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क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसी कंपनियां भी हैं जिनका अपना कोई बिज़नस नहीं है? जी हां, आपने सही सुना. ये ऐसी कंपनियां हैं जो कोई सामान या सेवाएं नहीं देती हैं या उनका अपना कोई ऑपरेशन नहीं है. मगर वे पैसे कैसे कमाती हैं? वे अस्तित्व में क्यों हैं? उनके नाम से ही ये स्पष्ट हो जाता है. असल में वे होल्डिंग कंपनियां होती हैं, जिसका मतलब है कि वे अन्य कंपनियों और एसेट्स में हिस्सेदारी रखने या निवेश करने के लिए बनी हैं.
पैसे का क्या यानी कमाई कैसे होती है? वे मुख्य रूप से डिविडेंड और निवेश पर ब्याज़ से आय अर्जित करती हैं. टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन, बजाज होल्डिंग्स, JSW होल्डिंग्स , महाराष्ट्र स्कूटर और कामा होल्डिंग्स कुछ सार्वजनिक रूप से लिस्टिड होल्डिंग कंपनियां हैं जिनका अपना कोई ऑपरेशन नहीं है. उनका एकमात्र बिज़नस कहीं और हिस्सेदारी और निवेश रखना है.
तो, आपके सामने एक ऐसा बिज़नस है जिसका कोई ऑपरेशन नहीं है, अपनी कोई आमदनी नहीं है, और कोई भविष्य को लेकर कोई आउटलुक नहीं है. तो, किसी को उनमें निवेश क्यों करना चाहिए? इसका जवाब उनके वैल्यूएशन में छिपा हुआ है. होल्डिंग कंपनियां एक बेजोड़ वैल्यू की पेश करती है, जिसकी तरफ़ वैल्यू की खोज में रहने वाले आकर्षित होते हैं.
वैल्यू इन्वेस्टरों की पसंदीदा हैं होल्डिंग कंपनियां
होल्डिंग कंपनियां आमतौर पर अपने पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू की तुलना में भारी डिस्काउंट पर ट्रेड होती हैं. सीधे शब्दों में कहें, तो वे अपने निवेश के कुल मार्केट वैल्यू (पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू) से कम क़ीमत पर ट्रेड होती हैं. उदाहरण के लिए, कामा होल्डिंग्स के पास दिग्गज केमिकल कंपनी SRF में 50.3 फ़ीसदी की हिस्सेदारी है, जिसका मार्केट कैप ₹66,000 करोड़ (30 मई, 2024 तक) है. कामा होल्डिंग्स ₹7,900 करोड़ के मार्केट कैप पर ट्रेड होती है, जो इसके निवेश मूल्य से 76 फ़ीसदी से ज़्यादा कम है, जिसमें SRF और इसके अन्य ग़ैर लिस्टिड निवेश दोनों शामिल हैं.
लेकिन, इससे पहले कि आप में मौजूद वैल्यू इन्वेस्टर निवेश करने के लिए दौड़े, जान लें कि इस डिस्काउंट की क्या वजह हैं.
होल्डिंग कंपनियां पर क्यों भारी डिस्काउंट है?
- कम लिक्विडिटी: होल्डिंग कंपनियां आमतौर पर दूसरी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी रखती हैं, जिन्हें क़ीमत में गिरावट के बिना आसानी से बेचा नहीं जा सकता. उदाहरण के लिए, ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (BAT) ने कुछ महीने पहले ITC में अपनी 3-4 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने का फ़ैसला किया. जब तक इसने हिस्सेदारी बेची, तब तक बाज़ार में ज़्यादा सप्लाई के डर से ITC के शेयर में भारी गिरावट आ चुकी थी.
- टैक्स संबंधी मामला: जब कोई होल्डिंग कंपनी अपने निवेश बेचती है, तो उसे 10 फ़ीसदी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना पड़ता है, जिससे उसकी कुल प्राप्तियां (net proceeds) कम हो जाती हैं. इसके अलावा, चूंकि एक होल्डिंग कंपनी और उसकी सहायक कंपनी अलग-अलग क़ानूनी एंटिटी हैं, इसलिए कड़े नियम अक्सर होल्डिंग कंपनी को सहायक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचने या अपनी एसेट ट्रांसफ़र करने से रोकते हैं.
- सहायक कंपनियों में कोई ओनरशिप नहीं: किसी कंपनी में शेयर ख़रीदने का मुख्य कारण उसका आंशिक मालिक बनना होता है. हालांकि, होल्डिंग कंपनी में निवेशकों का डायरेक्ट ओनरशिप के बजाय उसकी सहायक कंपनियों में इन-डायरेक्ट हित होता है.
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तो, क्या आप इन भारी डिस्काउंट के साथ आने वाले जोख़िम को उठाने के लिए तैयार हैं? अगर हां, तो अगला क़दम ये पक्का करना है कि आप सही वैल्यूएशन पर निवेश करें.
होल्डिंग कंपनी की वैल्यू कैसे तय करें
चूंकि होल्डिंग कंपनियां दूसरे बिज़नसज से पैसा कमाती हैं, इसलिए उनकी वास्तविक क़ीमत का आकलन उनकी इनकम से नहीं किया जा सकता है. इसलिए, उनकी वैल्यूएशन उनके निवेश और अन्य रियल एस्टेट जैसे एसेट्स, शेयर आदि के वैल्यूएशन से निर्धारित होता है.
ये कैसे किया जा सकता है? उनकी एनुअल रिपोर्ट का अध्ययन करके. होल्डिंग कंपनियों के पास ऐसे निवेश होते हैं, जो सार्वजनिक रूप से ट्रेड होते हैं और इसलिए उनका वैल्यूएशन आसानी से किया जा सकता है, और गैर-लिस्टिड कंपनी में रखे गए शेयरों जैसे अनकोटेड या छिपे हुए निवेश होते हैं. चूंकि उनकी सालाना रिपोर्ट में सभी निवेशों यहां तक कि छिपे हुए निवेशों का भी विवरण होता है, इसलिए उनका वैल्यूएशन करना संभव हो जाता है. आपको बस इन निवेशों का मूल्य जोड़ना है.
अब निवेशकों की बात
संक्षेप में कहें तो होल्डिंग कंपनियां निवेशकों को एक अनूठी वैल्यू देती हैं. हालांकि, होल्डिंग कंपनियों से जुड़ी कुछ अंतर्निहित लिक्विडिटी और रेग्युलेटरी (विनियामकीय) जोख़िम होते हैं. साथ ही, ये भी ध्यान रखना चाहिए कि उनमें निवेश करना एक वैल्यू का मसला है, इसलिए होल्डिंग कंपनी का सही वैल्यूएशन करना अहम हो जाता है.
इनके अलावा, होल्डिंग कंपनियों में निवेश करने से पहले आपको कुछ दूसरी बातों पर भी ध्यान देना चाहिए:
- जब पोर्टफ़ोलियो की वैल्यू पर डिस्काउंट ज़्यादा हो, तब निवेश करें. डिस्काउंट ऐतिहासिक औसत पर वापस आ जाता है, जिससे पर्याप्त रिटर्न की संभावना होती है.
- पता करें कि क्या होल्डिंग कंपनी का पोर्टफ़ोलियो केंद्रित (कन्संट्रेटेड) है. एक केंद्रित (थोड़े से निवेशों में ज़्यादा पूंजी होना) पोर्टफ़ोलियो ज़्यादा अस्थिर हो सकता है, क्योंकि इसका प्रदर्शन कुछ कंपनियों से जुड़ा होता है.
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