भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी रफ़्तार से बढ़ रही है. तेज़ी से बढ़ता हुआ देश का इंफ़्रास्ट्रक्चर का ख़र्च इस बात को मज़बूती देता है. साल (FY) 2025 के लिए ₹11 लाख करोड़ से ज़्यादा का रिकॉर्ड बजट तय किया गया है. स्वाभाविक ही है कि निवेशक भी इसका फ़ायदा उठाना चाहेंगे और इंफ़्रास्ट्रक्चर म्यूचुअल फ़ंड्स में निवेश के ज़रिए इस ग्रोथ का भागीदार बनना एक तरीक़ा हो सकता है.
तो, क्या इन फ़ंड्स में वाक़ई निवेश करना चाहिए? आइए इस विषय को गहराई से समझते हैं.
इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड कहां निवेश करते हैं?
भारत का इंफ़्रास्ट्रक्चर सिर्फ़ सड़कों और पुलों तक सिमित नहीं है. इसमें ट्रांसपोर्टेशन, एनर्जी, जल और स्वच्छता, कम्युनिकेशन्स और सोशल और कमर्शियल इंफ़्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर शामिल हैं. इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड्स इन सभी सेक्टरों में निवेश करते हैं.
कितने इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड्स हैं?
इस समय 16 सेक्टोरल और थीमैटिक इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड मौजूद हैं, जिनमें से दो पैसिव तरीक़े से मैनेज किए जाते हैं -- ये निफ़्टी इंफ़्रास्ट्रक्चर टोटल रिटर्न इंडेक्स (TRI) को ट्रैक करते हैं.
बाक़ी को एक्टिव रूप से मैनेज किया जाता है, और ये निफ़्टी इंफ़्रास्ट्रक्चर TRI और BSE इंडिया इंफ़्रास्ट्रक्चर TRI को ट्रैक करते हैं.
इनमें कौन से जोख़िम शामिल हैं?
- इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर साफ़ तौर से परिभाषित नहीं है.
ऐसा इसलिए क्योंकि फ़ंड मैनेजर उन संबंधित सेक्टरों (ऑटोमोबाइल, फ़ाइनेंशियल्स, कैपिटल गुड्स) में भी निवेश करते हैं जो कोर इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर से क़रीब से नहीं जुड़े हैं.
मिसाल के तौर पर, कुछ फ़ंड्स का इंफ़्रास्ट्रक्चर कंपनियों में नेट एलोकेशन 10 फ़ीसदी से कम है.
दूसरे शब्दों में, कुछ इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड्स गुमराह करने वाले हो सकते हैं. - इंफ़्रा थीम के तहत आने वाले कई सेक्टर में बड़ी पूंजी की ज़रूरत होती हैं. ऐसी कंपनियां अक्सर कम प्रॉफ़िट मार्जिन पर काम करती हैं और कर्ज़ का बोझ लेकर चलती हैं.
इसका मतलब है कि डिफ़ॉल्ट होने का जोख़िम बढ़ जाता है.
कंस्ट्रक्शन और एनर्जी जैसे प्रमुख सेक्टरों में अतीत में बड़ी गिरावट देखी गई है (IL&FS , सुजलॉन एनर्जी, जेपी इंफ्राटेक, लैन्को इंफ्राटेकऔर DHFL). इन दोनों सेक्टरों को रेगुलेटरी बदलावों, प्रोजेक्ट्स में देरी, आर्थिक उतार-चढाव, कानूनी विवाद और लॉजिस्टिक्स संबंधी जोख़िम का भी सामना करना पड़ता है.
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पिछला परफ़ॉरमेंस
इन फ़ंड्स का पिछला परफ़ॉरमेंस एक साफ़ तस्वीर नहीं दिखाता है क्योंकि ये इंफ़्रास्ट्रक्चर थीम वाली कंपनियों से पूरी तरह से जुड़े नहीं रहते हैं. उदाहरण के लिए, पिछले पांच साल के दौरान पांच टॉप फ़ंड्स में से चार (AUM के संदर्भ में) का एलोकेशन उन सेक्टरों में सबसे ज़्यादा था जो कोर इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर के तहत नहीं आते हैं.
इसके अलावा, S&P BSE 500 TRI के साथ तुलना करने पर हमने पाया कि इन फ़ंड्स ने पिछले 10 साल में ज़्यादातर ख़राब प्रदर्शन किया है. पिछले 10 साल (2004-2014) में इस ख़राब प्रदर्शन का मार्जिन तो और भी ज़्यादा है.
ध्यान दें कि इनमें से कुछ फ़ंड्स 10 साल से भी ज़्यादा समय से वजूद में हैं, जिससे इनका लॉन्ग-टर्म परफ़ॉरमेंस जांचने में मदद मिलती है.
क्या करें
- निवेशकों को इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़ंड्स में निवेश करने से पहले अपनी जोख़िम उठाने की क्षमता और निवेश के लक्ष्य को ध्यान में रखना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इस थीम के तहत आने वाले कई सेक्टर साइक्लिक हैं, जिनमें काफ़ी ज़्यादा उतार-चढाव का ख़तरा रहता है.
- एविएशन, रियल एस्टेट, पॉवर और टेलिकम्युनिकेशन जैसे संबंधित सेक्टरों की कई कंपनियां अक्सर भारी कर्ज़ लेती हैं और फ़ाइनेंशियल तौर पर मुश्किलें झेलती हैं.
- ऐसी फ़ाइनेंशियल चुनौतियां मैनजरों को इंफ़्रास्ट्रक्चर संबंधी दूसरी कंपनियों में निवेश करने के लिए मज़बूर कर सकती हैं. इससे फ़ंड का थीमेटिक फ़ोकस कमज़ोर हो सकता है और ये निवेशकों को उस ओर ले जा सकता है जहां वे नहीं जाना चाहते.
- हमने हमेशा सेक्टोरल और थीमेटिक फ़ंड्स में निवेश को लेकर सावधानी बरतने का सुझाव दिया है, क्योंकि इन फ़ंड्स का एक ही सेक्टर पर ज़्यादा फ़ोकस रहता है.
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