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हम सभी ने एक कहावत सुनी होगी, "निवेश करने का सबसे अच्छा समय कल था; दूसरा सबसे अच्छा समय आज है." हालांकि, अपने फ़ंड को बेचने का कौन सा समय सही है, इस बारे में कोई कहावत नहीं है. इस अहम सवाल पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है, क्योंकि निवेश का पूरा उद्देश्य ही उसे अच्छी तरह से बेचना है.
बहुत से निवेशकों के फ़ैसले भावनात्मक होते हैं. जब उनका निवेश कम समय में बढ़ जाता है, तो वे बेचने के लिए ललचाते हैं. 'मुनाफ़े को लॉक करने' का आकर्षण ज़्यादा हो सकता है, लेकिन हमेशा इस पर अमल करना समझदारी नहीं होती. इसके विपरीत, बाज़ार में अचानक आने वाली गिरावट निवेशकों के बीच घबराहट में बिकवाली को बढ़ावा दे सकती है. 2008 के फ़ाइनेंशियल क्राइसिस को याद कीजिए? घबराहट में बेचने वाले निवेशकों को 50-60 फ़ीसदी का नुक़सान हुआ. डर में बेचने से अक्सर पछतावा ही होता है क्योंकि बाज़ार आमतौर पर समय के साथ फिर ऊपर चढ़ता ही है.
इसलिए, इस आर्टिकल में, हम कुछ ऐसे परिदृश्यों की चर्चा करेंगे जिनमें आपको वास्तव में अपने म्यूचुअल फ़ंड को बेचने पर विचार करना चाहिए.
म्यूचुअल फ़ंड बेचने के 5 सही कारण
1. गोल हासिल होना
अगर आपने अपने निवेश के लक्ष्य को उम्मीद से पहले ही पा लिया है - जैसे कि, पांच साल के बजाय ढाई साल में कार के लिए बचत करना - तो पैसे अपने निवेश से निकाल लें. सफलता का जश्न मनाने की इससे बड़ी वजह और क्या हो सकती है कि आपने अपने गोल को जल्दी हासिल कर लिया है.
2. हालात में बदलाव
ज़िंदगी में बदलाव होते रहते हैं और मेडिकल और फ़ाइनेंशियल इमरजेंसी एक बुरे सपने की तरह कभी भी आ सकती है. अगर आपको अचानक पैसे की ज़रूरत पड़ जाए और आपके सारे कैश रिज़र्व खत्म हो जाएं, तो आपके पास अपने फ़ंड को बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है.
3. पोर्टफ़ोलियो रिबैलेंस करना
म्यूचुअल फ़ंड में निवेश करते समय, हम आमतौर पर इक्विटी और डेट के बीच का रेशियो तय करते हैं, जिसे एसेट एलोकेशन कहा जाता है. मिसाल के तौर पर आप अपने पोर्टफ़ोलियो का 60 फ़ीसदी इक्विटी फ़ंड और 40 फ़ीसदी डेट फ़ंड में एलोकेट कर सकते हैं.
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मान लीजिए कि बाज़ार में तेज़ी आती है और आपके इक्विटी फ़ंड आपके पोर्टफ़ोलियो के 80 फ़ीसदी तक बढ़ जाते हैं. अब, आपका मूल रेशियो इक्विटी के पक्ष में है.
पोर्टफ़ोलियो को रिबैलेंस करने के लिए, आप अपने इक्विटी फ़ंड का एक हिस्सा (इस मामले में 20 फ़ीसदी) बेचते हैं और उस राशि को डेट फ़ंड में निवेश करते हैं. ये रिबैलेंसिंग आपके पोर्टफ़ोलियो को मूल 60:40 इक्विटी-डेट एलोकेशन पर वापस लाता है. ये आपके म्यूचुअल फ़ंड को बेचने का एक और कारण हो सकता है.
4. फ़ंड का ख़राब प्रदर्शन
अगर आपने शुरू में ऐसा फ़ंड चुना है जिसके बारे में आपको लगता था कि ये अच्छा रहेगा, लेकिन ये उम्मीदों पर ख़रा नहीं उतरा, तो आपको फिर से आकलन करना चाहिए. हालांकि, पहले सुनिश्चित हो लें कि आपका फ़ंड वाक़ई ख़राब प्रदर्शन कर रहा है. ऐसा करने का तरीक़ा इसके प्रदर्शन की तुलना इसके जैसे दूसरे फ़ंड से करना है. अगर कोई फ़ंड लगातार लंबे समय यानी तीन साल या उससे ज़्यादा समय तक अपने जैसे दूसरे फ़ंड्स से ख़राब प्रदर्शन करता है, तो उस म्यूचुअल फ़ंड से बाहर निकलना ही बेहतर होगा. प्रदर्शन में अल्पकालिक यानी पिछले छह महीने या एक साल के उतार-चढ़ाव के आधार पर जल्दबाज़ी में कोई फैसला न लें. लंबी अवधि का नज़रिया इस बात की ज़्यादा सटीक समझ देता है कि कोई फ़ंड अलग-अलग बाज़ार स्थितियों में कैसा प्रदर्शन करता है.
5. फ़ंड के DNA में बदलाव
अगर कोई फ़ंड स्मॉल-कैप फंड से लार्ज-कैप फ़ंड में बदलने जैसे अपने निवेश के दायरे में बदलाव करता है, तो हो सकता है कि वो अब आपकी स्ट्रैटजी के अनुरूप न हो. ऐसे मामले में, समझदारी इसी में है कि आप फिर से आकलन करें कि क्या ये अभी भी आपके पोर्टफ़ोलियो में फ़िट बैठता है. अगर ऐसा नहीं है, तो उस म्यूचुअल फ़ंड को अलविदा कह दें.
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कब सावधान रहना चाहिए और नहीं बेचना चाहिए
फ़ंड मैनेजर में बदलाव
नए फ़ंड मैनेजर का आना, तुरंत बेचने का संकेत नहीं होता. फ़ंड की मज़बूत तौर-तरीक़े अच्छे रिटर्न देना जारी रख सकते हैं. कई बार, फ़ंड मैनेजर AMC (एसेट मैनेजमेंट कंपनी) के भीतर आंतरिक रूप से आगे बढ़ता है. इस परिदृश्य में, आप उम्मीद कर सकते हैं कि फ़ंड की रणनीति जारी रहेगी.
हालांकि, अगर फ़ंड मैनेजर AMC छोड़ देता है, तो ये चिंताजनक ख़बर हो सकती है.
दूसरी ओर, ये भी सच है कि कुछ फ़ंड्स के लिए, फ़ंड मैनेजर में बदलाव से उनकी क़िस्मत बदल सकती है (बेहतरी के लिए). नया मैनेजर अपनी ख़ुद की स्ट्रैटजी, फ़िलॉसफ़ी और निवेश के सिद्धांत लेकर आता है, जो मददगार साबित हो सकते हैं. हालांकि, अगर नए मैनेजर की स्ट्रैटजी फ़ंड पर बोझ बन रही है, तो ये फ़ंड में निवेश जारी रहने को लेकर दोबारा सोचने का कारण हो सकता है.
AMC की ओनरशिप में बदलाव
AMC स्वामित्व में बदलाव ज़्यादा जटिल हो सकता है. अगर कोई मौजूदा फ़ंड हाउस किसी दूसरे के साथ विलय करता है, तो इससे निवेश स्ट्रैटजी और टीम के स्थायित्व को प्रभावित कर सकता है. AMC का अधिग्रहण करने वाले नए लोगों से आमतौर पर कम ही असर पड़ता है.
आमतौर पर, इन परिवर्तनों का असर कुछ महीनों के बाद स्पष्ट हो जाता है. निर्णय लेने से पहले फ़ंड के प्रदर्शन पर ग़ौर करना एक सही दृष्टिकोण है.
चलन से बाहर या एक पुरानी निवेश की स्टाइल
कभी-कभी ऐसा होता है कि निवेश की एक ख़ास स्टाइल चलन से बाहर हो जाती है. उदाहरण के लिए, पिछले कुछ ही सालों में, ग्रोथ फ़ंड वैल्यू फ़ंड से पीछे रह गए हैं. ऐसे मामले में, कोई भी फ़ंड जो निवेश की ग्रोथ स्टाइल का पालन करता है, संभवतः कमज़ोर प्रदर्शन करेगा.
लेकिन ये ध्यान रखना चाहिए कि निवेश की स्टाइल में, हर चीज़ की तरह उतार-चढ़ाव आते हैं. वे अनुकूल और चुनौतीपूर्ण दोनों दौर का अनुभव करते हैं. ये किसी फ़ंड से बाहर निकलने की एकमात्र वजह नहीं होनी चाहिए. सबसे अच्छा विकल्प लंबी अवधि में फ़ंड के प्रदर्शन का निरीक्षण करना होगा.
आख़िरी लेकिन अहम बात
कभी भी डर या जोश में आकर अपना म्यूचुअल फ़ंड न बेचें.
निवेश एक मैराथन है, कोई स्प्रिंट नहीं. जल्दबाज़ी में निर्णय लेने से बचें और अपनी भावनाओं को हावी न होने दें. सोच-समझकर निर्णय लें और अपनी नज़र रिटर्न पर रखें.
आपका पोर्टफ़ोलियो और आपके भविष्य पर इसका असर दिखाई देगा.
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