Anand Kumar
SEBI ने 27 फ़रवरी को सभी AMCs को एक पत्र भेजकर, 'बाज़ार के स्मॉल और मिड-कैप सेगमेंट की तेज़ी और म्यूचुअल फ़ंड की स्मॉल और मिड-कैप स्कीमों में लगातार आ रहे फ़्लो' पर चिंता ज़ाहिर की. साथ ही ये भी कहा कि निवेशकों की सुरक्षा के लिए नीति बनाई जाए. पत्र में इस नीति के लिए दो ज़रूरतें बताई गईं. पहली ये कि 'निवेशकों की सुरक्षा के लिए AMC और फ़ंड मैनेजरों को सही और सक्रिय तरीक़े से उपाय करने चाहिए, जिसमें इनफ़्लो को क़ाबू करना, पोर्टफ़ोलियो की रिबैलेंसिंग जैसी बातें शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं.' और दूसरा, 'ये पक्का करने के लिए क़दम उठाए जाएं कि रिडीम करने वाले निवेशकों को मिले फ़र्स्ट मूवर एडवांटेज से, निवेशक सुरक्षित रहें.'
भले ही, पत्र में विस्तार से कुछ नहीं कहा गया है, लेकिन SEBI ने जिन ख़तरों की ओर इशारा किया है, उन्हें रोकने के उपाय बिल्कुल स्पष्ट हैं. पहला प्वाइंट दिखाता है, रेग्युलेटर इस बात से चिंतित है कि अगर स्मॉल-कैप फ़ंड्स में बड़े पैमाने पर निवेश आते रहे, तो पोर्टफ़ोलियो होल्डिंग्स की क्वालिटी और वैल्यू का गिरना तय है. ऐसा इसलिए क्योंकि निवेश लायक़ छोटी कंपनियां कम ही मौजूद हैं.
दूसरा प्वाइंट ये इशारा करता है कि अगर बाज़ार में स्मॉल और मिड-कैप में गिरावट आती है, तो क्या होगा. जो निवेशक मंदी शुरू होते ही बाहर निकलने का फ़ैसला लेते हैं, वे बचे हुए लोगों की कीमत पर ज़्यादा फ़ायदे में हो सकते हैं, क्योंकि उनके निवेश से बाहर निकलने से फ़ंड मैनेजरों को प्रतिकूल क़ीमतों की तुलना में अच्छी क्वालिटी वाली होल्डिंग्स बेचने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है. इससे बाक़ी निवेशकों के लिए फ़ंड की क्वालिटी और वैल्यू से समझौते करने की स्थिति खड़ी हो जाएगी. और ये कोई काल्पनिक स्थिति नहीं है - हमने डेट फ़ंड्स (debt funds) में ऐसा बार-बार होते देखा है.
इससे, असल में एक ख़राब सायकल पैदा हो सकती है, जिससे उन निवेशकों पर बाज़ार में गिरावट का असर और भी बुरा हो सकता है जो सबसे पहले निवेश से बाहर नहीं निकलते हैं. इसीलिए, SEBI ने अपनी भाषा में इस फ़र्स्ट मूवर एडवांटेज, यानी पहले बिकवाली के लाभ को कम करने का इशारा किया है, और इसका उद्देश्य सभी निवेशकों के बीच जोख़िम और नुक़सान को ज़्यादा न्यायसंगत तरीक़े से बांटना है. जब ये पत्र सामने आया, तो सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर काफ़ी तीखी चर्चा हुई कि क्या इसका मतलब है कि बाज़ार में गिरावट की स्थिति में रिडेम्शन को एक तय समय के लिए रोका या सीमित किया जा सकता है. मुझे लगता है कि ये चर्चा काल्पनिक और निरर्थक थी. किसी गिरावट की स्थिति में क्या होता है ये उस गिरावट की प्रकृति और स्तर पर निर्भर करेगा.
हालांकि, इस बात की एक और बड़ी वजह है कि निवेशकों को इन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए. असल में, अगर आप निवेश के कुछ बुनियादी नियमों का पालन करते हैं, तो इनमें से कोई भी बात आप पर असर नहीं डालेगी. बेशक़, मैं साधारण चीज़ों की बात कर रहा हूं, जिनमें सावधानी से फ़ंड चुनना, डाइवर्सिफ़िकेशन, SIP और केवल लंबी अवधि के पैसे को स्मॉल और मिड-कैप में निवेश करना शामिल हैं. हर स्मार्ट निवेशक को ये काम हमेशा ही करते रहना चाहिए: चाहे SEBI कुछ कहे या नहीं, क्रैश हो या न हो.
आपके निवेश से जुड़ी असली रेग्युलेटरी ताक़त आपके अपने हाथों में है और ये आपके निवेशों में लचीलापन लाने के साथ बाज़ार की अनिश्चितताओं से निपटने में मदद भी करेगी. ये बात, बुनियादी बातों को हमेशा ध्यान में रखने की समझदारी, रेग्युलेटरी चिंताओं और बाज़ार की अस्थिरता से परे की है. इन बुनियादी बातों के मान कर, निवेशक न केवल ख़ुद को बाज़ार के उतार-चढ़ाव के असर से बचाते हैं, बल्कि उनका पोर्टफ़ोलियो भी समय के साथ लगातार बढ़ पाता है. बाज़ार की स्थितियां चाहे जो हों या रेग्युलेटरी हस्तक्षेप ही क्यों न हों, अगर निवेश को सफल होना है तो उसके लिए अनुशासित नज़रिया ही काम करता है.
अगर आप इसका सुबूत चाहते हैं, तो आप किसी भी स्मॉल-कैप फ़ंड को देख लीजिए और धनक पर उसका वास्तविक ऐतिहासिक SIP रिटर्न देखिए. निप्पॉन इंडिया (पूर्व में रिलायंस) स्मॉल कैप को ही लीजिए, जो दशकों से एक बहुत लोकप्रिय स्मॉल-कैप फ़ंड रहा है. पिछले 10 साल में, इसने बाज़ार के तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद, हर साल 26.3 प्रतिशत का SIP रिटर्न दिया है. इसका मतलब है कि ₹10,000 महीने की SIP ने ₹12 लाख को ₹48.4 लाख बदल दिया. हालांकि, ये फ़ंड सबसे अच्छा है, पर ऐसे कई और भी हैं जिन्होंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले नौ स्मॉल-कैप फ़ंड्स में से, सात फ़ंड्स ने हर साल, 20 फ़ीसदी से ज़्यादा का रिटर्न दिया है.
बाज़ार की सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए, और निवेशक हितों की रक्षा के लिए, SEBI की सलाह निवेश के फ़ैसलों में विवेक और दूरदर्शिता दिखाती है. आपको बस शांत रह कर निवेश की बुनियादी बातों पर टिके रहने की ज़रूरत है. अगर ऐसा करते हैं, तो तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद आप बहुत सारा पैसा बना लेंगे.
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