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इन दो एनर्जी स्टॉक्स पर बड़े दांव लग रहे हैं. आपको भी लगाना चाहिए क्या?

क्या इन शेयरों में और तेज़ी आएगी या फिर मौजूदा तेज़ी कुछ समय की ही है?

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बिजली बनाने से पहले हवा का इस्तेमाल कई और कामों में भी किया जाता था - पानी वाले जहाजों को चलाने के लिए, पानी पंप करने के लिए, और चक्की में अनाज पीसने के लिए. जब टिकाऊ ऊर्जा पाने के लिए अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया गया, तो बिजली पैदा करने के लिए आधुनिक विंड टरबाइन का इस्तेमाल शुरू हुआ. भारत में आईनॉक्‍स विंड और सुजलॉन एनर्जी जैसे विंड टरबाइन मैन्युफैक्चरर (Original Equipment Manufacturers) सबसे आगे रहे, क्योंकि उन्होंने रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाने पर दिए जा रहे ज़ोर का फ़ायदा उठाया.

इस इंडस्ट्री को सरकार ने प्राथमिकता दी, जिससे सख़्त नियम बने और सरकार का दखल भी बढ़ गया. लंबे समय के दौरान प्रोजेक्ट्स स्वभाव इस बिज़नस को पूंजी प्रधान या वर्किंग कैपिटल इंटेंसिव बनाता है, जिससे मुनाफ़ा कम होता है.

हालांकि, पिछले साल आईनॉक्स विंड और सुजलॉन एनर्जी के शेयर दलाल स्ट्रीट में पसंदीदा बने रहे. रिन्यूएबल एनर्जी को लेकर तेज़ी (बुलिश सेंटीमेंट) की वजह से S&P BSE एनर्जी इंडेक्स ने 64 फ़ीसदी की तगड़ी तेज़ी (8 अप्रैल 2024 तक) दिखाई.

इस तेज़ी ने इंडस्ट्री को लेकर हमारी दिलचस्पी बढ़ा दी, और हमें इस बेहतर प्रदर्शन की वजह जानने के लिए मजबूर कर दिया. जो बातें हमने समझीं वो हम यहां आपसे शेयर कर रहे हैं:

मुनाफ़े की राह पर वापसी

कई साल के घाटे के बाद, आईनॉक्स और सुजलॉन दोनों हाल ही में इस दलदल से बाहर निकलने में क़ामयाब रहे हैं. आईनॉक्स ने लगातार दो तिमाहियों (Q3 और Q4 FY24) में मुनाफ़ा दर्ज किया है. इससे पहले, आख़िरी बार कंपनी साल 2017 में मुनाफ़े में रही थी. सुजलॉन एनर्जी भी छह साल के अंतराल के बाद पूरे साल (FY23) के लिए मुनाफ़े में रही.

इस बदलाव की वजह, विंड एनर्जी की बढ़ती डिमांड के कारण उनकी ऑर्डर बुक का मज़बूत होना है.

FY24 की तीसरी तिमाही में, आईनॉक्स की ऑर्डर बुक में 100 फ़ीसदी से ज़्यादा का उछाल आया. कंपनी ने पिछले कुछ साल से 1000 मेगावाट से ज़्यादा की ऑर्डर बुक बरक़रार रखी है, पर ध्यान दें कि इसमें FY20 और Q2 FY24 के बीच 502 मेगावाट के ऑर्डर के लिए एक लेटर ऑफ़ इंटेंट भी शामिल था.

सुजलॉन एनर्जी की ऑर्डर बुक भी बेहतरीन ढंग से बढ़ी, जो FY23 में 652 मेगावाट से बढ़कर 3157 मेगावाट (जनवरी 2024 तक) हो गई. इसमें इसके डिलीवरेजिंग (क़र्ज़ का बोझ घटाना) प्रयासों ने मदद की. कई साल से भारी क़र्ज़ से जूझ रही कंपनी अपने ₹12,000 करोड़ (FY2018 में) के क़र्ज़ को घटाकर सिर्फ़ ₹120 करोड़ करने में कामयाब रही - यानी 100 गुना की गिरावट! ऐसा मुख्य रूप से डेट को इक्विटी में बदलकर और प्रमोटरों और राइट्स इश्यू की मदद से नई इक्विटी कैपिटल जुटाकर किया गया.

क़र्ज़ का बोझ कम होने और ऑर्डर बुक मज़बूत होने से सुजलॉन को, पिछले तीन साल में अपना रेवेन्यू सालाना 26 फ़ीसदी बढ़ाने में मदद मिली.

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तो क्या आपको इन पर दांव लगाना चाहिए?

इसमें कोई शक नहीं है कि ऑर्डर बुक के दोबारा मज़बूत होने से दोनों कंपनियों की ग्रोथ की संभावनाओं और शेयर क़ीमतों में जान आ गई है. हालांकि, उनकी ऑर्डर बुक पर बारीक़ी से नज़र डालने से कुछ चीज़ें साफ़ पता चलती हैं:

  • ये इंडस्ट्री हाई ट्रेड रिसीवेबल्स और हाई कैश कन्वर्जन साइकिल से जूझ रही है. उदाहरण के लिए, FY2023 के 505 दिनों में आईनॉक्स विंड का वर्किंग कैपिटल साइकिल इंडस्ट्री में सबसे ख़राब में से एक है.
  • कमज़ोर ऑपरेटिंग मेट्रिक्स इन दो बड़े खिलाड़ियों के लिए दिक़्क़त खड़ी कर रहे हैं

    पांच साल के औसत के संदर्भ में

    सुजलॉन एनर्जी आईनॉक्स विंड
    ट्रेड रिसीवेबल्स डेज़ 133 557
    ट्रेड पेबल्स डेज़ 247 758
    इन्वेंटरी डेज़ 199 456
    सेल्स के % के रूप में ट्रेड रिसीवेबल्स (%) 32 144
    कैश कन्वर्जन साइकल (दिनों में) 85 256
    नोट: FY23 तक का डेटा
  • विंड OEM को आम तौर पर परचेज़ पावर एग्रीमेंट्स को एग्ज़ीक्यूट करने में 12-18 महीने लगते हैं. बिजली की क़ीमत तय न कर पाने के कारण, वे कच्चे माल की ऊंची क़ीमतों के असर को दरकिनार नहीं कर पाते. इससे उनके प्रॉफ़िट मार्जिन पर असर पड़ता है.
  • आईनॉक्स विंड अपने टर्बाइनों को डिज़ाइन करने के लिए पूरी तरह से अपने टेक्नोलॉजी पार्टनर ASMC पर निर्भर रहती है. R&D पर ख़र्च न करने की वजह से ये कंपनी ख़ुद टर्बाइन डिज़ाइन नहीं करती है.

    इसके अलावा, कंपनी द्वारा बोनस शेयर (3:1) इश्यू करने का फ़ैसला हैरानी भरा है क्योंकि ये अभी-अभी मुनाफ़े में आई है. इसके बजाय, कंपनी को अपने मुनाफ़े का अतिरिक्त हिस्सा बिज़नस में दोबारा निवेश करना चाहिए था.
  • इस इंडस्ट्री में बड़ी फ़िक्स्ड कॉस्ट एक आम बात है. सुजलॉन एनर्जी का ऑपरेटिंग लेवरेज ज़्यादातर 30 फ़ीसदी से ऊपर रहा है!

    डिमांड में हालिया बढ़ोतरी के बावजूद, सुजलॉन ऐतिहासिक रूप से अपनी कमाई और क़ीमत दोनों मामलों में काफ़ी अस्थिर रहा है.

    पिछले साल 5 गुना से ज़्यादा रिटर्न देने के बाद भी, ये अभी भी अपनी ऑल-टाइम हाई प्राइस (₹417, साल 2008 में) पर 90 फ़ीसदी से ज़्यादा के डिस्काउंट पर क़ारोबार कर रहा है.
  • हालिया रैली की वजह से वैल्यूएशन अब काफ़ी महंगी हो गई है. सुजलॉन 80 गुना P/E पर क़ारोबार कर रही है. आईनॉक्स विंड (TTM आधार पर अभी भी घाटे में चल रही है) 10 गुना से ज़्यादा के एम-कैप टू सेल्स मल्टीप्ल पर क़ारोबार कर रही है.

इंडस्ट्री का उतार-चढ़ाव भरा और बहुत ज़्यादा रेगुलेटेड स्वभाव, और दोनों कंपनियों का ख़राब वर्किंग कैपिटल मेट्रिक्स उनके हालिया बेहतर प्रदर्शन के जारी रहने को लेकर सवाल खड़े करता है.

इसके अलावा, इनका बढ़ा हुआ वैल्यूएशन भी सही नहीं लगता क्योंकि दोनों कंपनियों का लंबे समय का रुख़ साफ़ नहीं है.

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