इंटरव्यू

₹37,000 करोड़ संभालने वाली फ़ंड मैनेजर से निवेश की बारीक़ियों पर ख़ास बातचीत

फ़ंड मैनेजर से पहले एक कोडर रहीं चीनू गुप्ता ने उनके इंवेस्टमेंट स्टाइल और मार्केट की मौजूदा स्थिति पर बात

₹37,000 करोड़ संभालने वाली फ़ंड मैनेजर से निवेश की बारीक़ियों पर ख़ास बातचीत

फ़ाइनेंस में कम दिलचस्पी होना, एक कोडर के तौर पर काम करना, और इस समय फ़ंड मैनेजर के रूप में ₹37,000 करोड़ के एसेट्स संभालना-ये है चीनू गुप्ता के प्रोफ़ेशनल करियर की एक झलक.

गुप्ता इस समय HSBC म्यूचुअल फ़ंड में इक्विटी फ़ंड मैनेजमेंट की वाइस-प्रेसिडेंट हैं, और वो बेझिझक मानती हैं कि "कोडिंग मेरा जुनून था" लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हो गया कि टीम मैनेजर के तौर पर प्रमोट होने के बाद एक कोडर के रूप में उनकी भूमिका "अब नहीं क़ायम रहेगी" और वो लोगों को मैनेज करने के काम में उलझ जाएंगी.

करियर में आई इस नई दिशा से वे ख़ुश नहीं थीं, इसलिए उन्होंने MBA की पढ़ाई शुरू की. यहीं से निवेश को लेकर उनका जुनून शुरू हुआ. इसके तुरंत बाद, उन्होंने एक म्यूचुअल फ़ंड हाउस की एक प्रतियोगिता में भाग लिया, जो उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुई.

उनके साथ किए गए इंटरव्यू के अंश यहां दिए जा रहे हैं. इसमें आपको गुप्ता के करियर और उनके एक कोडर से फ़ंड मैनेजर बनने की कहानी के अलावा, उनके निवेश की फ़िलॉसफ़ी और HSBC फ़ंड हाउस के रडार पर रहने वाले सेक्टरों पर चर्चा की गई है.

IT में बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (BE) करने के बाद, आपको किस बात ने इक्विटी इंवेस्टमेंट की ओर आकर्षित किया?

ईमानदारी से कहूं तो अपने बैकग्राउंड को देखते हुए, मुझे फ़ाइनेंस में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. मैं ऐसे परिवार से आती हूं जहां सिर्फ़ फ़िक्स्ड डिपाज़िट (FD) और शायद कुछ यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी (ULIPs) में निवेश किया जाता था. फ़ाइनेंस की दुनिया से मेरा परिचय मेरे MBA प्रोग्राम के दौरान शुरू हुआ, और जब इक्विटी और शेयर मार्केट को लेकर मेरे अंदर और कॉलेज के दोस्तों के एक ग्रुप में दिलचस्पी जगी. असल में, मैंने अपने दूसरे साल की फ़ीस के लिए बैंक से लोन लिया और मेरी मां द्वारा मेरे MBA के लिए अलग रखे पैसों को मार्केट में निवेश करना शुरू कर दिया.

IT में इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद MBA करने की क्या वजह थी?

अपनी BE डिग्री पूरी करने के बाद, मैंने IT इंडस्ट्री में क़दम रखा और एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम किया. कोडिंग मेरा जुनून था, और इसके एनेलिटिकल पहलू, जैसे कि कोड की डिज़ाइनिंग और ऑपरेशन, ने मुझे आकर्षित किया. हालांकि, मैंने देखा कि मुझे अपने करियर में कुछ साल बाद टीम मैनेजर के रूप में प्रमोट किया जाएगा, और एक कोडर के रूप में मेरी भूमिका नहीं रहेगी. नतीजा, आपका एनेलिटिकल काम काफ़ी कम हो जाता है और आप लोगों को मैनेज करने पर ज़्यादा ध्यान देते हैं. उस समय मुझे एहसास हुआ कि ये वो नहीं है जो मैं करना चाहती थी और मैंने करियर के दूसरे रास्तों के बारे में सोचना शुरू कर दिया. मुझे भरोसा था कि MBA मेरे अंदर वो स्किल पैदा करेगा जो उन दूसरे रास्तों के लिए जरुरी हैं. और इस तरह मैं IT से फ़ाइनेंस की ओर गई.

म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री में आपका सफ़र कैसे शुरू हुआ, इस बारे में एक शानदार कहानी है. क्या आप इसे हमारे साथ साझा कर सकती हैं?

ये एक ऐसी कहानी है जिसने मुझे क़िस्मत पर भरोसा करना सिखाया. MBA पूरा करने के बाद, मैंने देश के टॉप प्राइवेट बैंकों में से एक में सफलतापूर्वक अपनी पसंदीदा पोज़िशन हासिल की. मैं बहुत खुश थी. ग्रेजुएशन सेरेमनी के बाद हम घर लौटने की तैयारी कर रहे थे, तभी हमें एक म्यूचुअल फंड हाउस द्वारा आयोजित कॉम्पीटीशन के बारे में पता चला. ईमानदारी से कहूं तो उस कॉम्पीटीशन की ₹1 लाख की पुरस्कार राशि ने हमें आकर्षित किया, क्योंकि ये छात्रों के लिए एक बड़ी राशि थी. मेरे दूसरे दोस्त और मैंने वहीं रहने और कॉम्पीटीशन में हिस्सा लेने का फ़ैसला किया, और हम जीत गए. UTI के उस वक़्त के चेयरमैन श्री यू.के. सिन्हा हमें पैसे देने के लिए मंच पर थे. हालांकि, दर्शकों ने उनसे पूछा, "आप छात्रों को और क्या दे रहे हैं?" उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा कि विजेताओं को UTI में नौकरी का प्रस्ताव दिया जाएगा. हम पूरी तरह से चौंक गए. मैंने अपनी बैंक प्लेसमेंट के बारे में एक प्रोफ़ेसर से बात की, जिन्होंने सलाह दी कि म्यूचुअल फ़ंड मेरे करियर के लिए एक बेहतरीन सेक्टर साबित होगा. इस तरह मैं म्यूचुअल फ़ंड इंडस्ट्री में आ गई.

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UTI म्यूचुअल फ़ंड में एक रिसर्च एनेलिस्ट के रूप में अपने शुरुआती दिनों और टाटा AIA लाइफ़ इंश्योरेंस और केनरा रोबेको म्यूचुअल फ़ंड में बाद के अनुभव के दौरान, आपने कौन से ज़रूरी सबक़ सीखे?
मैंने अपना करियर एक एनेलिस्ट के रूप में शुरू किया -- एक ऐसी भूमिका जिसमें मुझे कई सेक्टरों को कवर करना था और उन सेक्टरों के सभी शेयरों का एनालेसिस करना था. इस काम के दौरान, मुझे पता चला कि किसी एक इंडस्ट्री की सभी कंपनियों के लिए डिमांड-सप्लाई की स्थिति लगभग एक-जैसी है. भले ही मार्केट वेरिएबल्स एक-जैसे थे, पर कंपनियों का प्रदर्शन में काफ़ी अंतर था. इसने मुझे एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक़ दिया: एक्ज़िक्यूशन महत्वपूर्ण है, पर ये आसान नहीं है. कागज़ पर रणनीति तैयार करना, दूसरों से सलाह लेना और उन्हें बनाना काफ़ी आसान होता है, लेकिन इन रणनीतियों का असल एक्ज़िक्यूशन काफ़ी मुश्किल हो सकता है.

भारत में लगभग सभी मार्केट बहुत ज़्यादा कॉम्पिटिटिव हैं, और अगर आप इन सभी बाधाओं के बावज़ूद असल में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल होते हैं, तो ये चीज़ आपके लिए एक क़ीमती एसेट के रूप में काम करती है.

मैंने जो एक और सबक़ सीखा, वो है स्टॉक चुनने में वैल्यूएशन का महत्व. कंपनी के ऑपरेशन के बारे में शुरूआती जांच के बाद, अगला पड़ाव आमतौर पर वैल्यूएशन का होता है. एक एनेलिस्ट के रूप में, मैंने सीखा कि किसी अच्छी कंपनी को लेकर मौक़ा गंवाने की तुलना में वैल्यूएशन को लेकर ग़लती करना ज़्यादा बड़ी बात है. हम P/E रेशियो भी देखते हैं और बाक़ी कंपनियों से भी तुलना करते हैं. वैल्यूएशन सिर्फ़ एक पैरामीटर है. एक बेहतरीन कंपनी बनाने या एक बेहतरीन स्टॉक चुनने में कई दूसरी चीजें भी शामिल होती हैं. ये कुछ बड़े सबक हैं जो मैंने समय के साथ सीखे.

आप अपने इन्वेस्टमेंट स्टाइल का वर्णन कैसे करेंगी?

मेरा इन्वेस्टमेंट स्टाइल थोड़ी ज़्यादा ग्रोथ-ओरिएंटेड रही है. भारत जैसी बढ़ती अर्थव्यवस्था में 'ग्रोथ' के मायने कहीं ज़्यादा हैं.

मुझे ये जानने में भी दिलचस्पी रहती है कि कोई कंपनी या इंडस्ट्री अचानक कैसे अपना रास्ता बदल रही है. ये बदलाव इंडस्ट्री के डायनामिक्स से लेकर रेगुलेटरी बदलावों तक कुछ भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, भारत में 15 साल पहले गुड्स की विशेष कैटेगरी की डिमांड थी, लेकिन ये डिमांड आजकल प्रीमियमाइज़ेशन में तब्दील हो चुकी है. इसलिए, इंडस्ट्री के अंदर या किसी कंपनी में इन बदलते पैटर्न को देखकर मैं उत्साहित होती हूं. हममें से ज़्यादातर लोग उन कंपनियों में निवेश करने के बारे में सोचते हैं जिनका रिटर्न रेशियो अच्छा होता है और कैश फ़्लो भी अच्छा होता है. हालांकि, कई ऐसे विशेष सेक्टर या इंडस्ट्री भी मौज़ूद होते है जहां रिटर्न रेशियो तो कम होता हैं पर अब इसमें सुधार हो रहा होता है. मुझे ऐसी स्थितियां पसंद हैं.

L&T और HSBC म्यूचुअल फ़ंड के मर्जर के बाद आपके काम में क्या बदलाव आया है? अब आप क्या अलग करती हैं?

स्टॉक चुनने और कंपनियों की लिस्ट बनाने की प्रक्रिया वही है. हालांकि, HSBC ग्लोबल एसेट मैनेज करती हैं और एक मल्टीनेशनल कंपनी के रूप में कुछ विशेष प्रक्रियाओं का पालन करती है. उदाहरण के लिए, कंपनी हमसे हर महीने अपने प्रदर्शन के बारे में बताने के लिए कहती है. हमें इस बारे में एक छोटा पैराग्राफ़ लिखना होता है कि पोर्टफ़ोलियो का अच्छा या ख़राब प्रदर्शन किस वजह से है. इससे हमें ये सोचने में मदद मिलती है कि हमें पोर्टफ़ोलियो या रणनीति में क्या बदलाव करने चाहिए. इसके अलावा, उनके रिसोर्स काफ़ी बेहतर हैं, और L&T और HSBC के मर्जर के बाद ये रिसोर्स अब एक हो गए हैं.

पहले, L&T के पास 5 एनेलिस्ट थे और HSBC के पास 3, और आज हमारे पास 8 एनेलिस्ट की एक टीम है. हमारे पास किसी भी सवाल के लिए ग्लोबल एनेलिस्ट भी उपलब्ध हैं. अगर कोई भारतीय कंपनी चीन में किसी प्रोजेक्ट पर काम करती है और हम इस बारे में गहराई से जाना चाहते हैं, तो हम चीन में अपने HSBC एनेलिस्ट से संपर्क कर सकते हैं. इसलिए, चाहे चीन हो या कोई दूसरा देश, मुझे लगता है कि अब जानकारी हासिल करना हमारे लिए बहुत ज़्यादा आसान है.

कौन से मानदंड किसी स्टॉक को आपके लिए 'मस्ट-बाय'' बनाते हैं?

हम अक्सर ये मानते हैं कि किसी विशेष कंपनी को ब्रॉड इंडस्ट्री डायनामिक्स के अनुरूप प्रदर्शन करना चाहिए. हालांकि, कुछ कंपनियां संबंधित इंडस्ट्री या अपने साथियों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं. ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ़ एक या दो तिमाहियों में बेहतर प्रदर्शन करती हैं, बल्कि उनके संबंधित बिज़नस में कुछ अलग होता है जो उन्हें रिटर्न और स्थिरता के मामले में बढ़त देता है. इसकी वजह उन कंपनियों की बेहतरीन डिस्ट्रीब्यूशन क्षमता, संजीदा हालातों में चुस्त और दुरुस्त मैनेजमेंट, या उनके प्रोडक्ट की ज़्यादा डिमांड हो सकती हैं. ये फ़ैक्टर इन कंपनियों को अपने साथियों से बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करते हैं, और मेरी राय में ये हमें भी आकर्षित करते हैं.

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HSBC मिडकैप और स्मॉल कैप फ़ंड्स का इंडस्ट्रियल सेक्टर में बड़ा निवेश है. इस कंसंट्रेशन की रणनीतिक वजह क्या है?
पिछले सात से आठ साल से इंडस्ट्रियल सेक्टर कम ग्रोथ है. हमने इस इंडस्ट्री में निवेश में बड़ी गिरावट देखी है. अब भी, capex सिर्फ़ केंद्र या राज्य सरकारों की ओर से आता है. हालांकि, मेरा मानना ​​है कि ये सेक्टर एक बड़े बदलाव से गुज़र रहा है, और ये बदलाव धीरे-धीरे आ रहे हैं. हमारा मानना ​​है कि सरकारी ख़र्च के अलावा, अब कंपनियां और इंडस्ट्री भी इंफ़्रास्ट्रक्चर, रेलवे, या पॉवर सेक्टर में निवेश करना और अपनी कैपिटल बढ़ाना शुरू कर देंगी. इसलिए, ये सभी फ़ैक्टर इस विशेष समय में इंडस्ट्रियल सेक्टर को एक आकर्षक विकल्प बनाते हैं.

अगर मिड और स्मॉल-कैप शेयरों के हालिया मज़बूत प्रदर्शन की बात करें, तो क्या ये तेज़ी बरक़रार रहेगी?

हमने मिड और स्मॉल-कैप शेयरों में ज़ोरदार तेज़ी देखी है, और समय के साथ जो बदला है वो है कंफ़र्ट और वैल्यूएशन. डेढ़ साल पहले, हम ख़ास तौर पर स्मॉल कैप में लगभग 14-15 गुना अर्निंग वाले अच्छे आईडिया ढूंढ़ सकते थे. आज, हम लगभग 20-22 गुना देख रहे हैं. ग्रोथ ड्राइवर वाली अपनी भूमिका के कारण मिडकैप महंगे बने हुए हैं. भारत की टॉप 100 कंपनियों के बाद, बाक़ी 150 कंपनियां मिड-कैप हैं, इसलिए उनका प्रदर्शन बेहतर हो सकता हैं. इसलिए हमें डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन जैसी कैटेगरी में अभी भी बहुत सारे अच्छे आईडिया मिल रहे हैं. हम सभी जानते हैं कि भारत में प्रति व्यक्ति कंज़म्प्शन में बढ़ोतरी हो रही है, जो डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन को विशेष रूप से आकर्षक कैटेगरी बनाती है. इस सेक्टर में कई तरह के सब-मार्केट शामिल हैं. ये सेक्टर बड़ी संख्या में मिड और स्मॉल-कैप कंपनियों का घर है.

दूसरी कैटेगरी मैन्युफ़ैक्चरिंग है, और मुझे उम्मीद है कि इस सेक्टर में बड़ी संख्या में मिड और स्मॉल-कैप कंपनियां उभरेंगी. इस सोच के साथ, मेरा मानना ​​है कि मिड और स्मॉल-कैप उम्मीद जगाने वाले सेक्टरों के रूप में उभरे हैं. कई विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन निवेशकों को वैल्यूएशन को लेकर सतर्क रहना चाहिए, और अपना लक्ष्य पाने के लिए सही एक्ज़िक्यूशन बहुत ज़रूरी हैं.

मिड और स्मॉल-कैप मार्केट में वैल्यू ढूंढ़ना अब चुनौती भरा हो सकता है. क्या ऐसे विशेष सेक्टर या इंडस्ट्री हैं जहां आप इस समय वैल्यू की संभावना देखती हैं?

आज के मार्केट में वैल्यू ढूंढ़ना मुश्किल है. अगर आप सिर्फ़ P/E रेशियो देखते हैं तो ये और भी चुनौती भरा हो जाता है. शायद यही वजह है कि हम एक दूसरे मीट्रिक की जांच कर रहे हैं, जैसे कि PEG रेशियो, जो P/E रेशियो की तुलना ग्रोथ से करता है. जैसा कि मैंने पहले बताया, हम इस समय इंडस्ट्रियल्स, इंफ़्रास्ट्रक्चर, मैन्युफ़ैक्चरिंग, और डिस्क्रिशनरी कंज़म्प्शन जैसे सेक्टरों में दिलचस्पी ले रहे हैं. अपने अलग-अलग सब-सेक्टर जैसे ऑटो एंसिलरी, रेलवे कंपोनेंट सप्लायर, और पॉवर सेक्टर के साथ, इंडस्ट्रियल सेक्टर हमें कई आईडिया देता है. सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर के विकास पर काफ़ी ज़ोर दे रही है, जो कि दिलचस्प बात है क्योंकि इससे पूरे देश में कई एयरपोर्ट, पोर्ट और दूसरे इंफ़्रास्ट्रक्चर का विकास होगा.

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