महिंद्रा मैनुलाइफ एमएफ़ के कुछ इक्विटी फ़ंड - जैसे उनके स्मॉल-कैप (पिछले साल 72 फ़ीसदी रिटर्न), मिड-कैप (60 फ़ीसदी) और मल्टी-कैप (54 फ़ीसदी) की पेशकश - के लिए 2023 शानदार रहा.
इस मौक़े को देखते हुए, हमने क़ामयाबी के पीछे वजह समझने के लिए हाल ही में फ़ंड हाउस के मुख्य निवेश अधिकारी - इक्विटी, कृष्णा संघवी के साथ ख़ास मुलाक़ात की. इतना ही नहीं, उन्होंने फ़ंड हाउस की इनवेस्टमेंट फ़िलॉसफ़ी और स्मॉल और मिड-कैप के लिए सलेक्शन क्राइटेरिया के बारे में भी बात की. उनसे बातचीत के अहम अंश पढ़िए.
महिंद्रा मैनुलाइफ एमएफ़ में सीआईओ-इक्विटी, कृष्णा संघवी के साथ इंटरव्यू पिछले कुछ दिनों में तेज़ी देखने के बाद भारतीय बाज़ार अस्थिर हो गए हैं. क्या पिछले साल की तेज़ी जारी रहेगी या सुधार होगा?
विस्तृत नज़रिए से देखें तो इस ,भारतीय बाज़ार वर्तमान में ग्लोबल लेवल पर कई रिस्क एसेट के समान प्रीमियम वैल्युएशन पर क़ारोबार कर रहे हैं. माइक्रो नज़रिए से, ऐसे कई स्टॉक हैं जो सही वैल्यू ऑफ़र कर रहे हैं, शायद मिड और स्मॉल-कैप के मुक़ाबले में लार्ज-कैप में ऐसे स्टॉक ज़्यादा हैं.
जहां तक बाज़ार की दिशा का सवाल है, प्योर डोमेस्टिक फ़ैक्टर के अलावा, अंतरराष्ट्रीय फ़ैक्टर, ख़ास तौर से अमेरिका के नेतृत्व में वैश्विक अर्थव्यवस्था और वैश्विक बाज़ार कैसा व्यवहार करते हैं, ये बात महत्वपूर्ण होगी. विश्व के ग्रॉस डोमस्टिक प्रोडक्ट (GDP) के 25 फ़ीसदी से ज़्यादा और विश्व के मार्केट कैपिटलाइज़ेशन के क़रीब 50 फ़ीसदी के साथ अमेरिका, भारत सहित वैश्विक इक्विटी बाज़ारों के लिए दिशा तय करता है. इसलिए, अमेरिकी मार्केट के अच्छे सेंटिमेंट्स में बने रहने से, हम (भारतीय बाज़ार) ठीक रहेंगे. अगर संयुक्त राज्य अमेरिका को चिंता का सामना करना पड़ता है, तो हमें भारत में भी इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ेगा. वक़्त के साथ, हमने अनुभव किया है कि वित्तीय बाज़ारों में जोख़िम उठाने की क्षमता काफ़ी तेज़ी से फैलती है क्योंकि सभी बाज़ारों में पैसा परिवर्तनीय है.
क्या आप फ़ंड हाउस के इनवेस्टमेंट फ़िलोसोफ़ी और आप शेयरों का चुनाव कैसे करते हैं, इस बारे में जानकारी दे सकते हैं?
हम महिंद्रा मैनुलाइफ में GCMV इनवेस्टमेंट फ़्रेमवर्क का इस्तमाल करते हैं जो कंपनी के हमारे इन्वेस्टमेंट यूनिवर्स का हिस्सा बनने से पहले, चार चीज़ों पर कंपनियों का वैल्यूएशन/अनालेसिस करता है. ये हैं ग्रोथ, कैश-फ़्लो, मैनेजमेंट और वैल्यूएशन.
ये ध्यान में रखते हुए कि भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है, हम देखते हैं कि किसी कंपनी के भारत की ग्रोथ के रास्ते पर किस तरह से आगे बढ़ने और हिस्सा लेने की उम्मीद है. हम देखते हैं कि क्या अगले 5-10 साल में बढ़ने का कोई बड़ा व्यावसायिक मौक़ा है, चाहे ग्रोथ उसमें एंट्री से हो रही हो या प्राइसिंग से या संसाधनों पर नियंत्रण से हो रही हो.
कैश-फ़्लो अगली चीज़ (वेरिएबल) है. हम उन कंपनियों को पहल देते हैं जो कैश-फ़्लो बनाती हैं और जो ग्रोथके मौक़ो को ठीक तरह से फ़ाइनांस कर सकती हैं. हम उन कंपनियों को तरजीह देते हैं जो वर्किंग कैपिटल में इनवेस्ट करने वाली कंपनियों के मुक़ाबले में कैपिटल एक्सपेंडिचर में निवेश करती हैं. हम डेट कैपिटल (debt capital) या ऋण की पूंजी के खिलाफ़ नहीं हैं क्योंकि कुछ बिज़नस को डेट कैपिटल की भी ज़रूरत होती है, लेकिन ऑपरेशन से इक्विटी फ़ाइनांसिंग की कंपनी की क्षमता वो चीज़ है जिसे हम ट्रैक करना चाहते हैं.
मैनेजमेंट क्वालिटी शायद सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है क्योंकि ये एक ऐसी चीज़ है जो मौजूदा बिज़नस सेक्टरों में मौजूद मौक़ों को अपने फ़ायदे में बदल सकती है और साथ ही बिज़नस में नए अवसरों को देख कर अपनी दिशा भी बदल सकती है.
वैल्युएशन को इक्विटी बाज़ारों के मूल के रूप में देखा जा सकता है. वक़्त के साथ, बाज़ारों ने हमें वैल्युएशन का सम्मान करना सिखाया है. ईमानदारी से कहें तो, वैल्युएशन, वैल्युएशन प्रोसेस का सबसे मुश्किल हिस्सा है क्योंकि ये नेरेटिव या कहानी, मानवीय भावनाओं, फ़्लो और मॉनिटरी पॉलिसी जैसे फ़ैक्टर को मिलाजुला कर होता है.
पिछले 10-15 सालों की आसान मॉनिटरी पॉलिसी ने वैल्युएशन को एडजस्ट करने के कुछ नए तरीक़े बनाए हैं क्योंकि पैसे की लागत काफ़ी कम हो गई है. वैल्युएशन पर, हम देखते हैं कि क्या किसी कंपनी के पास अगले 12-24 महीनों में वसूली लायक़ क़ीमत है. हम आम तौर पर उन कंपनियों का पक्ष नहीं लेते हैं जिनका क़ीमत बहुत ज़्यादा है लेकिन इन 12-18-24 महीनों में क़ीमत हासिल के लिए कोई संभावित वजह नहीं है.
एक बार जब कंपनियों को इस GCMV फ़्रेमवर्क के आधार पर फ़िल्टर किया जाता है, तो ये फ़ंड मैनेजरों पर निर्भर करता है कि वे कंपनियों में फ़ंड जनादेश की सापेक्ष प्राथमिकताओं के आधार पर पोर्टफ़ोलियो निर्माण के एक हिस्से के रूप में इन कंपनियों को चुनें.
महिंद्रा मैनुलाइफ मिड कैप और स्मॉल कैप फ़ंड में पिछले साल ज़ोरदार रिटर्न देखने को मिला. किन फेक्टरों की वजह बेहतर प्रदर्शन हुआ?
हमने कुछ व्यवसायों की दोबारा रेटिंग से उचित मुनाफ़ा कमाया. अगर हम क्षेत्रीय आधार पर देखें, तो बिजली, पूंजीगत सामान, धातु और कॉर्पोरेट ऋणदाताओं की कंपनियों ने पिछले 1-2 सालों में कमाई और मूल्यांकन दोबारा रेटिंग पर एक नया विकास का रास्ता देखा है.
बिजली क्षेत्र की कंपनियों के लिए निवेश के पीछे का विचार ये था कि भारत में इस वक़्त आपूर्ति बहुत कम है और हमें अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों के लिए ज़्यादा बिजली की ज़रूरत हो सकती है. भारतीय बिजली कंपनियों को अभी क्षमता वृद्धि और बाद में मुनाफ़े के लिए निवेश करने की जरूरत होगी. ये कैश-फ़्लो के बढ़ने और दोबारा निवेश का एक अच्छा मामला है, क्योंकि ज़्यादातर कंपनियों के पास अपनी इक्विटी के फ़ाइनेंस की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी कैश-फ़्लो है. वैल्युएशन भी पक्ष में थे. अगर नई क्षमताएं नहीं बनाई गईं, तो बिजली की तरह ही, कुछ प्रमुख क्षेत्रों (जैसे धातु) में वित्त-वर्ष 2027 में और उसके बाद आपूर्ति में बाधाएं आ सकती हैं. हमने पावर फ़ाइनेंस कंपनियों में भी निवेश किया, जो बिजली में नई क्षमता वृद्धि का स्वाभाविक लाभार्थी है.
एक दूसरी पब्लिक सेक्टर (PSU) बैंक हो सकते हैं. एसेट्स क्वालिटी के मुद्दों पर 2014 से 2020 तक उनके लिए मुश्किल वक़्त था. लेकिन, पिछले 2-3 सालों में, कॉर्पोरेट डिलीवरेजिंग, NCLT के नेतृत्व वाली बैलेंस शीट में सुधार, टैक्नोलॉजी -आधारित दक्षता और दोबारा निवेश के लिए मौजूद पूंजी के साथ PSU बैंकों के लिए क़ारोबारी माहौल में सुधार हुआ है.
आपकी निवेश टीम (विश्लेषक और फंड मैनेजर) कितनी बड़ी है, और आपने उनके बीच फ़ंड प्रबंधन की जिम्मेदारियां कैसे सौंपी हैं?
वर्तमान में, हमारे पास चार फ़ंड मैनेजर और पांच विश्लेषक हैं, जिनमें से एक फ़ंड का प्रबंधन भी करता है. हर एक फंड मैनेजर क़रीब समान तरीक़े के साथ 3-4 फ़ंडों का प्रबंधन करता है. विश्लेषक टीम को कस्टरम, वित्तीय, औद्योगिक और बुनियादी ढांचे, ग्लोबल ट्रेड और ESG जैसे विषयों के आधार पर संरचित किया गया है. फंड मैनेजर कुछ सेक्टरों को भी कवर करते हैं.
मिड-कैप और स्मॉल-कैप कंपनियों का मूल्यांकन करते वक़्त, आप प्रबंधन टीम की गुणवत्ता और क्षमता का आकलन कैसे करते हैं?
ऐसे कुछ फ़ेक्टर हैं जिन पर हम कंपनियों पर गौर करते हैं, ख़ासकर मिडकैप और स्मॉलकैप सेक्टर में. अगर कंपनी का परिचालन इतिहास 10 से 15 साल का है, तो यह एक फ़ायदा है कि इस कंपनी ने पिछले बिज़नस साइकिल को कैसे मैनेज किया है.
हम ये भी मूल्यांकन करते हैं कि इन चक्रों के दौरान इन कंपनियों का प्रदर्शन कैसा और क्यों रहा. इसके अलावा, हम ये समझने की कोशिश करते हैं कि उन व्यावसायिक चक्रों के दौरान प्रबंधन ने कैसा व्यवहार किया. डिलीवरी बनाम वादों के इतिहास का आगे विश्लेषण किया जा सकता है.
टैक्स चोरी या प्रमुख मैनेजमेंट के लोगों या ऑडिटरों में बार-बार बदलाव होना और कॉर्पोरेट गवर्नेंस भी एक अहम भूमिका अदा है. कई कंपनियां ग्रोथ की मानसिकता रख सकती हैं, लेकिन अच्छे मैनेजमेंट के साथ ग्रोथ की सोच अहम है. हम मूल्यांकन के एक हिस्से के तौर पर विक्रेताओं, ग्राहकों या यहां तक कि प्रतिस्पर्धियों जैसे कई हितधारकों के साथ बात करने की कोशिश करते हैं. लेकिन ईमानदारी से कहूं तो, ये आसान काम नहीं है, और किसी को हमेशा सही जवाब नहीं मिल सकता है.
कॉर्पोरेट संपर्क के संदर्भ में, कॉन्फ़्रेंस कॉल, क्वाटर्ली नतीजे और विश्लेषकों की बैठकें होती हैं, जिनमें हम व्यवसाय और वित्तीय स्थिति को समझने के लिए हिस्सा लेते हैं. कुछ कंपनियों में प्लांट का दौरा करने से भी मदद मिलती है.
क्या आप ऐसे कुछ ऐसी मिसालें दे सकते हैं जहां प्रबंधन के आपके मूल्यांकन ने आपके निवेश फ़ैसलों में अहम भूमिका निभाई है?
पिछले 2-3 सालों में भारत में निवेश की मानसिकता में सबसे बड़े बदलावों में से एक ये है कि हम पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की मैनेजमेंट क्वालिटी को कैसे देखते हैं.
ऐतिहासिक रूप से, काफ़ी संदेह रहा है. लेकिन पिछले 2-3 सालों में एक अलग विचार प्रक्रिया और नज़रिया रहा है. बहुत सी चीज़ें बदल गई हैं. PSU में, स्वामित्व सरकार के पास होता है, और वे सही लोगों को सही नौकरियों में रखने में कामयाब रहे हैं. PSU को मालिक के रूप में सरकार द्वारा निर्धारित विकास नज़रिए से फ़ायदा हुआ है.
किसी मिड-कैप या स्मॉल-कैप कंपनी से कब बाहर निकलना है यह तय करने के लिए आप किस मानदंड का इस्तमाल करते हैं?
कब बेचना है इसके लिए बाज़ारों में कोई नियम नहीं हैं. जो चीज़ हमें ख़रीदने के लिए प्रेरित करती है, उसका आकलन हम कर सकते हैं, लेकिन जो चीज़ हमें बेचने के लिए प्रेरित करती है, उसका आकलन करना काफी चुनौतीपूर्ण है. लेकिन कुछ व्यापक विचार अपेक्षाओं की डिलीवरी, वैल्युएश, सोच में बदलाव और वैकल्पिक अवसर हैं.
कई बार, कंपनियां हमारी मूल अपेक्षाओं को पूरा करती हैं, और हम बाहर निकलने के लिए मूल्यांकन करते हैं (अगर हमें लगता है कि उचित क्षमता पर कब्ज़ा कर लिया गया है) या निवेशित बने रहें (अगर हमें लगता है कि विकास निरंतरता की उम्मीद है).
कभी-कभी, ऐसी घटनाएं हो सकती हैं जिनके लिए किसी कंपनी में निवेश पर मूल परिकल्पना (प्रबंधन, नियामक कार्यों, कॉर्पोरेट प्रशासन आदि में बदलाव) के पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत हो सकती है, और हम कभी-कभी बाहर निकल सकते हैं.
दूसरे वक़्त में, बाज़ार वैकल्पिक मौके देते हैं, और पोर्टफ़ोलियो निर्माण के एक हिस्से के रूप में, हम सापेक्ष मूल्यांकन और उल्टा क्षमता पर किसी कंपनी को ट्रिम या बाहर कर सकते हैं.
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