म्यूचुअल फ़ंड SIP आपको हर महीने एक तय रक़म निवेश करने की इजाज़त देती है. हालांकि, ज़्यादातर लोगों की सैलरी में हर साल इंक्रीमेंट होता है, इसलिए निवेश को समय के साथ बढ़ाया जा सकता है. लेकिन क्या पहले से जारी SIP में ऐसा किया जा सकता है? इसके लिए टॉप-अप या स्टेप-अप का तरीक़ा अच्छा होता है.
ये ज़रूरी है कि जैसे-जैसे आपकी इनकम बढ़ती है तो निवेश का अमाउंट भी बढ़ाएं. इसके फ़ायदे को एक उदाहरण से समझते हैं. अगर आपने 15 साल पहले SBI स्मॉल कैप फ़ंड के रेग्युलर प्लान में हर महीने ₹5,000 की SIP की होती तो आपके पास लगभग 23 फ़ीसदी की ब्याज दर से ₹62.48 लाख की वेल्थ तैयार हो जाती. वहीं, अगर आप इसी स्कीम में हर साल अपनी SIP की रक़म को 10 फ़ीसदी बढ़ाते तो ₹94.94 लाख की वेल्थ तैयार हो जाएगी. ये 50 फ़ीसदी से कुछ ज़्यादा का अंतर है. यही छोटी-छोटी चीजे़ं आपके मुनाफ़े को ख़ासा बढ़ा सकती हैं (डेटा 12 नवंबर 2024 तक का है).
आप हमारे म्यूचुअल फ़ंड कैलकुरेटर के ज़रिये, रक़म घटा या बढ़ाकर और दूसरे फ़ंड के लिए कैलकुलेशन कर सकते हैं.
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ऐसा कैसे करें?
पहले कुछ ही फ़ंड हाउस SIP में टॉप-अप की सुविधा देते थे. लेकिन अब, ज़्यादातर फ़ंड हाउस ये सुविधा दे रहे हैं, लेकिन फिर भी ये देखना ज़रूरी हो जाता है कि कौन से फ़ंड हाउस ये सुविधा देते हैं और कौन से नहीं.
हर साल अपनी SIP की रक़म को बढ़ाने के दो तरीक़े हैं. पारंपरिक विकल्प ये है कि आप बस ये तय करें कि आप हर महीने कितना ज़्यादा पैसा निवेश करना चाहते हैं और फिर एक नई SIP शुरू करें. आप या तो उसी स्कीम में ऐसा कर सकते हैं (लेकिन SIP को क्लब नहीं किया जाएगा) या उसी फ़ोलियो में किसी दूसरी स्कीम में. हालांकि, अगर आपके पास कोई मौजूदा SIP है और आप अपना मासिक योगदान बढ़ाना चाहते हैं, तो बहुत कम ही फ़ंड हाउस आपको बीच में ऐसा करने की इजाज़त देंगे. हालांकि, ज़्यादातर फ़ंड हाउस आपको अपनी पहली क़िस्त का भुगतान करने से पहले यानी, SIP शुरू करते समय ही टॉप-अप की रक़म तय करने की इजाज़त देते हैं.
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तकनीकी पहलुओं को अलग कर दें, तो SIP रक़म में बदलाव के लिए एक अलग तरीक़ा है. असल में, SIP एक ऐसा मैंडेट है जिसे आप अपने बैंक को अपने सेविंग अकाउंट से नियमित तौर पर डेबिट करने के लिए देते हैं. एक बार रजिस्टर होने के बाद ये मैंडेट उस SIP लेनदेन पर ख़ास तौर से लागू होता है और इसे बदला नहीं जा सकता. हालांकि, नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (NPCI) द्वारा स्थापित नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (NACH) सिस्टम की वजह से, आप एक बार का मैन्डेट दे सकते हैं जो आपको बाद की तारीख़ में नए निवेश करने की अनुमति देते हैं, जो उसमें रजिस्टर्ड कराए गए अमाउंट और डेबिट फ़्रीक्वेंसी के हिसाब से होगा.
हर फ़ंड हाउस का एक कॉमन एप्लीकेशन फ़ॉर्म के साथ-साथ एक SIP फ़ॉर्म भी होता है. SIP फ़ॉर्म में, जब आप शुरुआती तरीख़, मासिक निवेश की रक़म और SIP की आख़िरी तरीख़ जैसी अपनी बेसिक SIP जानकारी भर देते हैं, तो उसके ठीक नीचे आपके कुछ और जानकारियां भी मांगी जाती हैं, जैसे कि क्या आप भविष्य में अपने SIP को टॉप-अप करना चाहेंगे. कुछ फ़ंड हाउस आपको हर 6 महीने में टॉप-अप करने की इजाज़त देते हैं; बाक़ी आपको सालाना बढ़ोतरी की अनुमति देते हैं. यानी, हर साल आप साल में एक बार अपनी रक़म बढ़ा सकते हैं और फिर वो बढ़ी हुई रक़म उस साल के लिए आपका मासिक निवेश होगी. अगले साल, आपकी रक़म फिर से एक बार बढ़ जाएगी, जो उसी साल के लिए जारी रहेगी.
ध्यान रखने की बात!
तय करें कि आप अपनी SIP में कितनी रक़म या कितने फ़ीसदी बढ़ाना चाहते हैं. अगर आपको लगता है कि आप एक लिमिट से ज़्यादा मासिक निवेश नहीं कर पाएंगे, तो आप अपनी रक़म की लिमिट भी तय कर सकते हैं. मिसाल के तौर पर, ऊपर दिए गए हमारे उदाहरण में, 5 फ़ीसदी सालाना बढ़ोतरी का मतलब है कि आपको 10वें साल में हर महीने ₹11,790 निवेश करने होंगे. एक बार जब आपकी मासिक क़िस्त लिमिट से ऊपर पहुंच जाती है, तो आपकी टॉप-अप सुविधा बंद हो जाती है और फिर आप अपनी SIP आगे को उसी अमाउंट में निवेश करते रहते हैं.
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