चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत राडो (लग्ज़री घड़ियों का स्विस ब्रांड) का सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है. यही वजह है कि लक्ज़री घड़ी सेगमेंट में, और ख़ास तौर पर एथोस (Ethos) पर ग़ौर करने के लिए मजबूर हो गए हैं. असल में एथोस एक भारतीय लग्ज़री घड़ियों का रिटेलर है. FY24 की तीसरी तिमाही तक, बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी 20 फ़ीसदी से ज़्यादा थी.
साथ ही, एथोस ने साल 24 के फ़ाइनेंशियल ईयर की तीसरी तिमाही के दौरान अपने रेवेन्यू में सालाना आधार पर 22 फ़ीसदी की शानदार बढ़ोतरी दर्ज की. ये बढ़ोतरी इस तिमाही की चुनौतियों को देखते हुए काफ़ी अहम हो जाती है. असल में, इस तिमाही में श्राद्ध की वजह से और चेन्नई की अप्रत्याशित बाढ़ में हुए नुक़सान के कारण स्टोर्स के रिनोवेशन के चलते मुश्किलें रहीं.
हालांकि, जिस बात ने हमारी उत्सुकता बढ़ाई, वो एथोस का भविष्य को लेकर उनका नज़रिया रहा. क्वालिफ़ाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) के ज़रिए नवंबर 2024 में ₹175 करोड़ जुटाने ठीक बाद - दो साल से भी कम समय में अपने पहले वाले IPO से जुटाए गए ₹375 करोड़ को पूरी तरह इस्तेमाल नहीं करने के बावजूद - एथोस ने 25 फ़ीसदी की महत्वाकांक्षी सालाना बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है.
इस पूर्वानुमान के साहसी कहा जाएगा और इसी ने हमें कंपनी को गहराई से समझने के लिए प्रेरित किया. क्या कंपनी के पास कोई प्लान है या ये अच्छे वक़्त में दिया गया एक बयान भर है?
सीमाओं के पार
लग्ज़री घड़ियों की बढ़ती मांग सिर्फ़ भारत तक ही सीमित नहीं है. ऊंची क़ीमत वाली स्विस घड़ियों का आकर्षण दुनिया भर में ख़रीदने वालों की बढ़ती संपत्ति दिखाता है.
अब आप जानना चाहेंगे कि इसकी वजह क्या है? तो, ग्लोबल सेंट्रल बैंकों द्वारा लिक्विडिटी के इंजेक्शन (कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्थाओं के थमने के बाद) ने फ़ाइनेंशियल और रियल एस्टेट सेक्टर में तेज़ी को बढ़ावा दिया है, जिससे करोड़पतियों का एक नई क्लास खड़ी कर दी है.
स्ट्रैटजी का डाइवर्सिफ़िकेशन
एथोस की उम्मीदें लक्ज़री घड़ी की रिटेल बिक्री से आगे तक फैली हुई हैं. कंपनी, मेसिका (Messika) के ज़रिए से गहने और रिमोवा (Rimowa) के ज़रिए से लगेज सहित दूसरे प्रोडक्ट लाइनों में ब्रांच खोल रही है.
इसके अलावा, एथोस ने ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन हासिल करने के लिए फ़ेवर लेउबा (Favre Leuba) जैसे स्विस घड़ी ब्रांड में हिस्सेदारी लेना शुरू कर दिया है.
स्विस घड़ी इंडस्ट्री में क़रीब चार दशकों के अनुभव के साथ, एथोस की विशेषज्ञता न सिर्फ़ रिटेल सेक्टर में है, बल्कि सप्लाई चेन में भी है. ये अपनी मूल कंपनी, KDDL के ज़रिए से स्विस घड़ी निर्माताओं को घड़ी के पुरज़ों की आपूर्ति करता है. अनुभव की ऐसी गहराई एथोस की वैश्विक आकांक्षाओं को एक ठोस बुनियाद देती है.
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भारतीय लक्ज़री घड़ी बाज़ार में अवसर
भारतीय लक्ज़री घड़ी बाज़ार अवसरों से भरा है. वैश्विक स्विस घड़ी बाज़ार में भारत का हिस्सा छोटा हो सकता है, लेकिन इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था इसे 2000 के दशक की शुरुआत में चीन की तरह, लक्ज़री घड़ियों के लिए एक उभरते हॉटस्पॉट के तौर पर स्थापित करती है. हाल ही में भारत-EFTA व्यापार समझौता, जिसका मक़सद स्विस घड़ियों पर आयात शुल्क को कम करना है, ग्रे मार्केट को कम करके मांग को और बढ़ा सकता है.
कंपनी क्या कर रही है? यह सिलीगुड़ी, भुवनेश्वर, रायपुर और सूरत जैसे शहरों में कामयाबी के बाद अपने स्टोर नेटवर्क का बढ़ाते हुए, टियर-2/3 शहरों में छुपी हुई मांग को भुनाने की योजना बना रहा है. कंपनी पूर्व-स्वामित्व वाली (सेकंड-हैंड) घड़ी बाजार की भी खोज कर रही है, जिसमें ख़ास तौर से COVID-19 महामारी के दौरान तेज़ इज़ाफा देखा गया है. (आपूर्ति में व्यवधान के कारण कुछ पूर्व-स्वामित्व वाली मॉडलों की कीमतें ब्रांड-नई घड़ियों की कीमतों से तीन गुना बढ़ गईं.)
इसके अलावा, एथोस ने एक डिस्ट्रीब्यूटर के तौर पर कम कीमत वाले स्विस घड़ी खंड में फिर से एंटर किया है, जिसका मक़सद सिर्फ हाई एंड लक्ज़री बाज़र की सेवा करना है.
निवेशक का कोना
इसमें कोई संदेह नहीं है कि एथोस की बड़ी महत्वाकांक्षाएं और विकास की आशाजनक संभावनाएं हैं. हालांकि, प्रतिस्पर्धा नज़रिया लगातार विकसित हो रहा है, और बाज़ार की गतिशीलता अक्षम्य हो सकती है.
हालांकि कंपनी के पास कई स्विस ब्रांडों के साथ ख़ास समझौते हैं, लेकिन इसमें रोलेक्स और राडो जैसे टॉप लेवल नामों के साथ विशिष्टता की कमी है. इथोस के पोर्टफ़ोलियो में एक्सक्लूसिव ब्रांड्स की हिस्सेदारी 75 फीसदी है, लेकिन बिक्री में उनका योगदान सिर्फ़ 30 फीसदी है.
इस सेक्टर के ख़तरों से भी सावधान रहना चाहिए. लग्ज़री आइटम के मामले में, एसेट की कीमत में गिरावट और हाई नेट वर्थ वाले व्यक्तियों पर दबाव बढ़ना बिगाड़ने वाला साबित हो सकता है, जैसा कि अतीत में चीन और हांगकांग में हुआ है.
कंपनी के लिए मंदी और भी चिंताजनक है, क्योंकि इसकी 40 फ़ीसदी से ज़्यादा एसेट इन्वेंट्री में फंसी हुई है, जिससे नकदी संकट की समस्या पैदा हो सकती है.
आख़िर में, कंपनी का मौजूदा मूल्यांकन, 85 का P/E अनुपात, महंगा प्रतीत होता है.
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