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आपने ऐसी कंपनियां देखी होंगी जिनकी ग्रोथ रेट एक या दो साल में 10, 20 या 50 फ़ीसदी तक पहुंच जाती है. लेकिन आपको कितनी बार ऐसी कंपनी देखने को मिलती हैं जो 10 गुना बढ़ जाती है? ये कोई आम बात नहीं, लेकिन स्वान एनर्जी ने ऐसा कर दिखाया है.
इस कंपनी, जिसकी कपड़ा, रियल एस्टेट और तेल और गैस सेक्टरों में मौजूदगी है, ने FY22 और दिसंबर 2023 को ख़त्म होने वाले 12 महीनों के बीच 10 गुना रेवेन्यू में दर्ज किया. पिछले चार साल में लगातार घाटे के बाद इसने पिछले 12 महीनों (दिसंबर 2023 को ख़त्म) में नेट प्रॉफ़िट भी बनाया. ये नाटकीय बदलाव इसके शेयर प्राइज़ परफ़ॉर्मेंस में ज़ाहिर होता है, जो पिछले एक साल में क़रीब तीन गुना बढ़ गया.
कंपनी की क़िस्मत में बदलाव की वजह क्या थी, आइए जानते हैं...
बदलाव के पीछे की ताक़त
#1 वेरिटास फ़ैक्टरः स्वान एनर्जी के पंखों के नीचे हवा FY23 में वेरिटास इंडिया , एक रसायन, कागज़, पॉलिमर और रबर डिस्ट्रीब्यबटर, के अधिग्रहण से आई. इसने तेल और गैस सेक्टर में विस्तार करने के लिए अपने डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए ₹172 करोड़ में वेरिटास में 55 फ़ीसदी हिस्सेदारी हासिल की. वेरिटास का ऐतिहासिक परफ़ॉर्मेंस इस बात को हाइलाइट करता है कि स्वान एनर्जी ने इसमें निवेश करने का फ़ैसला क्यों किया. कंपनी ने पिछले 14 सालों में अपने नेट प्रॉफ़िट को 15 गुना से ज़्यादा बढ़ाने में क़ामयाबी हासिल की है, जबकि इस अवधि के ज़्यादातर वक़्त में इसका प्राइज़-टू-बुक रेशियो एक से नीचे रहा है. पिछले 12 महीनों में स्वान एनर्जी का ज़्यादातर रेवेन्यू वेरिटास से आया है. बाज़ार को उम्मीद है कि यह आशाजनक अधिग्रहण आने वाले सालों में स्वान एनर्जी की इनकम को बढ़ावा देगा.
एकदम सस्ता सौदा
क्षमता के मामले में रिलायंस नेवल अपने प्रतिद्वंद्वियों से काफ़ी आगे
रिलायंस नेवल | कोचीन शिपयार्ड | गार्डन रीच शिपबिल्डर्स | मझगांव डॉक | |
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डेड वेट टन क्षमता (टन में) | 4,00,000 | 1,25,000 | 26,000 | 30,000 |
संयंत्र और उपकरण (करोड़ ₹ में) | 1,999 | 2,545 | 537 | 839 |
बाजार पूंजी (करोड़ ₹ में) | 2,044* | 35,916 | 11,815 | 52,200 |
*रिलायंस नेवल को ख़रीदने के लिए हेज़न इन्फ़्रा (स्वान एनर्जी और हेज़ल मर्केंटाइल के बीच JV) द्वारा चुकाई गई क़ीमत. वर्किंग कैपिटल में संयंत्र एवं उपकरण शामिल हैं, जिन पर काम जारी है |
#2 रक्षा क्षेत्र में उछालः स्वान एनर्जी के रक्षा और जहाज़ निर्माण इंडस्ट्री में हाल ही में एंट्री ने स्टॉक की मजबूती में इज़ाफ़ा किया है. इसने हाल ही में भारत की सबसे बड़ी जहाज़ निर्माण डॉक, दिवालिया रिलायंस नेवल को 2,000 करोड़ रुपये में ख़रीदने की बोली जीती है, जिसका मक़सद रक्षा सेक्टर में सरकार के ख़र्च में इज़ाफ़ा करना है.
#3 क्षमता विस्तारः स्वान एनर्जी की विस्तार प्लान ने भी बाज़ार का समर्थन हासिल किया है. यह LNG ग्रीन टर्मिनल का निर्माण करके तेल और गैस सेक्टर में अपनी हालत मज़बूत करने की योजना बना रहा है. इस टर्मिनल की री-गैसिफ़िकेशन क्षमता 5 MMTPA (मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष) होने की उम्मीद है. ये LNG की प्राप्ति, भंडारण, री-गैसिफ़िकेशन और भेजने के लिए FSRU (फ़्लोटिंग स्टोरेज री-गैसिफ़िकेशन यूनिट) का इस्तमाल करेगा.
इन पॉज़िटिव पहलुओं के बावजूद, इस बात पर शक है कि क्या स्वान एनर्जी इस गति को बनाए रख पाएगी, ख़ासकर तब जब वेरिटास के हालिया वित्तीय आंकड़े साफ़ तौर से ख़तरे की घंटी बजा रहे हैं.
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वेरिटास के अकाउंट्स में ख़तरे की घंटी
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इसके अकाउंट्स में गड़बड़ के संकेत मिल रहे हैं. कंपनी के प्रिंसिपल ऑडिटर ने FY23 के रेवेन्यू का क़रीब 80 फ़ीसदी ऑडिट नहीं किया.
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हाई ट्रेड रिसिवेबलः
FY23 में इसकी नेट ट्रेड रिसीवेबल राशि ₹803 करोड़ थी, जो पिछले 15 सालों (FY08-23) के दौरान इसके कम्यूलेटिव प्रॉफ़िट के बराबर है.
- कैश बनाने में कमीः 15 सालों में ₹800 करोड़ का नेट प्रॉफ़िट के बावजूद, इसने पिछले दशक में सिर्फ़ ₹35 करोड़ का नेट कैश पैदा किया है. हक़ीक़त में, अगर व्यापार देय राशि (trade payables) न होती, तो इसका कैश-फ़्लो नेगेटिव होता, जो ज़्यादातर संबंधित पक्षों के लिए देय है. मिसाल के लिए, FY19 में इसके क़रीब 50 फ़ीसदी भुगतान संबंधित पार्टी, हेज़ल मर्केंटाइल के थे. इसका कम डेविडेंट भुगतान ख़राब कैश-फ़्लो की हालत को और पुख़्ता करता है. पिछले 10 साल में, इसने ₹753 करोड़ (FY14-23) के संचित नेट प्रॉफ़िट पर सिर्फ़ ₹1.3 करोड़ का डेविडेंड दिया है.
हमारी राय
स्वान एनर्जी ने वेरिटास की मदद से घाटे में चल रही मंदी से ख़ुद को बाहर निकाला. हालांकि, घटते आधार प्रभाव और वेरिटास की वित्तीय परेशानियों के बीच कंपनी के लिए पिछले साल की कई गुना वृद्धि को दोहराना मुश्किल होगा. इसके अलावा, स्वान एनर्जी के कई अधिग्रहणों की वजह से सितंबर 2023 तक ₹5,148 करोड़ का क़र्ज़ बढ़ गया है, जो FY20 में ₹1,175 करोड़ था. हालांकि, इसने इस साल फ़रवरी में QIP के ज़रिए ₹3,000 करोड़ जुटाकर क़र्ज़ का बोझ कम किया.
एक तनावग्रस्त बैलेंस शीट के अलावा, दूसरे रिस्क फ़ैक्टर्स भी हैं. नए उद्यम वाले जहाज़ निर्माण सेक्टर में इसकी क़ामयाबी सरकारी ख़र्च पर निर्भर है, क्योंकि ये इंडस्ट्री बहुत ज़्यादा साइक्लिकल है. LNG टर्मिनल जिसका लंबे समय से इंतज़ार है, 2016 से ही निर्माणाधीन है और चक्रवातों की वजह से इसमें कई बार देरी हुई है, जिससे इसके पूरा होने की अनिश्चितता उजागर होती है. आख़िर में, स्टॉक का 69 गुना का हाई P/E मल्टिपल भी इसके खिलाफ़ काम करता है.
ध्यान दें कि यह कोई स्टॉक रेकमंडेशन नहीं है. निवेशकों को निवेश का फ़ैसला लेने से पहले पूरी तरह से जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए.
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