लेना बंद कर दिया, बैंक गारंटी का सम्मान करने और एक विश्वसनीय विक्रेता के तौर पर अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए सिर्फ़ मौजूदा ऑर्डर पूरे किए. 2006-07 तक, मीटर बिज़नस इतिहास बन चुका था. जबकि ऐसे फ़ैसलों में अक्सर मानवीय लागत की अनदेखी शामिल होती है, हैवेल्स अलग था. कर्मचारियों पर संभावित प्रभाव के बारे में जानते हुए, QRG ने एक रीस्किलिंग यानी नया काम सिखाने का प्रोग्राम शुरू किया, जिसमें कई तकनीशियन और कर्मचारी उसी साइट पर अपने नए स्विचगियर कारखाने में चले गए. अनिल राय कहते हैं, "मानव लागत को क़रीब-क़रीब शून्य तक कम रखा गया था."
क़दम पीछे खींचने के इस रणनीतिक फ़ैसले ने हैवेल्स को ऐसे बिज़नस के लिए अपने संसाधनो को लगाने की क्षमता दी जिनमें बेहतर मौक़े थे, जिससे ये भारत की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिकल कंपोनेंट बनाने वाली कंपनियों में से एक बन गई. मीटर बिज़नस में मुनाफ़ा होने के बावजूद इससे बाहर निकलना, लंबे समय के दौरान स्थिरता के लिए कंपनी की प्रतिबद्धता को दिखाता है.
निवेशकों के लिए सबक़
हैवेल्स इंडिया का सफ़र निवेशकों के लिए एक ख़ास सबक़ है, जो अक्सर उनकी प्राथमिकता की लिस्ट में बहुत बाद में आता है. वो ये है कि किसी कंपनी का मैनेजमेंट उसकी जीवनरेखा है. बिज़नस चलाने के लिए ज़िम्मेदार लोगों का आकलन करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उसके वित्तीय पहलुओं की जांच करना. एक मज़बूत नेतृत्व बिज़नस के बदलते परिदृश्य को पहचानता है, वो जानता है कि कब बदलाव करना है और नए अवसरों का पीछा करना है. एक मज़बूत मैनेजमेंट, मज़बूत बिज़नस ग्रोथ में तब्दील होता है इसकी एक मिसाल हैवेल्स इंडिया है जिसने पिछले दशक में 23 फ़ीसदी सालाना रिटर्न दिया है.
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