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स्टील इंडस्ट्री उन कई सेक्टरों में से एक है जिन्हें अमेरिकी फ़ेडरल रिज़र्व के ब्याज़ दरें बढ़ाने से काफ़ी नुक़सान हुआ है. अमेरिका की अग्रेसिव मॉनेटरी पॉलिसी से ज़्यादातर कमोडिटी की क़ीमतें (जिनमें स्टील शामिल है) कोविड महामारी के बाद के अपने सबसे ऊंचे स्तर से नीचे चली गई.
दिलचस्प ये है कि स्टील की सस्ती क़ीमत और स्टील उत्पादकों के कमज़ोर फ़ाइनेंशियल्स के बावजूद, मार्केट स्टील स्टॉक्स पर भरोसा जता रहा है. ज़्यादातर स्टील स्टॉक्स अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर क़ारोबार कर रहे हैं.
इस अनोखे ट्रेंड पर क़रीब से नज़र डालने की ज़रूरत है. तो, हमारी राय में इस वजह से स्टील स्टॉक, दलाल स्ट्रीट के पसंदीदा बने हुए हैं:
ब्याज़ दर में कटौती की उम्मीद
मार्केट को उम्मीद है कि अमेरिकी सरकार आने वाली तिमाहियों में अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में ढील देगी. अमेरिकी फ़ेडरल रिज़र्व के चेयरमैन ने 2024 में, तीन-चार बार ब्याज़ दर में कटौती का ज़िक्र किया है. इससे स्टील स्टॉक्स को लेकर बुलिश सेंटीमेंट बना हुआ है.
इसका कारण समझने के लिए, हमें अमेरिकी डॉलर, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और कमोडिटी की क़ीमतों के बीच संबंधों को दोबारा समझना होगा. महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी सरकार बांड पर ब्याज़ दरें बढ़ाती है. अमेरिकी सरकारी बॉन्ड सबसे सुरक्षित सिक्योरिटी में से एक है. इसलिए, जब यील्ड ज़्यादा मिलती है, तो ग्लोबल कैपिटल का एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी बॉन्ड में चला जाता है. इससे डॉलर की मांग बढ़ती है और इस करेंसी की क़ीमत बढ़ जाती है.
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हालांकि, डॉलर की क़ीमत बढ़ने का मतलब रुपए का कमज़ोर होना है. साफ़ शब्दों में कहें, तो अगर आप $1 क़ीमत वाले स्टील (अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल ज़्यादातर वैश्विक व्यापार के लिए होता है) के लिए पहले ₹70 चुका रहे थे, तो अब आपको ₹80 चुकाने होंगे! लेकिन, जब अमेरिकी सरकार अपनी ब्याज़ दरों में कटौती करती है और बॉन्ड यील्ड में गिरावट आती है, तो ठीक इसका उल्टा होता है.
मार्केट को लगता है कि रेट में कटौती से स्टील की क़ीमतें बढ़ेंगी और स्टील उत्पदकों की कमाई बढ़ेगी. इससे पहले भी मार्केट ने यही प्रतिक्रिया दी है.
उल्टा संबंध
जनवरी 2000 से शुरू हुए पांच साल के रोलिंग पीरियड में रिटर्न (%)
एसेट क्लास | Jan-13 | Jan-17 | Jan-22 | Jan-24 |
---|---|---|---|---|
बॉन्ड यील्ड | -70 | 24 | -28 | 138 |
डॉलर | -25 | 26 | -3 | 8 |
मेटल प्राइज़ | 273 | -34 | 72 | -12 |
*जनवरी 2000 से शुरू हुई अवधि से
सोर्स: fred.stlouisfed.org, Investing.com |
चीनी फ़ैक्टर
चीन (दुनिया की फ़ैक्ट्री) स्टील का सबसे बड़ा कंज़्यूमर है. पिछले कुछ साल में, कोविड लॉकडाउन और रियल एस्टेट संकट के कारण इसकी अर्थव्यवस्था में मंदी आई है. अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए, चीन ने बैंकों के लिए ब्याज दर और रिज़र्व रेट की ज़रूरत को कम कर दिया है.
ध्यान दें, पिछली बार जब चीन ने ये ढील दी थी (2008 के क्राइसिस के बाद), तो इससे कमोडिटी की क़ीमतों में तेज़ी आई थी. दलाल स्ट्रीट को चीन में ब्याज़ दरों में मौज़ूदा छूट से इसी तरह के नतीजों की उम्मीद है.
क्या निवेश करें?
ऊपर बताए गए फ़ैक्टर इस बात का संकेत देते हैं की आने वाले वक़्त में स्टील की क़ीमतों में उछाल आएगा. इसके अलावा, इंफ़्रास्ट्रक्चर और capex पर सरकार के फ़ोकस को देखते हुए घरेलू डिमांड भी बढ़ने की उम्मीद है.
स्टील का कंज़म्प्शन (मिलियन टन में)
कंज़म्प्शन ग्रोथ के मामले में भारत सबसे आगे है
2021 | 2022 | YoY बदलाव (%) | |
---|---|---|---|
वैश्विक | 1842 | 1768 | -4 |
चीन | 954 | 921 | -3.5 |
भारत | 106 | 115 | 8.2 |
अमेरिका | 97 | 95 | -2.6 |
जापान | 57 | 55 | -4.2 |
दक्षिण कोरिया | 56 | 51 | -8.6 |
रूस | 44 | 42 | -5 |
सोर्स: Worldsteel |
हालांकि, कुछ ऐसे फ़ैक्टर भी हैं जिनके बारे में आपको निवेश करने से पहले सोचना चाहिए:
-
मार्केट प्राइज़:
'डिमांड बढ़ने की उम्मीद' का असर शायद पहले ही क़ीमतों पर पड़ चुका हो. स्टील शेयरों की मौज़ूदा ऊंची क़ीमतें भविष्य के मुनाफ़े को सीमित कर सकती हैं.
- साइक्लिक इंडस्ट्री: स्टील इंडस्ट्री अपनी अस्थिरता के लिए जानी जाती है. भू-राजनीतिक तनाव या दूसरे बाहरी झटकों से डिमांड पर असर पड़ सकता है. निवेशकों को इस अस्थिरता की संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए.
हमने स्टील इंडस्ट्री को लेकर की गई इस रिसर्च में सिर्फ़ मैक्रोइकॉनॉमिक फ़ैक्टर के पॉज़िटिव असर को शामिल किया है. पॉज़िटिव मैक्रोइकॉनॉमिक फ़ैक्टर सभी स्टील कंपनियों के लिए सफलता की गारंटी नहीं देते हैं.
निवेशकों से अनुरोध है कि अलग-अलग कंपनियों पर गहरी रिसर्च करें और सोच-समझकर ही फ़ैसला लें. ये कोई स्टॉक सुझाव नहीं हैं.
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