क्या निवेश करने के बारे में सोच रहे हैं? क्या आपने स्टॉक्स/फ़ंड्स पर खूब रिसर्च की है? क्या आप आजकल हर ख़बर पढ़ रहे हैं? क्या अब तक आपने अनगिनत यू-ट्यूब वीडियो देख डाले हैं? कितने व्हॉट्सएप ग्रुप आपने ज्वाइन किए होंगे? इंस्टाग्राम पर आप कितने फ़िनफ़्लुएंसर फ़ॉलो कर रहे हैं? कई बार, मैं सोचता हूं कि काश ये तथाकथित इन्फ़ॉर्मेशन रेवेल्यूशन हुआ ही नहीं होता. हम वापस उन्हीं दिनों में चले जाते जब आप कुछ (पेपर) एनुअल रिपोर्ट पढ़ा करते, एक महीने के स्टॉक प्राइस देखते, दो-चार निवेश करने वाले दोस्तों से बात करते और फिर स्टॉक ख़रीदते या नहीं भी ख़रीदते.
अब, हममें से ज़्यादातर लोग अनगिनत स्रोतों से आने वाली अथाह फ़ाइनेंशियल इनफ़ॉर्मेशन से ठसाठस भरा हुआ महसूस करते हैं. ताज़ा-तरीन ख़बरों, नए-नए रुझानों और राय को लेकर अपटूडेट रहने, और निवेश के 'सही' फ़ैसले लेने के उन्माद में उलझना कितना आसान हो गया है. हालांकि, जानकारी की ये लगातार होने वाली बमबारी अक्सर फ़ायदे से ज़्यादा नुक़सान कर सकती है, जिसका नतीजा होता है अनालेसिस पैरालेसिस, भावनाओं में बह कर निर्णय लेना, और फ़ोकस की कमी. सच तो ये है कि जो शोर-शराबा हर रोज़ होता है, उसका हमारे निवेश के लक्ष्यों से कोई लेना-देना नहीं है. शॉर्ट-टर्म में मार्केट के उतार-चढ़ाव, सनसनीखेज़ ख़बरों की सुर्खियां और तथाकथित विशेषज्ञों की राय का असर हमारे निवेश के बुनियादी मूल्यों पर बहुत कम ही होता है. सूचना की ये अति, इस अंतहीन चक्र में फंसाकर हमें अपने निवेश की मूल योजना से दूर ले जाने का काम करती है और हमें प्रतिक्रियावादी बना कर सही फ़ैसलों से चूकने का रिस्क खड़ा कर देती है.
फिर चाहे एक निवेशक को सभी इनपुट सही-सही और काम के ही क्यों न मिल रहे हों, मगर सूचनाओं की अति उन्हें किसी काम का नहीं रहने देती. फ़ाइनेंशियल न्यूज़ और मीडिया की अंतहीन ख़बरों के जाल में फंसना कितना आसान हो गया है. ख़बरों और मीडिया के ज़्यादा एक्सपोज़र के बड़े ख़तरों की सबसे बड़ी समस्या है, ग़लत फ़ीडबैक लूप में उलझना. जब हम शॉर्ट-टर्म में होने वाली घटनाओं और मार्केट के उतार-चढ़ावों से लगातार रू-ब-रू हो रहे होते हैं, तो हम पर तेज़ी से कुछ करने और आधी-अधूरी जानकारियों के आधार पर फ़ैसले लेने का दबाव बन जाता है. मीडिया और सोशल मीडिया इस दबाव को और भी बढ़ा देते हैं, और मन में तत्काल एक्शन लेने का भाव, और कुछ छूट जाने का डर पैदा कर देते हैं. क़रीब-क़रीब हमेशा ही, इसका नतीजा जल्दबाज़ी में लिए गए फ़ैसले और निवेश के प्लान से भटकने का होता है.
अक्सर ये समझ पाना मुश्किल होता है कि हम हर रोज़ जो ज़्यादातर ख़बरें और जानकारियां पाते हैं, वो लंबे समय के निवेशकों के लिए मायने नहीं रखतीं. शॉर्ट-टर्म में बाज़ार की गतिविधियां, राजनीतिक घटनाएं और आर्थिक संकेत आते-जाते रहते हैं और उनका असर भी कुछ समय के लिए ही अस्थिरता पैदा कर सकता है. लेकिन हमारे निवेश की बेसिक वैल्यू पर उनका शायद ही कोई बड़ा असर पड़ता है. मेरा अंदाज़ा है कि अगर आप मास-मीडिया और सोशल मीडिया से आने वाली सभी ख़बरों पर नज़र रखने के लिए तैयार हैं, तो आपको कम-से-कम, हर रोज़, क़रीब 200-300 यूनीक तरीक़े की सूचनाओं से दो-दो हाथ करने होंगे. ऐसी स्थिति में ख़ुद को ये भरोसा दिलाना आसान होता है कि ये सब मायने रखता है और इसलिए आपको हर चीज़ पर नज़र रखनी चाहिए.
तो, इस सब का समाधान क्या है? बड़ी बात ये है कि लॉग-टर्म वाला नज़रिया अपनाएं और उन बातों पर ध्यान दें, जो हमारे निवेश की सफलता के लिए असल में मायने रखती हैं. निवेश की ज़्यादातर समस्याएं थोड़े वक़्त के लिए आने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने की असफलता की वजह से नहीं होतीं, बल्कि समय के साथ लगातार और अनुशासित तरीक़े से काम करने की कमी से पैदा होती हैं. मार्केट की हर रोज़मर्रा की गतिविधियों पर ध्यान देने या आने वाली किसी बड़ी भविष्यवाणी की कोशिश करने के बजाय, लंबे समय वाले निवेशकों को निवेश के बुनियादी सिद्धांतों पर ध्यान देना चाहिए. इसमें कंपनियों पर रिसर्च करना, उनकी फ़ाइनेंशियल हेल्थ का पता लगाना और उनकी ख़ूबियों को समझना शामिल है. ग्रोथ की मज़बूत संभावनाओं वाले हाई क्वालिटी व्यवसायों में निवेश करके, हम ऐसा लचीला पोर्टफ़ोलियो बना सकते हैं जो शॉर्ट-टर्म के उतार-चढ़ाव का सामना कर सकता है और समय के साथ अच्छे रिटर्न भी दे सकता है. बेशक़, इसका मतलब ये नहीं कि हमें अपने निवेश को पूरी तरह से नज़रअंदाज कर देना चाहिए और कभी एडजस्ट नहीं करना चाहिए. हालांकि, ये मीडिया के शोर पर आधारित बिना सोचे-समझे किए जाने वाली प्रतिक्रियाओं के बजाय एक सोचा-समझा, डेटा के आधार पर किए गए विश्लेषण के ज़रिए होना चाहिए.
मीडिया के शोर और छोटे अर्से के भटकाव की लगातार रोकथाम से हमें ज़्यादा जानकारी वाले, तर्कसंगत फ़ैसले लेने में मदद मिल सकती है जो हमारे फ़ाइनेंशियल गोल से मेल खाते हों. इसके लिए अनुशासन, धीरज और भीड़ को नज़रअंदाज़ करने और अपने विश्वासों पर टिके रहने की की ज़रूरत होती है. इसके लिए ख़बरों, यू-ट्यूब और दूसरी चीज़ों पर अंतहीन स्क्रॉलिंग की ज़रूरत नहीं होती.
एक मिसाल:
मैं जो कहना चाहता हूं उसका एक उदाहरण यहां दिया गया है. मुझे यक़ीन है कि आपने हमारी वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र सर्विस के बारे में सुना होगा. हमारी रिसर्च टीम ने एक ताज़ा नई सिफ़ारिश (रेकमेंडेशन) की है, जिसे इस सर्विस के मेंबरों को भेजा जा रहा है. हमारी टीम ने आज के वैल्यू में बढ़े हुए मार्केट में एक दुर्लभ मौक़े का पता लगाया है. ये एक बदलाव की कहानी है और ज़्यादातर निवेशकों द्वारा या तो इस पर ध्यान नहीं दिया गया है या इसे समझा नहीं गया है. ये किसी हाइप का हिस्सा नहीं है, न ही इसके बारे में मीडिया में सैकड़ों लेख मिलेंगे. ये वो है जिससे मेहनती, बुनियादी तौर पर फ़ोकस रहने वाले निवेशक अपने लिए मौक़े बनाते हैं. जहां तक हमारा ताल्लुक़ है, केवल वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र के सदस्यों के पास ही निवेश के इस अवसर तक पहुंच होगी.